Thursday, April 17, 2025
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कार्तिक पूर्णिमा पर सोमेश्वर के गणनाथ मंदिर का विशेष महत्व है

गणनाथ मंदिर – गणनाथ का अर्थ है, गणो के स्वामी। भगवान भोलेनाथ को समर्पित गणनाथ मंदिर अल्मोड़ा मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर और समुद्र तल से  2116 मीटर की उचाई पर मल्ला स्युनरा में एक पुरानी गुफा में स्थित है। इस मंदिर में अल्मोड़ा सोमेश्वर मार्ग पर रनबन से सात किलोमीटर की सीधी चढाई चढ़कर या अल्मोड़ा -बागेश्वर मार्ग पर ताकुला से 4 किलोमीटर पैदल चलकर पंहुचा जा सकता है।

यहाँ पर प्राचीन गुफा के अंदर मंदिर में शिवलिंग के ऊपर वटवृक्ष की जड़ से चूने का दूधिया पानी टपकता रहता है, जिसे श्रद्धालु अमृत की बुँदे टपकना कहते हैं। यहाँ की विष्णु प्रतिमा के बारे में लोगों का  मानना है कि यह मूर्ति बैजनाथ मंदिर में हुवा करती थी। बाद में यहाँ लाकर स्थापित कर दी गई।

कुमाऊं के इतिहास में गणनाथ मंदिर का धार्मिक के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है। गोरखा शाशनकाल (1790 से 1815 ई) में यहाँ उनकी छावनी हुवा करती थी। 1815 ई में अंग्रेजी सेना का सामना करते हुए ,गोरखा सेनापति हस्तिदल चौतरिया यही वीरगति को प्राप्त हुवा था। इसी वर्ष कुमाऊं के चाणक्य कहे जाने वाले हर्षदेव जोशी का देहावसान भी यही हुवा था।

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गणनाथ मंदिर
फोटो साभार – भगवत नगरकोटी

गणनाथ मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा और होली के शुभावसर पर मेलों का आयोजन भी होता है। कुछ दशक पूर्व कार्तिक पूर्णिमा का मेला जुवारियों की अपील कोर्ट भी हुवा करता था। दीपवाली में हारे हुए जुवारी एक बार अपील के रूप में अपना भाग्य आजमाते थे। प्रसासनिक सख्तियों के बाद जुवे की परम्परा यहाँ समाप्त हो गई है।

कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर गढ़वाल और जागेश्वर मंदिर के सामान कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर निसंतान दंपत्ति, महिलाएं संतान की कामना के साथ गणनाथ मंदिर में  बैकुंठ चतुर्दर्शी को दीप जागरण या खड़ दिया पूजा करती थी। लेकिन अब संतान सुख के लिए दैवीय उपायों में शिथिलता आने के कारण खड़ दिया पूजा भी लगभग बंद हो गई है।

संदर्भ – उत्तराखंड ज्ञानकोष

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कमलेश्वर महादेव मंदिर में खड़ा दीया जागरण से होती है ,निःसंतानों की मनोकामना पूर्ति।
मुंशी हरि प्रसाद टम्टा , उत्तराखंड में दलित और शोषित जातियों के मसीहा।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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