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कुटटी देवी
उत्तराखंड गढ़वाल मंडल के सिद्धपीठों में गिना जाने वाला कुटेटी देवी का मंदिर गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी
जनपद में उसके मुख्यालय से लगभग 2-3 किलोमीटर की दूरी पर गंगा के उस पार वारणावत पर्वत के शिखर
पर स्थित है। कहते हैं उत्तरकाशी का ऐरासूगढ़ भी यहीं पर था। पुरे उत्तराखंड में इसकी बड़ी मान्यता है। यह मंदिर देहरादून से 192 किलोमीटर दूर और टिहरी से 74 किलोमीटर दूर है।
उत्त्पत्ति से जुडी कहानी और पौराणिक महत्त्व –
इसके विषय में बड़ी चमत्कारिक कथाएं सुनने को मिलती हैं। इसके विषय में जनश्रुति है कि यह मुस्लिम शासनकाल में आत्मरक्षा व धर्मरक्षा के लिए यहां आकर शरण लेने वाले राजस्थान के राजाओं की रानी के मायके, कोटा गांव की इष्टदेवी थी जिसकी स्वप्नागत प्रेरणा से उन्होंने यहां पर इसकी स्थापना की थी। कहते हैं उनके स्वपन में इस स्थान पर देवी द्वारा निर्देशित पत्थर के तीन खगोलीय सुगन्धित पिंड दिखाई दिए थे। पहले मार्ग की असुविधा के कारण सप्ताह में केवल दो दिन-सोमवार एवं शुक्रवार को ही पूजा होती थी, किन्तु अब सुविधा हो जाने के कारण प्रतिदिन पूजा होने लगी है।
यहां पर दशहरे के अवसर परविशेष उत्सव कुटेटी देवी का थौलू का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर के श्रृद्धालु आकर देवीकी पूजा अर्चना में भाग लेते हैं। बींसवीं शताब्दि के छठे दशक तक यहां पर बलिपूजा भी होती थी औरराजा स्वयं पूजा करता था, किन्तु बलिपूजा की समाप्ति के साथ ही पूजा का कार्यभार भी यहां के ब्राह्मणों को सौंप दिया गया है। इसके पुजारी नौटियाल जाति के ब्राह्मण हैं।
कुटेटी देवी के बारे में एक मान्यता यह भी है कि जो भी निसंतान दंपत्ति माँ के दर्शन करता है ,माँ के दर्शनमात्र से ही उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिल जाता है।
कैसे पहुंचे कुटेटी देवी मंदिर उत्तरकाशी –
कुटेटी मंदिर जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से इस मंदिर की दुरी 155 किलोमीटर है। ऋषिकेश से उत्तरकाशी जिला मुख्यालय सड़क मार्ग से जाकर और जिला मुख्यालय से लगभग 2 से 3 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है प्रसिद्ध कुटेटी देवी मंदिर।
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