Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

उत्तराखंड की भूमि न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की प्राचीन जातीय और सांस्कृतिक विरासत भी अत्यंत समृद्ध है। उत्तराखंड के मूल निवासियों की बात करें तो यहाँ खस और किरात जातियों का प्रमुख स्थान रहा है। ये जातियाँ इस क्षेत्र में प्राचीन काल से निवास कर रही थीं और इनका इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। उत्तराखंड के मूल निवासी : खस और किरात – 1. किरात जाति – हिमालय के प्राचीन निवासी – किरात जाति उत्तराखंड में आर्यों के आगमन से पहले ही यहाँ बस चुकी थी। ये लोग मुख्य रूप से नेपाल, असम,…

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कुमाऊनी होली गीत (Kumaoni Holi Geet lyrics) | कुमाऊनी होली लिरिक्स – देश की प्रसिद्ध होलियों में से एक है कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi)। डेढ़ से दो महीने तक चलने वाला यह त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौष माह से बैठकी होली (Baithki Holi) और रंग एकादशी से खड़ी होली (Khadi Holi) की रौनक शुरू हो जाती है। कुमाऊनी खड़ी होली (Kumaoni Khadi Holi) ब्रज और कुमाऊनी मिश्रित भाषा में गाई जाती है, जबकि बैठकी होली (Baithki Holi) में उर्दू का प्रभाव भी देखने को मिलता है। हमने पहले ही कुमाऊनी होली…

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मार्च का महीना शुरू होते ही उत्तराखंड (Uttarakhand) के पहाड़ों में बसंत की बयार चलने लगती है, और खासतौर पर कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi) का रंग पूरे क्षेत्र में बिखरने लगता है। यह पर्व बसंत पंचमी से ही बैठक होली (Baithak Holi) के रूप में प्रारंभ होता है, और होली एकादशी से खड़ी होली (Khadi Holi) की रौनक अपने चरम पर पहुंचती है। कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi) भारत की सबसे प्रसिद्ध सांस्कृतिक होलियों में से एक मानी जाती है, जिसमें लोक भाषा और ब्रज भाषा  का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इस पर्व में कई भक्ति एवं श्रृंगार रस…

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होली का त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ के Kumaoni Mahila Holi Geet यानी महिला होली गीत अपनी अनूठी मधुरता और परंपरा के लिए जाने जाते हैं। इनमें नारी स्नेह, परिवारिक रिश्तों और सांस्कृतिक धरोहर की झलक देखने को मिलती है। आज हम आपके लिए एक लोकप्रिय कुमाउनी महिला होली गीत “Mero Rangilo Devar Ghar” के लिरिक्स और उसके पीछे की सांस्कृतिक विशेषताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। मेरो रंगीलो देवर घर | Traditional Kumaoni Holi Geet Lyrics मेरो रंगीलो देवर घर ऐरोछो 🔸मेरो रंगीलो देवर घर ऐरोछो 🔹 सासु हु लड्डू, ननद…

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कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi) उत्तराखंड की एक अनूठी सांगीतिक परंपरा है, जिसका इतिहास चंद राजाओं के समय से जुड़ा है। जानिए बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली के महत्व, परंपराएँ और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी विशेष जानकारियाँ। होली : सनातन परंपरा का प्रमुख त्यौहार :- होली सनातन परंपरा का प्रमुख त्यौहार है। भारत में यह अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में अलग-अलग प्रकार से होली मनाई जाती है। इनमें दो प्रमुख होली उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं – उत्तराखंड की कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi) और बरसाने की होली। https://youtu.be/Z1qsOyQcegQ?si=A_zEkUMQACOp4arD बरसाने…

