गोलू देवता ,ग्वल्ल ,गोरिया आदि नामों से विख्यात कुमाऊं के लोकदेवता गोलू देवता न्यायकारी देव के रूप में पूजित हैं। गोलू देवता कुमाऊं में ही नहीं गढ़वाल में भी पूजित हैं। पौड़ी गढ़वाल में गोलू देवता को कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है। आज इस संकलन में हम गोलू देवता के विभिन्न नाम और उनसे जुडी कहानियों पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।
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गोलू देवता के विभिन्न नाम –
उत्तराखंड के लोक देवता गोलू देवता की उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष मान्यता है। उन्हें न्यायकारी देवता के रूप में पूजा जाता है। कुमाऊं के जनमानस में गोलू देवता के विभिन्न नाम प्रचलित हैं। इन नामों में उनके जीवनवृत ,कृतित्व और व्यक्तित्व का रूप निहित है। गोल्ज्यू के इन विभिन्न नामों के नामकरण के पीछे कई कहनिया हैं जिस कारण गोलू देवता के विभिन्न नाम पड़े , जिनमे से कुछ इस प्रकार से है –
1 – ग्वल्ल ( गोलू ) –
इन्हे ग्वल्ल भी कहा जाता है ,और ग्वल्ल नाम ही कालान्तर में गोलू बन गया। इस नाम के पीछे की कहानी के बारे में कहा जाता है कि ,ये गुलेल चलने में दक्ष थे। इसलिए उनका नाम ग्वल्ल पड़ा जो कालांतर में गोलू करके प्रचलित हो गया।
2 – गोरिया –
गोलू देवता के विभिन्न नाम हैं जिनमे से उनका एक नाम गोरिया या बाला गोरिया भी है। उनके इस नाम के बारे में बताया जाता है कि गोलू देवता को उनकी सौतेली माताओं ने ख़त्म करने के लिए पैदा होते ही अनेक कष्ट दिए जिनमे से वे बच निकले ,अंत में कुलक्षणी सौतेली माताओं ने उन्हें गोरी गंगा में बहा दिया। बहते बहते वे धीवर दम्पति को वे गोरी गंगा में मिलते हैं। गोरी गंगा में मिलने के कारण धीवर दंपती उनका नाम गोरिया रखते हैं।
दूधाधारी –
गोलू देवता के अनेक नामों में से एक नाम दूधाधारी भी है। उनके इस नाम के पीछे कहते हैं गाथान्तर के अनुसार राजा के द्वारा उनका परिचय प्राप्त होने पर उसे कालिंका का पुत्र होने को प्रमाणित करने के लिए कहा जाने पर उन्होंने कहा मेरे मुंह के आगे लोहे के सात कटाह रखो सभी रानियां एक-एक करके मेरे मुंह में अपने स्तन् की धार मारें, जिसके दूध की धार इन लौह कटाहों का भेदन कर मेरे मुंह में पड़ेगी वही मेरी मां होगी।
ऐसा ही किये जाने पर रानी कलिंका के स्तन की धार लौहपटों को भेद कर उसके मुंह में जा गिरी। कलिंका अपने सच्चे सपूत को पाकर गदगद हुई। उस दिन से गोलू देवता का नाम दूधाधारी भी पड़ गया।
कृष्ण अवतारी –
गोलू देवता को कृष्ण अवतारी भी कहा जाता है। गोल्ज्यू को यह नाम देने के पीछे कई कारण बताये जाते हैं। पहला कारण यह है कि गोलू देवता की जन्म परिस्थितियां भी भगवान कृष्ण के जन्म के जैसी थी। दूसरे कारण में एक पौराणिक लोककथा बताई जाती है कि ,भगवान् कृष्ण ने द्वापर युग भैरव जी को वरदान दिया था कि कलयुग में तुम हिमालय के मानसखंड क्षेत्र में एक न्यायकारी राजा के रूप में अवतार लोगे और तुम्हारे न्यायकारी कार्यों से प्रभावित होकर श्रद्धालु तुम्हे मृत्यु के बाद भी न्यायकारी देव के रूप में पूजेंगे और तुम्हरी कीर्ति युगो युगों तक रहेगी। इसलिए गोल्ज्यू को कृष्णावतारी कहते हैं।
भूमिया –
कई जगह गोलू देवता को भूमिया देवता के नाम से पूजा जाता है। भूमिया देवता गावं का क्षेत्रपाल होता है जो भूमि का रक्षक होता है। प्राचीन काल में गोलू देवता राजा होने कारण कई गावों में उन्हें गांव के क्षेत्रपाल भूमिया के रूप में पूजते हैं। गांव के क्षेत्रपाल भूमिया बाहरी व्याधियों से गांव की रक्षा करते हैं और मान्यता है कि प्राकृतिक प्रकोपों से भी गांववासियों की फसल को बचाते हैं।
