Monday, May 26, 2025
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देहली ऐपण | यक्ष संस्कृति की देन है प्रवेश द्वार के आलेखन की यह परम्परा ।

देहली ऐपण :-

प्रवेशद्वार के अधस्तल (देहली) पर किये जाने वाले ऐपणों को ‘देहली ऐपण’ या ‘देहली (धेई) लिखना’ कहा जाता है। कुमाऊं के निवासियों में अल्पना की यह परम्परा बहुत लोकप्रिय तथा प्राचीन है। ऐसा लगता है कि प्रवेशद्वार के आलेखन की यह परम्परा यक्ष संस्कृति की देन है। महाकवि कालिदास की अमरकृति ‘मेघदूत’ में हिमालयस्थ अलकापुरी  का निवासी यक्ष अपने घर का परिचय देते हुए मेघ से कहता है-

“द्वारोपान्ते लिखितवपुषौ शंखपद्मौ च दृष्टवा”

‘वहां पर मेरी पत्नी के द्वारा द्वारस्थल (देहरी) पर लिखित शंख तथा कमल पुष्प को देखकर तुम्हें उसे पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होगी । यहां पर ऐसा कोई पर्वोत्सव एवं आनुष्ठानिक उत्सव नहीं जिसमें देहली ऐपण न किया जाता हो। इतना ही नहीं यहां पर तो देहली पूजन स्वयं एक स्वतंत्र उत्सव के रूप में पूरे महीने मनाया जाता है।

फूल संक्रांति को प्रारम्भ होने वाले इस उत्सव में गृहणियां देहली स्थल को पहले गोबर मिट्टी से तथा उसके बाद गेरुआ या लाल मिट्टी से लीप कर उस पर बिस्वार से विभिन्न प्रकार के रेखांकनों के माध्यम से अनेक कलात्मक रेखाचित्रों का अंकन करती हैं। और यह प्रक्रिया विषुवत संक्रान्ति (बिखौती) तक चलती है। इसके अलावा आश्विन संक्रांति और दीपावली के समय भी कुमाऊँ के घरों की देहली ऐपण से सजाया जाता है।

देहली ऐपण | यक्ष संस्कृति की देन है प्रवेश द्वार के आलेखन की यह परम्परा ।
फोटो साभार : ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती

इसमें लाल पृष्ठभूमि पर श्वेत चावल के घोल से पूरित ये चित्र देखते ही बनते हैं। यों तो अन्य प्रकार के ऐपणों में भी नियत चित्रांकन के परिधीय भागों में अलंकरणात्मक चित्रांकन का मनाही रहती है पर देहरी ऐपण में चित्रकार को यथेच्छ रूप में कल्पना एवं सौन्दर्य बोध को अभिव्यक्तका स्वातंष्य रहता है। अर्थात् इनके आरेखन में कोई आनुष्ठानिक प्रतिबन्ध न होने से इसमें उसे अपनी कल्पना व कलात्मकता का उन्मुक्त प्रदर्शन करने की छूट रहती है। इसीलिए इनमें पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है।

ऐपण क्या है –

उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में शुभकार्यों के अवसर पर द्वार पर और मंदिर में उँगलियों से चावल के घोल से प्राकृतिक खड़िया ( लाल गेरू ) के आधार पर रेखांकन और आलेखन बनाना जिससे सकरात्मक ऊर्जा का अहसास होता है। उसे ऐपण कहते हैं।

इन्हे भी देखें :–

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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