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रिटायरमेंट के पैसो के लिए कलयुगी बच्चों ने पिता को मौत के घाट उतारा !

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रिटायरमेंट

साल के जाते -जाते उत्तराखंड के अल्मोड़ा से एक झकझोर देने वाली खबर मिली। केवल रिटायरमेंट के पैसों के लिए कलयुगी बच्चों ने पिता को मौत के घाट उतार दिया। जिस बाप ने अपनी संतान के उज्जवल भविष्य के लिए अपना जीवन दाव पर लगाया,उनके लिए कष्ट सहा उसी संतान ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मृतक सुन्दर लाल तीन माह पहले आई टी बी टी बी से रिटायर हुए थे। और नौ वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का देहांत पीलिया बिगड़ने से हो गया था। तब से वे तीनों बच्चों की देखभाल कर रहे थे। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए देहरादून में रखा ,जितना हो सकता था उतना उनके भविष्य सुधारने के लिए किया।

सूंदर लाल की बड़ी बेटी पी एच् डी कर चुकी थी। और बेटा ऍम कॉम कर चुका था। इन दोनों के साथ बड़ी बेटी का मित्र और नाबालिक बेटी भी इस कृत्य में शामिल थी। समाचार पत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर अल्मोड़ा लमगड़ा क्षेत्र के भागादेवली क्षेत्र का रहने वाला सुन्दर लाल रिटायरमेंट के बाद अपने छोटे भाई के साथ गांव में रह रहा था। प्राप्त जानकारी के आधार पर पिछले गुरुवार को चारों गावं पहुंचे ,उसके अगले दिन चारों का सुंदरलाल से झगड़ा हुवा। छोटे भाई के परिवार के दखल देने पर उन्हें भी पीटकर वहां से भगा दिया। पुलिस और समाचार पत्रों के अनुसार , चारों ने सुंदरलाल के हाथ पीछे बांधे और मुँह में कपडा ठूंस कर दराती और डंडे से हमला कर दिया। मृतक सूंदर लाल के घर से आ रही चीख पुकार सुनकर ग्रामवासी आये उन्होंने ताला खोल कर देखा तो सुंदरलाल की लाश पड़ी हुई थी।

चारों आरोपियों ने पोलिस को बताया कि उनके पिता रिटायरमेंट आकर गांव में उनके चाचा के साथ रह रहे थे। उन्हें देहरादून में पढाई ,लिखाई और खाने पीने के लिए पैसा नहीं दे रहे थे। इसलिए उन तीन भाई बहनो और एक दोस्त ने मिलकर उन्हें मार दिया। पोलिस थ्योरी और समाचार पत्रों व् सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह मामला मानवता को शर्मसार करने वाला है।

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फोटो सोर्स – समाचार चैनल। 

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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