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गंगनाथ देवता की कहानी – कुमाऊं के लोकप्रिय देवता की लोक कथा

Gangnath jagar in hindi

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गंगनाथ देवता की कहानी –

गंगनाथ नेपाल के डोटीगढ़ राज्य के तेजस्वी राजकुमार थे,वो अद्वितीय शक्ति से परिपूर्ण थे।अल्मोड़ा जोशीखोला की रूपमती कन्या भाना के  आमंत्रण पर वे नेपाल डोटी से अल्मोड़ा जोशीखोला दन्या आ गए। आईए जानते हैं, राजकुमार गंगाचन्द से गंगनाथ देवता बनने की और भाना के साथ प्रेम कहानी।

नेपाल का एक छोटा राज्य डोटीगढ़ । डोटी राज्य के राजा थे ,राजा वैभव चंद और उनकी रानी का नाम था ,प्यूला देवी। उनकी संतान नही थी। तब राजा वैभवचंद ने भगवान शिव की पूजा आराधना की।

तब राजा वैभव चंद को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। मगर उसकी कुंडली देख ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की , है राजन आपका पुत्र राजा नही बल्कि एक बलशाली सन्यासी बनेगा।

उस बालक का नाम गंगाचन्द रखा जाता है।राज्य में खुशियां मनाई जाती हैं। गीत गाये जाते हैं। धीरे धीरे  बालक गंगाचन्द बड़ा होता जाता है। उसके तेज और अद्वितीय क्रियाकलापों से सिद्ध हो जाता है कि यह एक तेजस्वी बालक है।

गंगाचन्द की कहानी भी ,गौतमबुद्ध की तरह है, गौतम बुद्ध की तरह गंगू को भी सांसारिक दुख दर्द से परे रख कर ,महल में बंद रखने की कोशीश करते हैं। मगर संसार के दुख दर्द के ज्ञान हो जाता है। वो बहुत परेशान रहते हैं,इस संसार मे इतना दुःख क्यों है ? लोग क्यों परेशान हैं ? आदि सवालों में घिरे रहते हैं।

गंगाचन्द के साथ एक बड़ी अजीबोगरीब घटना होती है,उन्हें   प्रतिदिन सपनों में अल्मोड़ा जोशीखोला की  कन्या भाना बुलाती है। वह उनको अल्मोड़ा जोशी खोला आकर उसे ले जाने को बुलाती है।अपने इस स्वप्न की वजह से वो बहुत परेशान रहते हैं, उनके मन मे बहुत सवाल होते हैं।

रूपमती भाना उनके सपने में आकर उसको बोलती है,अगर माँ का लाल है,तो जोशी खोला आकर मुझे मिल, नही पड़े रहना अपने डोटी गढ़ मे।

ज्यूंन मैं को च्यल हौले , जोशी खोला आले।
मरी माँ को च्यल हैले , डोटी पड़ी रोले।।

गंगाचन्द की नींद खुल जाती है। गंगाचन्द एक रात को सब छोड़ छाड़ कर राज्य से चले जाते हैं। गंगाचंद ने डोटी राज्य का राज काज छोड़ दिया। उसकी माँ प्यूला रानी, और पिता वैभव चंद बहुत दुखी होते हैं। गंगाचन्द अपना राज्य छोड़ कर अपने सवालों का जवाब पाने बहुत भटकते हैं, और जाते जाते वो काली नदी के पास पहुच जाते हैं ।

काली नदी के पास गंगाचन्द पर काली नदी का मसाण हमला कर देता है। गंगाचन्द  मसाण का सामना नही कर पाते हैं, और दुखी होकर भूमिया को याद करते हैं। इतने में वहाँ भगवान गोरिया (गोलू देवता ) आते हैं। और गंगाचन्द को दिव्य शक्ति प्रदान करते हैं।

उस दिव्य शक्ति के सहारे गंगाचन्द  मसाण को परास्त कर देते हैं। और भगवान गोरिया के चरण पकड़ लेते हैं। उन्हें अपनी मन की व्यथा सुनाते हैं। भगवान गोरिया गंगाचन्द की मन की व्यथा सुन कर,गंगाचन्द को गुरु गोरखनाथ के चरणों मे जाने को कहते हैं।  गोलू देवता को अपना पीठी आधार भाई बना कर वो गुरु गोरखनाथ की खोज में निकल जाते हैं। वर्तमान हरिद्वार के जंगलो में उन्हें गुरु गोरखनाथ जी के दर्शन होते हैं।

