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माघ मेला 2023
माघ मेला प्रयागराज में इस वर्ष 6 जनवरी 2023 से शुरू होगा। प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा से माघ मेला शुरू होता है ,और इसका समापन माघपूर्णिमा के दिन होता है। माघ मेला हिन्दू धर्म का वार्षिक उत्सव है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ (जनवरी और फरवरी) के महीने में मनाया जाता है। इसे मिनी कुंभ मेला भी कहा जाता है। यह मेला सनातन धर्म के लोगों लिए बहुत महत्व रखता
है। लोग त्रिवेणी संगम, 3 पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम स्थल पर आते हैं। और यहाँ एक महीना कल्पवास करते हैं। माघ का महीना दान धर्म स्नान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
माघ मेला 2023 स्नान तिथियां \लिस्ट –
- 6 जनवरी 2023 पौष पूर्णिमा को पहला स्नानं
- 15 जनवरी 2023 मकर संक्रांति के दिन दूसरा स्नान
- 21 जनवरी मौनी अमावस्या पर तीसरा स्नान
- 26 जनवरी बसंत पंचमी पर चौथा स्नानं।
- 05 फरवरी माघ पूर्णिमा पर पांचवा स्नान
- 18 फरवरी महाशिवरात्रि पर छठा स्नानं
कल्पवास क्या है
कल्पवास का मतलब होता है ,संगम तट पर निवास करते हुए वेदों का अध्ययन और ध्यान करना। प्रयाग के कुम्भ मेले और प्रत्येक वर्ष होने वाले माघ मेले में कल्पवास का अधिक महत्व माना जाता है। कल्पवास भक्ति और धैर्य का प्रतीक माना जाता है। कल्पवास दौरान दिन में एक बार भोजन किया जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो कल्पवास का प्रण लेता है ,उसके पूर्वजन्मों के पाप कट जाते हैं तथा वह मानव अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है।
कल्पवास प्राचीन सनातन संस्कृति की महान देन है। कल्पवास का विधान हजारों वर्षों से चला आ रहा है। प्राचीन काल में तीर्थराज प्रयाग ऋषिमुनियों की तपोस्थली थी। यहाँ गंगा यमुना के आस पास जंगल था। इस जंगल में ऋषिमुनि जप तप करते थे। उस समय ऋषिमुनियों ने सामान्य गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान बनाया था। इस कल्पवास के दौरान गृहस्थों को वेद और सनातन धर्म की शिक्षा दीक्षा दी जाती थी। जो भी सामान्य नागरिक कल्पवास के लिए आता था ,वो पर्णकुटीर में रहता था। कल्पवास के दौरान कल्पवासी एक बार भोजन करता है ,और धैर्य अहिंसा ,और भक्तिपूर्ण भावना से रहता है। कल्पवासी को सदाचारी , शांत मन और समस्त इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने वाला होना चाहिए।
प्रयागराज में कल्पवास की परम्परा सदियों से चल रही है। प्रयाग के संगम पर प्रतिवर्ष माघ मास के दौरान पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास किया जाता है। प्रतिवर्ष माघ मेला ,कुम्भ ,अर्धकुंभ मेले के रूप में आयोजित किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक कल्प भगवान ब्रह्मदेव के एक दिन को कहा जाता है जिसकी अवधि चार युगों के बराबर की अवधि होती है। अर्थात एक कल्पवास चार युगों के तप ध्यान ,दान के बराबर होता है। और इसमें अर्जित पुण्य फल चार युगों में अर्जित पुण्य फल के बराबर होता है।
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