Friday, September 29, 2023
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Phool dei festival Uttarakhand – फूलदेई त्यौहार क्यों मनाया जाता है

उत्तराखंड का फूलदेई त्यौहार क्या है | About Phool dei festival Uttarakhand –

Phool dei festival Uttarakhand – उत्तराखंड में हर साल चैत्र माह की प्रथम तिथि को फूलदेई त्यौहार मनाया जाता है। उत्तराखंड के इस लोक पर्व को बाल पर्व भी कहते हैं। क्युकी इस त्यौहार में बच्चों की मुख्य भूमिका होती है। बड़ो की भूमिका चावल ,गुड़ और दक्षिणा देने तक की होती है। यह त्यौहार कुमाऊं और गढ़वाल दोनों मंडलों में मनाया जाता है। इस त्यौहार में बच्चे अपने आस पास के घरो की दहलीज पर पुष्प चढ़ा कर उस घर की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। कहीं यह त्यौहार एक दिन तो कहीं 15 या एक माह तक मनाया जाता है।

फूलदेई त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?

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अपने-अपने कैलेंडर के हिसाब से नव वर्ष के आगमन पर उत्त्सव मनाने की परम्परा विश्व की सभी संस्कृतियों में रही है। अंगेजी नव वर्ष पर उत्सव मानने हैं। तिब्बती अपने नववर्ष पर लोसर नामक त्यौहार मनाते है। पारसी नववर्ष पर नौरोज नामक पर्व मनाते हैं।अपने ईष्ट मित्रों और सगे संबंधियों की सुख शांति की कामना करना इसका प्रमुख अंग होता है।

Phool dei festival Uttarakhand
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नववर्ष के स्वागत का पर्व है फूलदेई –

हिन्दू  कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह से हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। इस अवसर पर हिन्दू धर्म से जुड़े सभी समुदाय उत्सव मनाते है। उत्तराखंड, हिमांचल, नेपाल में सौर कलैंडर अनुसार दिनों की गणना होती है। अर्थात हिमालयी क्षेत्रों में जिस दिन सूर्य अपनी राशि परिवर्तन करते हैं , उत्तराखंड और नेपाल ,हिमाचल वह नव वर्ष का प्रथम दिन होता है। अतः इस दिन नववर्ष के आगमन की ख़ुशी में साफ सफाई करके ,दहलीज पर पुष्प बिछा कर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है। आने वाले नववर्ष को और मंगलमय बनाने के लिए देवतुल्य बच्चों से घर की दहलीज पर पुष्पवर्षा करके नववर्ष का अभिनन्दन किया जाता है।

नववर्ष के स्वागत पर उत्तराखंड के पडोसी राज्य हिमांचल प्रदेश में भी फूलदेई से मिलता जुलता उत्सव मनाया जाता है। चैत्र के पुरे माह चलने वाला हिमांचल कांगड़ा का रली नामक उत्सव भी फूलदेई (Phool dei festival Uttarakhand ) के जैसा उत्सव है। इस पर्व में चैत्र संक्रांति के दिन रली अर्थात शंकर और उसके भाई बास्तु की मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती हैं। कुवारी कन्याएं सुबह छोटी -छोटी टोकरियों में फूल तोड़ कर लाती हैं ,और उन्हें गीत गाते हुए रली वाली दहलीज पर अर्पित करती हैं। चैत्र माह में पड़ने वाले हर सोमवार को व्रत रख कर टोकरी में फूलों के बीच देवी की मूरत रखकर बस्ती के हर घर में जाकर मोडली नामक गीत गाती है। उत्तराखंड के फूलदेई त्यौहार की तरह गृहणिया उन्हें गुड़ और चावल देती हैं।

प्रकृति के स्वागत व् आगामी कृषि की तैयारियों का पर्व है फूलदेई \ फूल्यात  –

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उत्तराखंड के लोकजीवन में पशु व् कृषि प्रधान्य होने के कारण यहाँ के लोकोत्सवों में इसका महत्वपूर्ण स्थान होता है। बसंत के आगमन के साथ जहा एक तरफ खुशियों के साथ प्रकृति के सबसे सुन्दर रूप का स्वागत किया जाता है ,वहीं आगामी कृषि की तैयारियां भी शुरू हो जाती है। इसमें अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरह के विधान पाए जाते हैं। उत्तरकाशी में फूल्यात , गढ़वाल में फुलारी ,कुमाउनी में फूलदेई ( Phool dei festival Uttarakhand ) के रूप में प्रकृति के अनन्य रूप का स्वागत और पूजा की जाती है। 

इन्हें भी पढ़े –

फूलदेई त्यौहार क्यों मनाते हैं ? इससे जुड़ी लोकथायें यहां पढ़ें । 

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