भंडारी गोलू –
भंडारी जाती के लोगों की रक्षा के लिए उनकी पुकार पर ढालनसोरा में गए। वहां भंडारी लोगो की रक्षा कर भंडारी गोलू के नाम से स्थापित हो गए। भंडारी गोलू देवता की लोक गाथा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
चितई गोलू और चमड़खान गोलू , घुघूती गोलू –
ग्वल्ल देवता या गोरिल देव बचपन से मेधावी और निर्भीक थे। और शाशक के रूप वे साहसी ,धार्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। वे अपने राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों को भली भांति जानते थे इसलिए वे अपने राज्य में घूम घूम कर लोक अदालतों का आ.योजन करके लोगों को न्याय देते थे। इसलिए वर्तमान में उन्हें न्यायकारी देव के नाम से भी पूजा जाता है। कुमाऊं में जहाँ -जहाँ उन्होंने अपनी लोक अदालत लगाकर न्याय दिया ,वहां आज उनकी स्मृति में मंदिर की स्थापना करके उन्हें पूजा जाता है।
चितई में भी उन्होंने अपनी लोक अदालत लगाकर लोगो को न्याय दिया इसलिए आज वहां उनका परमधाम न्यायकारी गोलू मंदिर चितई के नाम से विश्व विख्यात है। ऐसा ही एक मन्दिर रानीखेत में भी है जहाँ चमड़खान गोलू के नाम से ग्वल्ल देव की चरणपादुकाओं की पूजा होती है। कहते। हैं रानीखेत के चमड़खान नामक स्थान पर गोलू देवता ने अपना दरबार लगाया था। और जब वे वहां से जाने लगे तो ,श्रद्धालुओं ने उनसे वहीं रहने की विनीत की ! तब ग्वल्ल देव ने अपनी चरण पादुकाएं वहां छोड़ दी। और कहाँ , जब भी मेरी जरुरत पड़े तो सच्चे मन से याद करना और आ जाऊंगा। तब से वहां गोलुदेव के चरणों की पूजा होती है।
डाना गोलू देवता –
गोरिल देवता के जैसे प्रतापी और न्यायप्रिय एक युवक थे जिनका नाम कलविष्ट था। मृत्यु उपरान्त उन्हें देव रूप में पूजा जाने लगा। श्रद्धालु उन्हें भी गौर भैरव का अवतार या गोलू देवता का दूसरा जन्म मानते हैं। इसलिए अल्मोड़ा में उनकी पूजा डाना गोलू के रूप में होती है। यहाँ पढ़िए – कलबिष्ट देवता की कहानी
कंडोलिया देवता –
चम्पावत से जब डुंगरियाल नेगी जाती के लोग पौड़ी गढ़वाल गए तो अपने साथ अपने इष्ट ग्वल्ल देवता को कंडी में रखकर ले गए इसलिए इनका नाम कंडोलिया देवता पड़ गया।
पढ़े – कंडोलिया देवता के रूप में विराजते हैं, गोलू देवता पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में
गागरी गोलू –
कत्यूरी राजधानी में गोरिल देवता को गागर में लाया गया। इसलिए इस स्थान का नाम और गोलू देवता का नाम गागरी गोलू पड़ गया। गागरी गोलू की कहानी विस्तार से पढ़ने के लिए हमारी दूसरी पोस्ट गागरी गोल – जब गागरी में आये गोलू देवता और कहलाये गागरी गोल।पढ़े
अंत में –
उपरोक्त नामों के अतिरिक्त ग्वल्ल देवता को अगवानी देव भी कहते हैं। इसके पीछे का कारण यह है , कहते है कि ग्वल्ल पंचनाम देवों के प्रिय भांजे हैं। पंचनाम देवों ने उन्हें अगवानी देव का हक़ दिया है। चम्पवात और चितई के बाद कुमाऊं के घोड़ाखाल नैनीताल में गोलू देवता का प्रमुख मंदिर है। यहाँ भी गोलुदेवता को चितई मंदिर की तरह सर्वोच्च न्यायधीश की तरह पूजा जाता है। कहते हैं गोलू देवता यहाँ अपने राज्य की विवाहिता बहिन को न्याय दिलाने के लिए आये थे। और घोड़ाखाल के गोल्ज्यू कहलाये।
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