Wednesday, May 21, 2025
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कुटेटी देवी उत्तरकाशी ,मात्र दर्शन से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

कुटटी देवी

उत्तराखंड गढ़वाल मंडल के सिद्धपीठों में गिना जाने वाला कुटेटी देवी का मंदिर गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी
जनपद में उसके मुख्यालय से लगभग 2-3  किलोमीटर की दूरी पर गंगा के उस पार वारणावत पर्वत के शिखर
पर स्थित है। कहते हैं उत्तरकाशी का ऐरासूगढ़ भी यहीं पर था। पुरे उत्तराखंड में इसकी बड़ी मान्यता है। यह मंदिर देहरादून से 192 किलोमीटर दूर और टिहरी से 74 किलोमीटर दूर है।

उत्त्पत्ति से जुडी कहानी और पौराणिक महत्त्व –

इसके विषय में बड़ी चमत्कारिक कथाएं सुनने को मिलती हैं। इसके विषय में जनश्रुति है कि यह मुस्लिम शासनकाल में आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए यहां आकर शरण लेने वाले राजस्थान के राजाओं की रानी के मायके, कोटा गांव की इष्टदेवी थी जिसकी स्वप्नागत प्रेरणा से उन्होंने यहां पर इसकी स्थापना की थी। कहते हैं उनके स्वपन में इस स्थान पर देवी द्वारा निर्देशित पत्थर के तीन खगोलीय सुगन्धित पिंड दिखाई दिए थे। पहले मार्ग की असुविधा के कारण सप्ताह में केवल दो दिन-सोमवार एवं शुक्रवार को ही पूजा होती थी, किन्तु अब सुविधा हो जाने के कारण प्रतिदिन पूजा होने लगी है।

कुटेटी देवी उत्तरकाशी ,मात्र दर्शन से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

यहां पर दशहरे के अवसर परविशेष उत्सव कुटेटी देवी का थौलू का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर के श्रृद्धालु आकर देवीकी पूजा अर्चना में भाग लेते हैं। बींसवीं शताब्दि के छठे दशक तक यहां पर बलिपूजा भी होती थी औरराजा स्वयं पूजा करता था, किन्तु बलिपूजा की समाप्ति के साथ ही पूजा का कार्यभार भी यहां के ब्राह्मणों को सौंप दिया गया है। इसके पुजारी नौटियाल जाति के ब्राह्मण हैं।

कुटेटी देवी के बारे में एक मान्यता यह भी है कि  जो भी निसंतान दंपत्ति माँ के दर्शन करता है ,माँ के दर्शनमात्र से ही उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिल जाता है।

कैसे पहुंचे कुटेटी देवी मंदिर उत्तरकाशी –

कुटेटी मंदिर जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से इस मंदिर की दुरी 155 किलोमीटर है। ऋषिकेश से उत्तरकाशी जिला मुख्यालय सड़क मार्ग से जाकर और जिला मुख्यालय से लगभग 2 से 3 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है प्रसिद्ध कुटेटी देवी मंदिर।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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