Monday, March 31, 2025
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छपेली नृत्य उत्तराखंड : इतिहास, महत्व और सांस्कृतिक विरासत | Chhapeli folk dance of Uttrakhand

छपेली नृत्य उत्तराखंड : कुमाऊँ की लोक संस्कृति में छपेली गीत (Chhapeli song ) एक ऐसी मुक्तक नृत्य-गान शैली है, जो अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण लोगों के दिलों में बसी हुई है। छपेली लोक नृत्य और छपेली लोक गीत न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि यह कुमाउंनी समाज के प्रेम, श्रृंगार और जीवन के विविध रंगों को भी दर्शाते हैं। यह पारंपरिक कला विवाह, उत्सवों और अन्य शुभ अवसरों पर आयोजित की जाती है, जिसमें गायन और नृत्य का समन्वय इसे दृश्य और श्रव्य काव्य का एक अनुपम संगम बनाता है।

छपेली नृत्य उत्तराखंड का स्वरूप : –

छपेली लोक नृत्य में एक मुख्य गायक और एक नर्तक की अहम भूमिका होती है। मुख्य गायक प्रायः हुड़का वादक होता है, जो गीतों को स्वर देता है। पहले इस नृत्य में नर्तक के रूप में महिलाएं भाग लेती थीं, लेकिन अब यह भूमिका स्त्री वेशधारी पुरुष निभाते हैं ।

हालांकि शादी विवाह जैसे पारिवारिक या त्योहार रूपी सामाजिक उत्सवों में महिलाएं भी इस नृत्य में हिस्सा लेती हैं । नर्तक अपने हाथ में रूमाल लिए अंग-संचालन और भाव-भंगिमाओं के साथ नृत्य करता है, जो गीत की भावनाओं को जीवंत करता है। यह नृत्य प्रेमाभिनय पर आधारित होता है, जिसमें स्त्री और पुरुष पात्र प्रेम के विविध रूपों को प्रस्तुत करते हैं। समूह के गायक परस्पर प्रश्नोत्तर शैली में गाते हैं, और जब बहस छिड़ जाती है, तो गायक अपने गीत की विषयवस्तु बदल देते हैं ।

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इस नृत्य में हुड़का, बांसुरी और अन्य वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है, जो इसे और आकर्षक बनाते हैं। छपेली की अभिनयात्मकता और नृत्य वैविध्य इसे ‘लोकनाट्य’ का स्वरूप प्रदान करते हैं।

छपेली गीत की संरचना : –

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छपेली लोक गीत की रचना नृत्य और गायन के आधार पर होती है। इसमें एक या दो पंक्तियों का टेकपद या स्थायी होता है, जिसे समूहगान के रूप में बार-बार गाया जाता है। इसके बाद जोड़, न्यौली आदि के चरण पल्लव या अंतरा के रूप में आते हैं, जिन्हें केवल मुख्य गायक गाता है। यह संरचना नृत्य और गायन के बीच तालमेल बनाए रखती है। विवाह जैसे अवसरों पर छोलिया नृत्य के साथ भी छपेली गायी जाती है, जिसमें ढोल, दमामे, तुरी, झाल और मसकबीन जैसे वाद्य यंत्रों का समावेश होता है।

छपेली गीत का विषय और भाव : –

छपेली गीतों ( Chhapeli song ) में प्रमुख रूप से श्रृंगार और प्रेम का चित्रण होता है। यह प्रेमपूर्ण भावुकता की अभिव्यक्ति का एक सुंदर माध्यम है। प्रश्नोत्तर शैली में प्रेमी-प्रेमिका के बीच संवाद, सौंदर्य वर्णन, परिहास और प्रेम की विभिन्न दशाओं का अंकन इसे जीवंत बनाता है। उदाहरण के लिए –

“बिर्ति ख्वाला पानी बगौ उकाला। तेरौ मेरौ जोड़ौ हुंछ पगाला।।”

यह पंक्ति युवा प्रेम की उन्मुक्तता और उल्लास को दर्शाती है। वहीं, कुछ गीतों में प्रिया के हंसने, बोलने और रूप पर प्रेमी के मोह का वर्णन भी मिलता है –

“अल्मोड़ा मोहनी हंसनी किलै नै। हंसन हंसछी, बुलानी किलै नै।।”

कहीं प्रेमी अपनी प्रिया के सौंदर्य पर मुग्ध है, तो कहीं वियोग की पीड़ा भी इन गीतों में झलकती है। इसके अलावा, समसामयिक संदर्भ, व्यंग्य और हास्य भी छपेली का हिस्सा हैं। जैसे, फैशन और युद्ध के उल्लेख से यह गीत लोक जीवन के बदलते रंगों को भी दर्शाते हैं।

छपेली गीत का सांस्कृतिक महत्व : –

छपेली केवल एक नृत्य या गीत नहीं, बल्कि कुमाऊँ की लोक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह प्रेम, उमंग और जीवन के उत्साह को व्यक्त करने का माध्यम है। इसके गीतों में छंदक (टेक) और सम्पद (अंतरा) की संरचना इसे संगीतमय बनाती है, जो नर्तक, वादक और गायक को एक सूत्र में बांधती है। यह लोक संस्कृति पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है।

छपेली गीत ( Chhapeli song ) कुमाऊँ की लोक परंपरा का एक ऐसा रत्न है, जो नृत्य, गायन और अभिनय के मिश्रण से लोक जीवन की भावनाओं को उकेरता है। चाहे वह विवाह का उत्सव हो या कोई अन्य शुभ अवसर, छपेली लोक नृत्य और छपेली लोक गीत हर मौके को यादगार बनाते हैं। यह कला न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि कुमाउंनी संस्कृति की समृद्धि को भी विश्व भर में पहचान दिलाती है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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