पहले गुरु गोरक्षनाथ ,गंगाचन्द को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर देते हैं। लेकिन बाद में बालक की जिद के आगे हार जाते हैं। गंगाचन्द को अपना शिष्य बनाने को तैयार हो जाते हैं। गंगाचन्द कि शिक्षा दीक्षा पूरी कर , गंगाचन्द को बोक्साड़ी विद्या ,तंत्र मंत्र ज्योतिष विद्या सीखा कर, उसे गंगाचन्द से गंगनाथ बना देते हैं।

गंगनाथ अपने गुरु को भी अपने मन की व्यथा बताते हैं, बोलते है ,हे गुरु म्यर बाट सुझाओ, अर्थात मुझे मार्ग दिखाओ । गुरु गोरखनाथ उन्हें कहते कि अपने  रास्ते पर चलता जा ,समय आने पर तुझे सब पता चल जाएगा।

गुरु गोरखनाथ जी से शिक्षा दीक्षा प्राप्त कर गंगनाथ अपने घर पहुच कर अपनी माँ से भिक्षाटन करते हैं, उन्हें उनके माता पिता अपने राज्य में वापस आने के लिए ,बहुत समझाते हैं ,लेकिन गंगनाथ नही मानते ,वो कहते हैं, मुझे अपना मार्ग मिल गया है। मुझे मत रोको अब, कुछ दिन तल्ला डोटी में भिक्षाटन करके, वो काली नदी पार कर के वर्तमान चंपावत  जिले में आते हैं

अब गंगनाथ अपनी तिमिर का लट्ठा, झोला ,चिमटी,और अपनी मनमोहनी जोयाँ मुरली लेकर देवीधुरा माँ वाराही के मंदिर में आ गए। वहा उन्होंने माँ वाराही देवी की पूजा अर्चना की और पेड़ो की छाया में आसन लगा कर आराम किया। तेजस्वी गंगनाथ को देख कर सभी लोग मोहित और आश्चर्य चकित हो जाते हैं। इतना तेजस्वी जोगी क्षेत्र में पहली बार देखा है।

गंगनाथ अब अल्मोड़ा क्षेत्र के आसपास पहुच जाते हैं, अलख निरंजन की अलख जगा कर , लोगो के बीच आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। लोग क्षेत्र में ऐसे तेजस्वी  जोगी को देख कर ,अपनी अपनी समस्याओं को लेकर उनके पास जाते हैं।
बाबा गंगनाथ सभी की समस्याओं का निराकरण करते हैं। अपनी ज्योतिष विद्या से सबकी परेशानी को हर लेते हैं। अपनी बुकसाडी विद्या से दुष्टों को दंड देते हैं। पीठी आधार भाई गोरिया की दी दिव्य  से बड़े बड़े बेताल शैतान और मसाण को परास्त करके लोगो को शांति और सुखी जीवन प्रदान करते हैं। लोग उनका गुण गाते नही थकते।

किन्तु बाबा गंगनाथ को कही भी सुकून नही मिलता ,उन्हें रोज सपने में एक औरत आ कर बुलाती है। और उनको बोली मारती है ,मतलब ताने मारती है। कहते हैं भगवान गंगनाथ जी को बोली नही पसंद, मतलब उनको ताने बिल्कुल भी नही पसंद हैं। इसी स्वप्न के कारण गंगनाथ एक स्थान पर धुनि नही रमा पा रहे थे। और परेशान होकर अपनी जोयाँ मुरली ( अलगोजा ) बजाते रहते ,गाव गांव घूमते रहते थे।

घूमते घूमते ,लोगो का कल्याण करते  हुए गंगनाथ पहुच गए जोशीखोला, वहाँ की महिलाओं को बताते हैं, कि वो नेपाल डोटी राज्य के राजकुमार गंगाचन्द हैं। जोशीखोला की रूपसी भाना के स्वप्न आमंत्रण पर उसको ढूढ़ने के लिए दर दर भटक रहा हूँ।

तब महिलाएं बोलती है, कि रूपसी भाना,आपके इंतजार में पलके बिछाए बैठी हैं। वो रोज आपका रास्ता देखती है। और बोलती है, मेरे गंगू आएंगे मुझसे मिलने एक दिन। यह सुन गंगनाथ भाव विभोर हो जाते हैं, और उनसे बोलते है,कि क्या आप मुझे भाना के गाँव का रास्ता बता दोगे ?

