उत्तराखंड मे बरसात के मौसम में जब समय से बारिश नही होती या सूखा पड़ने लगता है,तो गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में घोग्य पूजा और कुमाऊं के पाली -पछाऊँ ग्वालदेवी की पूजा से बच्चे पहाड़ में बारिश का आवाहन करते हैं। और स्थानीय लोगो की मान्यता है,कि बच्चों की इस निश्छल पूजा से पहाड़ में बारिश होती है। और सूखे से राहत मिलती है। इसके अलावा पहाड़ में बारिश के लिए अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरीक़े की पूजा या टोटके करने की परम्पराएँ अभी भी जीवंत हैं।
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घोग्या पूजा से आती है पहाड़ में बारिश :-
घोग्या पूजा गढ़वाल के चमोली जिले का एक खास किशोरत्सव है। यह उत्सव बरसाती फसल के बोने के अवसर पर अषाढ़ , सूखे की आशंका होने पर , गावँ के किशोर किशोरियों द्वारा एक सामूहिक पूजा का आयोजन किया जाता है। इस कार्य के लिए गांव के सभी किशोर और किशोरियां गावँ के बाहर एक स्थान पर मिलते हैं
वहां पर भीमल वृक्ष की टहनियों की छाल निकाल कर उससे अयार नामक पेड़ की टहनियों के सिरों भीमल बांध लेते हैं। और उन्हें उस बालक के सिर पर लंबवत बांध दिया जाता है, जिसे घोघा देवता का पश्वा बनना होता । और दो मालाएं और बनाई जाती है , घोघा देवता के गणो के लिए। इस प्रकार मालाओं से सजे हुये , तीनो बच्चे यहाँ कपड़े उतार कर खूब नाचते हैं। और नाचते नाचते गावँ में स्थित पानी के स्रोत या जलाशय में जाते हैं। वहा नहाकर फिर दौड़ते हुए फिर पूजा स्थल पर वापस आते हैं। और फिर पूजा स्थल पर नाचते हैं। उस समय सभी बच्चे विन्रमता से घोघा देवता से पूछते है, “बारिश कब होगी ?” कहते हैं कि घोग्या के पश्वा के मुह से उस समय, जिस दिन का नाम निकल जाता है, उस दिन बारिश पक्का होती है। सभी बच्चे खुश हो जाते हैं। सभी बच्चे पूजा के लिए अपने अपने घरों से आटा, चावल, घी, गुड़, नमक मिर्च मसाले आदि से घोघा देवता का भोग तैयार किया जाता है। घोघा देवता की पूजा कर उनको भोग लगाकर ,सभी बच्चों को भोग का वितरण होता है, घोग्या पूजा का प्रसाद पाकर बच्चे खुशी खुशी घर को आते हैं। इस पूजा पर एक गीत भी गया जाता है।
घोग्या देवता नाचलो, ढोल दमु बजलो।
देवता दिलो जल, बरखःहोली चौतरफा।…
इसके अलावा घोघा देव की पूजा गढ़वाल मंडल में फूल संक्रांति के अवसर पर भी की जाती है। फूल देई पर घोगा देवता की पूजा की पूरी जानकारी विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
ग्वालदेवी पूजा :-
गढ़वाल के घोघा पूजा की तरह, कुमाऊं के पालिपछाऊं किशोरों द्वारा ग्वालदेवी की या ग्वालधौ की पूजा की जाती है। इसके लिए बच्चे घर से भोग का सामान लेकर ग्वाला (पालतू जानवरों को चराने जाते हैं।) वहाँ भोग इत्यादी बना कर विवधिवत ग्वालदेवी (ग्वाला क्षेत्र में मान्य देवी देवता) को भोग लगाकर खुद भी प्रसाद ग्रहण करते हैं। और ग्वालदेवी से सूखे से परेशान अपने गांव अपने क्षेत्र के लिए बारिश कि प्रार्थना करते हैं।
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