Sunday, November 17, 2024
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भगनौल गीत और बैर-भगनौल एक पारम्परिक कुमाऊनी लोकगीत

भगनौल गीत और बैर भगनोल गीत कुमाउनी लोक गीतों की एक विधा है। भगनोल गाने वाले गायक को भगनौली कहते हैं। भगनोल में गायक और उसके साथ उसके सुरों को विस्तार देने वाले (जिसे ह्योव भरना कहा जाता है) दो या तीन साथी होते हैं। और बैर-भगनोल दो पक्षो के बीच एक प्रकार का गेय वाकयुद्ध होता है। जिसमे दोनो पक्ष एक दूसरे को भगनोल गा कर सवाल जवाब करते हैं। गायक की कुशलता उसके ज्ञान,वाकचातुर्य और प्रत्युत्पन्नमतित्व पर निर्भर करती है।

आईए जानते हैं प्रसिद्ध कुमाउनी कवि, गीतकार श्री राजेन्द्र ढैला जी के शब्दों में  भगनोल और बैर भगनौल गीत के बारे में विस्तार से –

प्रस्तुत लेख में बैर-भगनौल और भगनौल के बारे में जानकारी हिंदी और कुमाउनी दोनो भाषाओं में दी गई है।

बैर- भगनौल गीत के बारे में कुमाउनी में जानकारी :-

कुमाऊनी में “बैर” का अर्थ –

बैर (वाक युद्ध) आपणि बोलि भाषा में शास्त्रार्थ जस छू। बैरी कौतिकों में एकबटी बेर हुड़ुक, चिमट दगड़ जोड़-पाँठ कैई बाद एक मुख्य पद गानी, सवाल-जवाब करनी। बैर को विषय पर हैंल यो पूर्व निर्धारित नि हन, इमें जाति धर्म,श्लोक-शास्त्र, नीति-रीति, वेद-पुराण, राग-द्वेष, किस्स-कहाणि, चुटकुल गद्य या पद्य द्वीनू मजी म्यसै बेर सवाल-जवाब करनी। बैरियांक ज्ञान, विवेक, सहूर, लय, ताल, तुक, गइ, वाकपटुता, अनुभव, स्वभाव, हाजिर जवाबी और सवाल-जवाबूंक लोग आनंद ल्हिनी।

भगनौल –

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 भगनौल में लै सब कुछ सवाल-जवाब बैर जसै हनी, फरक इतुकै छू, भगनौल देब खैइ या क्वे शौकीनदारा’क घर गाई जानी, भगनौली न्योती जानी। भगनौल में जोड़-पाँठ कैई बाद द्वी तीन झण ह्योव लगानी। भगनौल में हुड़ुककि जरवत लै न पड़नि अर्थात बिना हुड़ुकै लै भगनौल गायन है सकूं। लय-बैर हैबेर जरा धीमा और माठु-माठ हुंछ। जकैं सुणिबेर वियोगी-वैरागी मन कैं छपि-छपि लागैं।

भगनोल गीत

बैर भगनौल गीत के बारे मे हिंदी में :-

 बैर –

अपनी बोली भाषा में एक प्रकार का शास्त्रार्थ जैसा है बैर अर्थात वाक युद्ध। बैरी मेले कौतिकों में इकट्ठा होकर हुड़का और चिमटा के साथ जोड़ (अंतरा) पॉठा कहने के बाद एक मुख्य पद गाते हैं। सवाल जवाब करते हैं। बैर किस विषय पर होंगे यह पूर्व निर्धारित नहीं होता। इसमें जाति, धर्म, श्लोक शास्त्र, नीति रीति, वेद पुराण राग द्वेष, किस्से कहानी, चुटकुला गद्य या पद्य दोनों में मिला कर सवाल जवाब करते हैं। बैरियों का ज्ञान, विवेक, सहूर, लय, ताल, तुक, गायिकी, वाकपटुता, अनुभव, स्वभाव, हाजिर जवाबी और सवाल जवाबों का लोग आनंद लेते हैं।

भगनोल –

भगनौल में भी सब कुछ बैर जैसा ही होता है। थोड़ा बहुत अंतर रहता है। जैसे इसमें सवाल जवाब भी हों जरूरी नहीं है। इसमें हुड़का होना भी जरूरी नहीं है। यह बिना हुड़के के भी गाए जाते हैं। यह देवता के आंगन में गाए जाते हैं या फिर किसी शौकिनदार के घर पर। भगनौली बुलाए जाते हैं। भगनौल में जोड़ (अंतरा) पांठा कहने के बाद दो तीन लोग हेव लगाते हैं। इसकी लय बैर से थोड़ी धीमी रहती है। जिसे सुनकर वियोगी-बैरागी मन अति प्रसन्न और तृप्त हो जाता है।

इसे भी पढ़े :- साहित्यकार गौरा पंत शिवानी की प्रसिद्ध कहानी “लाटी”

भगनौल लोक गीत को अधिक समझने और जानने के लिए , प्रसिद्ध लोक गायक नैननाथ रावल और टीम घुघुती जागर का ये भगनोल गीत का विडियो देखें –

उत्तराखंड के पारम्परिक लोकगीतों का आनंद लेने के लिये यहाँ क्लिक करें।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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