फिर स्त्रियां उन्हें अपने साथ लेकर जाती हैं, भाना के गाँव। गंगनाथ को गांव के मंदिर में रोकती हैं। फिर वो भाना के पास जाती हैं। भाना को बताती है, एक तेजस्वी जोगी आये है गाव में, वो अपने को डोटी का राजकुमार गंगाचंद बता रहा है। और वो बता रहा है,कि मैं अपनी प्रेयसी रूपमती भाना से मिलने आया हूँ।

रूपमती भाना के बारे में कहा जाता है कि वो अल्मोड़ा जोशिखोला राजा के दीवान किशन जोशी की बहू थी। ( कुछ कथाओं में उनकी पुत्री भी बताया गया है ) कहा जाता है,कि दीवान साहब ने अपने मानसिक विक्षिप्त भाई की शादी भाना के साथ कराकर अल्मोड़ा जोशिखोला ले आये। भाना के बारे में कहा जाता था, कि भाना और गंगाचन्द का स्वप्न प्रेम होता है। राजुला मालूशाही की तरह । दूसरी लोक कथा है,कि भाना गंगाचन्द पूर्व जन्म के प्रेमी युगल होते हैं।

इतना सुनते ही भाना के आँखों मे चमक आ जाती हैं, वो खुश हो जाती है। और महिलाओं से प्रार्थना करती है,की दीदी मुझे उस तेजस्वी जोगी के पास ले चलो, यदि वो मेरे सपनों के राजकुमार होंगे तो ,मैं उन्हें पहचान लुंगी।

मंदिर में जाते ही भाना गंगनाथ को पहचान लेती है। दोनो प्रेमियों का मिलन होता है। दोनो प्रेमी बाते करते हुए ,अपने अतीत में खो जाते हैं। दोनो हँसते खेलते हैं। और दोनों प्रेमी मीठी मीठी बाते कर अपने भविष्य के सपने बुनते हैं। दोनो को हँसते खेलते देख हाथों में हाथ डाले रोज अपने प्रेम को आगे बढ़ाते हैं। गंगाचन्द ,दन्या जोशिखोला के पास  कुटिया डाल कर रहना शुरू कर देते हैं।

गंगनाथ की सेवा के लिए झपरूवा लोहार को रख देती है। झपरूवा अपनी सेवा से गंगनाथ को खुश कर देता है। धीरे धीरे गंगनाथ देवता का खास बन जाता है। धीरे धीरे भाना और गंगनाथ का प्रेम परवान चढ़ता है। दोनो के रोज मिलन का सिलसिला शुरू हो जाता है। और यह खबर सारे गांव में फैल जाती है।

किशन जोशी अल्मोड़ा चंद राजा के वहा दीवान थे। वो जोशिखोला रहते थे। और वे पुरुष प्रधान समाज के समर्थक थे।

किशनजोशी को भी यह खबर पता चल जाती है। किशनजोशी दीवान बहुत कुपित होते हैं। वो अपने सेवको के संग  गंगनाथ को मारने की योजना बनाते हैं। उनको पता चलता है,कि गंगनाथ के पास गुरु गोरखनाथ के दिये दिव्य वस्त्र हैं। पीठी आधार भाई गोरिया की दी हुई दिव्य शक्ति है। और स्वयं गंगनाथ का जन्म महादेव के आशीर्वाद से हुवा है। इसलिए उससे आमने सामने की लड़ाई में जितना मुश्किल है।

