जौनसार – हिमाचल क्षेत्र का वीर नंतराम नेगी ,( नाती राम ) की वीरता की कहानी किताबों में नहीं बल्कि यहाँ के लोगों की जुबान पर हारुल के रूप में आज भी अमर है।
जौनसार क्षेत्र और सिरमौर राज्य के इतिहास में अपनी वीरता और साहस के बलबूते पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अमर करवाने वाले नंतराम नेगी ,( नाती राम ) उर्फ़ गुलदार का जन्म १७वी शाताब्दी के आस पास ,ग्राम मलेथा ,कैम्प मोहराड में हुवा था। उस समय यह क्षेत्र सिरमौर रियासत में था। और इस रियासत की राजधानी नाहन में थी। सिरमौर और नाहन वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में हैं। वीर नाती राम के पिता का नाम लाल सिंह था और माता जी का नाम झंझारी देवी। नाती राम नेगी को बचपन से ही तलवार बाजी और साहसिक खेलों का बहुत शौक था। वह एक फुर्तीला नौजवान था। अपनी फुर्ती और साहसिक कार्यों में रूचि के कारण सिरमौर रियासत के राजा शमशेर प्रकाश की सेना में भर्ती हो गया था। उनकी चुस्ती -फुर्ती की वजह से उन्हें राजा की तरफ से गुलदार उपनाम दिया गया था।
इधर रोहिला सरदार गुलाम कादिर खान ,सहारनपुर, हरिद्वार जीतते हुए देहरादून पहुंच कर वहां तबाही मचाई । देहरादून से आगे वो नाहन , सिरमौर जितने के लक्ष्य से जौनसार वर्तमान हिमाचल की तरफ बढ़ा । उसने अपनी विशाल फ़ौज के साथ पौंटा में डेरा डाल दिया।
नाहन का राजा नाबालिग था , उसका राजकाज राजमाता देखती थी। यह समाचार जैसे ही राजमाता को प्राप्त हु़वा उन्होंने तुरंत राजदरबारियों से इस बाबत मंत्रणा की। सभी दरबारियों ने एक ही सुझाव दिया कि , सिरमौर रियासत को मुश्किल घड़ी से वीर नंतराम नेगी बाहर निकाल सकता है।
वीर नाती राम उस समय अपने गांव मलेथा में थे। राजा ने तुरंत वीर नाती राम को संदेश भिजवाया । राजा का आदेश प्राप्त करते ही नंतराम तुरंत राजधानी नाहन पहुंच गए। राजा ने उन्हें विशेष राजसी तलवार ,ढाल और छाती पर पहने जाने वाला ,संजुवा देकर कहा ,’यदि तुम दुश्मन के सेनानायक का सर कलम कर देगा तो उसे मलेथा,स्यासू व् मोहराड तीन जागीरें ईनाम में दी जाएँगी। इसके अलावा उनके परिवार का सम्पूर्ण खर्च राजभवन उठाएगा और साथ में कालसी तहसील में खजांची का पद उसके लिए आरक्षित कर दिया जायेगा।
महाराज से आज्ञा लेकर , नातीराम फौज लेकर पौंटा के लिए चले गए। सर्वप्रथम उन्होंने कटासन भवानी देवी मंदिर में पूजा अर्चना की। उसके बाद पौंटा पहुंच कर नंतराम और उसके सैनिकों ने मुग़ल सेना पर एकदम हमला बोल दिया। अतिआत्मविश्वास और शक्ति के अभिमान में चूर मुग़ल सैनिक पहाड़ियों की फुर्ती के सामने हड़बड़ा गए। नंतराम साहस करके मुग़ल सेनानायक के तम्बू में घुस कर ,बड़ी बाहदुरी से मुग़ल सेनानायक का सर कलम करके ले आया। सेनापति की मृत्यु का समाचार सुनते ही मुग़ल फौज में भगदड़ मच गई । नातीराम ने मुग़ल सेनानायक का सर राजा को गुप्तचर के हाथ भिजवा दिया। स्वयं मुगलों के साथ युद्ध करते रहे। मुग़ल सैनिकों ने नंतराम नेगी के साथ कोलर तक लड़ाई लड़ी। उनका घोड़ा घायल हो गया जिस कारण वीर नंतराम नेगी वीरगति को प्राप्त हुए।
सिरमौर के राजा ने वीर नातीराम के परिवार वालों को गुलदार के नाम से सम्मानित किया। और युद्ध जीतने के इनाम स्वरूप अपने किये गए वादे के अनुसार उसके परिवार जनों को मलेथा,स्यासू व् मोहराड तीन जागीरें वजीरी के लिए दी। वीर नंतराम नेगी के वंशज हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के तहसील शिलाई के ग्राम -मोहराड ,और उत्तराखंड के जिला देहरादून तहसील चकराता के ग्राम मलेथा में रहते हैं। वीर नातीराम के वंशजो को आज भी नेगी गुलदार ,चाक्करपूत और बेराठिया के सम्मानजनक उपनामों से जाना जाता है।
आज भी जौनसारी संस्कृति के लोकगीत हारुल में वीर नातीराम की वीरगाथा का गुणगान किया जाता है। वीर नतीराम नेगी आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा हैं।
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