विगत वर्षों की तरह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व योगदान देने वाले चनौदा सोमेश्वर के वीर शहीदों को जनता ने और जनप्रतिनिधियों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रतिवर्ष 2 सितंबर को चनोदा सोमेश्वर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी शाहदत देकर हमारी स्वतंत्रता सुनिश्चित करवाने वाले शहीदों को सम्मान और भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ याद किया जाता है।
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क्या हुवा था उस दिन?
चनोदा सोमेश्वर क्षेत्र के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश की आजादी में और अंग्रेजों के साथ लड़ाई में अपना विशेष योगदान दिया। 8 अगस्त 1942 ई में मुंबई में कांग्रेस के मुख्य कार्यकर्ताओं के पकड़े जाने के विरोध में 9 अगस्त 1942 से उत्तराखंड के जगह जगह में विरोध शुरू हो गए। जिनमे देघाट कांड, सालम की क्रांति जैसी घटनाएं प्रमुख हैं। इसी विरोध का दमन करने के लिए कठोर दमनकारी नीति अपनाई।
2 सितंबर 1942 ,जन्माष्टमी के दिन चनौदा सोमेश्वर घाटी के गांधी आश्रम से 42 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर एक्टन द्वारा गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल में कैद कर लिया गया। अंग्रेजों ने उन्हें बेरहमी से पीटा और अत्याचार किया। जिस कारण उनमें से कुछ सेनानियों ने जेल में रहते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। स्वतंत्रता के लिए देश में जितने भी आंदोलन हुए उन आंदोलनों में चनौदा (सोमेश्वर घाटी ) (जो बौरारो घाटी के नाम से जानी जाती हैं) के वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने प्रतिभाग किया और देश को आजाद करने में अपना अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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चनौदा सोमेश्वर के इन 6 शहीदों ने दी अपने प्राणों की आहुति-
2 सिंतबर के दिन बेरहमी से पीटते हुए अंग्रेजो ने स्वतंत्रता सेनानियों को गांधी आश्रम चनोदा से गिरफ्तार कर लिया था। इनमें से इन 6 स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
- उदय सिंह पधान
- वाक सिंह दोसाद
- त्रिलोक सिंह पांगती
- बिशन सिंह बोरा
- किशन सिंह बोरा
- रतन सिंह कबडौला