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उत्तराखंड (Uttarakhand Itihas) में अनेक लोकदेवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहाँ ‘खुदापूजा’ नामक एक अल्पज्ञात लेकिन अनोखी पूजा भी होती है? यह रहस्यमयी अनुष्ठान पिथौरागढ़ जनपद की सीमांत तहसील मुनस्यारी के कुछ गाँवों में विशेष रूप से मनाया जाता है। खास बात यह है कि यह पूजा भगवान शिव के अलखनाथ रूप की आराधना के रूप में होती है, लेकिन इसे ‘अलखनाथ पूजा’ के बजाय ‘खुदापूजा’ कहा जाता है। खुदापूजा का अनूठा अनुष्ठान – मूर्ति नहीं, केवल आस्था ! डा. निवेदिता (2004:138-41) के अनुसार, खुदापूजा के देवस्थल में किसी मूर्ति की स्थापना नहीं…

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धिन्नरपाता लोक नृत्य : कुमाऊं क्षेत्र (Kumaon region) अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत (rich cultural heritage) और पारंपरिक लोक नृत्यों (traditional folk dances) के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है “धिन्नरपाता” (Dhinrrapata), जो मुख्य रूप से बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला एक लोक नृत्य (folk dance) है। यह नृत्य आठू के त्योहार के दौरान या उससे पहले घरों में खेला जाता है। धिन्नरपाता को नृत्य की बजाय एक बाल क्रीड़ा या केलि के रूप में जाना जाता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। धिन्नरपाता लोक नृत्य की विशेषताएं (Features of Dhinrrapata Dance) – धिन्नरपाता नृत्य में बालिकाएं…

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उत्तराखंड की पारंपरिक लोकधुनों में माया माया झन कए (Maya Maya Jhan Kaye) गीत ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इस गीत में पहाड़ों की मोहब्बत, जीवन की वास्तविकता और (kumauni folk song) की अनमोल धरोहर का सुंदर समावेश किया गया है। माया माया झन कए गीत का वीडियो देखें : https://youtu.be/CMvi4TICKVo?si=LpbtzPvLgxbuFw-g गीत का परिचय | (Uttarakhand Folk Song Details)  – गीत का नाम : माया माया झन काए गायक : राजेंद्र प्रसाद संगीतकार : रंजीत सिंह गीतकार: राजेंद्र ढैला कैमरामैन एवं एडिटिंग : गिरीश शर्मा रिकॉर्डिंग स्टूडियो : A Plus Studio, Dehradun चैनल : घुगुती जागर RD गीत…

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नीम करौली बाबा के चमत्कार  – नीम करौली बाबा के लाखों भक्त हैं, जो भारत से लेकर विदेशों तक फैले हुए हैं। एप्पल के सीईओ से लेकर फेसबुक के संस्थापक जैसी हस्तियां भी बाबा का अलौकिक आशीर्वाद प्राप्त कर चुकी हैं। बाबा के जीवन काल और उनके महापरिनिर्वाण के बाद, भक्तों ने कई चमत्कारी अनुभव साझा किए हैं। इन अद्भुत घटनाओं को “नीम करौली बाबा के चमत्कार” के रूप में संकलित किया गया है। 1. जब भंडारे में घी कम पड़ गया – कैंची धाम में बाबा के समय से लेकर आज तक भंडारे चलते आ रहे हैं। एक बार…

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युगशैल ( Yugshail ) एक ऐसा नाम जो भारतीय इतिहास के पन्नों में गुमनामी के बीच छिपा हुआ है, आज भी अपनी ऐतिहासिक महत्ता के लिए जाना जाता है। यह प्राचीन राज्य, जो ईसा पूर्व पहली शताब्दी से लेकर पांचवीं शताब्दी तक फला-फूला, भारत के उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित था। युगशैल का उल्लेख नृपति शीलवर्मन के प्राचीन जगतग्राम बाड़ेवाला (देहरादून) से प्राप्त अश्वमेध यज्ञ के इष्टिका लेख में मिलता है, जो इस राज्य के अस्तित्व का एकमात्र प्रमाण है। यह लेख, जो ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है, इस प्राचीन राज्य के इतिहास को समझने की कुंजी प्रदान करता है। युगशैल…

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