Friday, March 14, 2025
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गिर या गिरी, कुमाऊं में घुघुतिया त्यौहार पर खेले जाने वाला खास खेल

गिरी खेल : मकर संक्रांति के उपलक्ष पर पूरे भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पकवान और अलग अलग खेलों का आयोजन किया जाता है। सभी समुदायों के लोग अपनी अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार उत्सव मानते हैं। उत्तर भारत में जहाँ पतंग बाजी होती है, वही दक्षिण भारत तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाते और इस अवसर पर जलीकट्टू नामक ,बैलों की दौड़ का ऐतिहासिक खेल खेला जाता है।

ठीक उसी प्रकार उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को घुघुतिया त्यौहार के नाम से मनाया जाता है। और कुमाऊ के कुछ हिस्सों में इस दिन गिर या गिरी नामक खेल खेला जाता था। वर्तमान में आधुनिकता की चकाचौंध में कुमाऊं का यह पारम्परिक खेल विलुप्तपर्याय हो गया है।

गिर खेल या गिरी खेल –

पहले घुघुतिया त्यौहार के दिन लोग दोपहर में खाना खा कर गिर खेलने के लिए एक नियत मैदान में जुट जाते थे। मनोरंजन के लिए ढोल दमाऊ भी लाये जाते थे।  ढोल दमु की धुन में खेल का उत्साह दुगुना हो जाता था। गिर खेल को खेलने के लिए छड़ी की तरह ( वर्तमान हॉकी स्टिक से मिलते जुलते ) डंडे बनाये जाते थे। और भरी भरकम गंज्याडु  को छीलकर बाल बनाई जाती थी। गंज्याडु एक प्रकार की कंदमूल जड़  होती है। कहीं कही ये मृत जानवर की खाल में घास पूस भरकर भी बनाई जाती थी।

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‘गिर खेल ‘ गिरी खेल   हॉकी और रग्बी खेल का मिश्रण था। जिसमे हुक वाली छड़ियों की सहायता और हाथ  प्रयोग करके गेंद को छीनने या अपने दल की तरफ रखने का प्रयास किया जाता था। 

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खिलाडियों और दर्शकों के आ जाने के बाद , दामू नगाड़ों की धुन पर खेल शुरू होता था। गंज्याडु की भरी भरकम गेंद को खिलाडी अपनी छड़ियों से अपने कब्जे में लेने की कोशिश करते हैं। कभी कभी  मौका लगते ही कोई खिलाड़ी हाथ से पकड़ कर अपने पास ले लेता था ,उसे छीनने और बचाने के लिए अन्य खिलाडी भी उस पर चिपट जाते थे। और ऐसे माहौल में दमु नगाड़ो की आवाज खिलाडियों और दर्शकों में उत्साह भर देता था।

यह क्रम काफी देर तक चलता रहता था।  फिर शाम को एक निश्चित समय बाद खेल समाप्ति की घोषणा के बाद ,सभी लोग हसी ख़ुशी अपने घर जाते थे। इस खेल का मुख्य उद्देश्य घुघुतिया त्यौहार पर मनोरजन होता था। यह खेल क्षेत्रीय स्तर पर और गांव स्तर पर था।

गिर कौतिक या गिरै कौतिक –

घुघुतिया त्यौहार के दिन इस मनोरजंक मेले का आयोजन अल्मोड़ा जनपद के मासी क्षेत्र में तुनाचौर के मैदान में तथा तल्लाइ  सल्ट में चनुली गांव के नजदीक मैदान आयोजित होता है। वर्तमान में इन  कौतिकों में बालीबाल मैच और सांस्कृतिक कार्यक्रम अधिक होते हैं।

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उत्तरायणी मेला का इतिहास व् धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व
घुघुतिया त्यौहार 2025 ,की सम्पूर्ण जानकारी | Ghughutiya festival Uttarakhand

घुघुतिया त्यौहार की कहानी सुने और देखें , यहाँ क्लिक करें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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