वो गंगनाथ को छल से मारने की योजना बनाते हैं। किशनजोशी व उनके सेवक होली के दिन अपनी योजनानुसार ,गंगनाथ जी को छल से भांग पिला देते हैं। अत्यधिक भांग पीने के कारण वो बेसुध हो जाते हैं। इसी समय का लाभ लेकर ,किशनजोशी और उनके सेवक गंगनाथ के दिव्य वस्त्र निकाल के अलग कर लेते हैं, और गंगनाथ जी की हत्या कर देते हैं। उनका सेवक झपरूवा और प्रेमिका भाना उनको बचाने की बहुत कोशिश करते हैं, झपरूवा उनको छुपा देता है।

गंगनाथ जी को बचाने की कोशिश के जुर्म में गांव वाले झपरूवा लोहार को भी मार देते हैं। कहते हैं। कहते हैं भाना उस समय गर्भवती होती है। गंगनाथ की ये हालत देखकर , भाना बामणी कुपित हो जाती है,और  रोते रोते फिटकार ( श्राप ) देती है,कि ये अंचल सुख जाए, यहां का विनाश हो जाय। और किशनजोशी और गाव वाले उसे भी मार देते हैं।

गंगनाथ देवता की कहानी
बाबा गंगनाथ धाम, फ़ोटो साभार फेसबुक

तीनो के मारे जाने के के तीन दिन बाद, गाव में कोहराम मच जाता है, गोठ के गाय बछे मरने ,शुरू और जोशिखोला के लोग ,बीमार और पागल होना शुरू हो जाते हैं। पूछ, पुछ्यारी करने के बाद पता चलता है,कि भाना गंगनाथ, झपरूवा की आत्मायें ये सब कर रही हैं। फिर जागर लगाई जाती है, तीनो का अवतार होता है। जोशिखोला के लोग दंडवत बाबा गंगनाथ के चरणों मे गिर कर माफी मांगते हैं। तब गंगनाथ देवता आखों में आंसू और मुस्कान एक साथ लाकर कहते हैं,

“रे सौकार!  मेरी के गलती छि, म्यर तो पुर परिवार उजाड़ दे !!! मी गंगनाथ छि रे गंगनाथ! खुशी हुनु तो, फुले फुलारी करि दिनु। नाराज ह्वे गयो तो, शमशान कर दिनु रे।”

बड़ी मुश्किल से मनोती कर के उन तीनों को गाव वाले शांत करते हैं। और उनके मंदिर की स्थापना की जाती है। मंदिर में बाबा गंगनाथ देवता और भाना बामणी और उनके पुत्र बाल रत्न के रूप में पूजा की जाती है। और साथ मे बाबा गंगनाथ के सेवक का झपरूवा का मंदिर बना कर,उनकी पूजा की जाती है।

गंगनाथ देवता अल्मोड़ा अंचल के लोक देवता हैं। अल्मोड़ा क्षेत्र के आस पास के गावों में गंगनाथ की लोक देवता के रूप में पूजा होती है। अल्मोड़ा क्षेत्र में उनके कई मंदिर हैं। अल्मोड़ा से 4-5 किमी दूर ताकुला में उनका मंदिर हैं। गंगनाथ देवता लोककल्याण कारी देवता हैं। जो कोई दुखिया उनके शरण मे जाता है। उसका कल्याण अवश्य करते हैं।

गंगनाथ मंदिर अल्मोड़ा, फ़ोटो साभार -बाबा गंगनाथ धाम फेसबुक पेज।

निवेदन – 

मित्रो उपरोक्त कथा, में हमने आपको भाना गंगनाथ प्रेम कथा के बारे में बताया है, उपरोक्त कथा, लोक जागर कथाओं और
Vihan group of Almora Uttarakhand द्वारा नाटक के आधार पर लिखा गया है। इसका मूल आधार गाव में गाई जाने वाली गंगनाथ देवता की जागर है।

यदि उपरोक्त कथा में आपको कोई त्रुटि लगती है, तो आप हमें कंमेंट या हमारे फेसबुक पेज देवभूमि दर्शन में मैसेज भेज कर अवगत करा सकते हैं। मित्रों आप सबसे निवेदन है,कि इस कथा को शेयर करें। अपनी लोकसंस्कृति का प्रचार अधिक से अधिक करे ।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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