Monday, April 14, 2025
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हरेला त्यौहार को बोने की विधि और इसमें प्रयोग किये जाने वाले अनाज।

हरेला पर्व धीरे -धीरे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का लोकपर्व न होकर पुरे प्रदेश और देश के कई हिस्सों में धूम धाम से मनाया जाने वाला त्यौहार बन गया है। जैसा की हम सबको पता है कि हरेला त्यौहार उत्तराखंड का प्रकृति को समर्पित एक अनन्य लोक पर्व है। इसमें सात या पांच प्रकार के अनाज को दस या ग्यारह दिन पहले मंदिर के पास बंद कमरे में बोते हैं। फिर दस दिन बाद हरेला त्यौहार मनाया जाता है।

हरेला त्यौहार की पूर्व संध्या पर डिकारे बनाये जाते हैं। पारम्परिक मिष्ठान छऊवे बनाये जाते हैं। और हरेले की पूजा करके उसको बांध दिया जाता है। आज जानते हैं 2024 में हरेला कब बोया जायेगा ? और पारम्परिक रूप से इसे कैसे बोते हैं ? और इसमें कौन-कौन सा अनाज प्रयुक्त किया जाता है ?

2024 में हरेला त्यौहार कब बोया जायेगा –

वर्ष 2024 में हरेला त्यौहार 16 जुलाई में मनाया जायेगा। इस हिसाब से हरेला 06 जुलाई और 07 जुलाई को बोया जायेगा। हरेला उत्तराखंड में कुछ क्षेत्रों में ग्यारह दिन का मनाया जाता है ,और कुछ क्षेत्रों में दस दिन का हरेला मनाया जाता है। अब जो लोग ग्यारह दिन का त्यौहार मानते हैं तो वे 06 जुलाई को हरेला बोते हैं। और जो 10 दिन का त्यौहार मानते हैं तो वे लोग 07 जुलाई 2024 को हरेला बोयेंगे।

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हरेला त्यौहार को बोने की विधि और इसमें प्रयोग किये जाने वाले अनाज।

 

पारम्परिक रूप से हरेला बोने की विधि –

हरेला त्यौहार में उत्तराखंड में पारम्परिक रूप से हरेला बोने के लिए लगभग 12 दिन के आस पास पहले किसी शुद्ध जगह की उपजाऊ मिटटी को सुखाकर रख लेते हैं।अपने क्षेत्र की मान्यता के हिसाब से 10 दिन में या 11 दिन में हरेले की मिटटी छान कर दो बड़े पत्तो में रख लेते हैं। या फिर एक लकड़ी की चौकी पर बराबर फैला लेते हैं। यहाँ पर एक बात ध्यान देना चाहिए कि थोड़ी मिटटी बचाकर रखें। सारी मिटटी एकसाथ न फैलाएं। अनाज मिटटी की सतह पर फ़ैलाने के बाद उसमे अनाज डालें और ऊपर से बची हुई मिटटी से बीजों को ढक दें। और ऊपर से मिट्टी के हिसाब से पानी छिड़क दें।

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हरेला त्यौहार में प्रयुक्त अनाज –

हरेला त्यौहार में पारम्परिक रूप से खरीफ की फसलों के अनाजों और दलहनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें उड़द ,मक्का , तिल ,गहत ,धान ,भट्ट आदि का प्रयोग करते हैं। लोग इन अनाज के न होने के कारण या अपने क्षेत्र की मान्यता के अनुसार अलग अलग अनाजों का प्रयोग किया जाता है। जिसमे जौं ,सरसों इत्यादि हैं। कहीं कहीं कहते हैं हरेला में काळा अनाज प्रयोग किया जाता है। और कई क्षेत्रों में इसका प्रयोग किया जाता है।

हरेला त्यौहार को बोने की विधि और इसमें प्रयोग किये जाने वाले अनाज।

 

 

हरेला कौन बो सकता है –

एक चीज अक्सर पूछी जाती है या सबके मन में जिज्ञासा होती है कि परिवार में हरेला बोने का अधिकार किसको है ? एक सामान्य जानकारी के अनुसार परिवार में मातृशक्ति हरेला बोने के लिए अर्ह माना जाता है। परिवार की कुवारी कन्याओं की जिम्मेदारी होती है कि वे रोज इसमें पानी डाले। परिवार या बिरादरी में जातक शौच या मृतक शौच होने के कारण हरेला बोने की जिम्मेदारी परिवार की कुवारी कन्याओं की होती है। परिवार में कुवारी कन्या न होने के कारण कुल पुरोहित की जिम्मेदारी होती है हरेला बोने और उसकी देखभाल करने की।

हरेला कौन बो सकता है ये किताबी और सार्वभौमिक नियम है। लेखकों ने समाज में अपने शोध और अध्यन के आधार पर ये बात बताई है। लेकिन पहाड़ों में हरेला बोने और देखभाल करने की जिम्मेदारी हर उस परिवार के सदस्य की होती है जो मन वचन और कर्म से शुद्ध है और समझदार भी है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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