तीन तीतरी तीन तीन लोक कथा – मित्रों उत्तराखंड की सम्रद्ध प्रकृति में विचरण करने वाले पक्षियों की ध्वनि से उत्तराखंड की कोई न कोई लोक कथा अवश्य जुड़ी है। इसे एक दिव्य संयोग समझे या उत्तराखंड के पहाड़ों पर निवास करने वालो की उच्च कल्पनाशीलता, जो प्रकृति से इतना प्यार करते है कि ,प्रकृति की ध्वनि को अपने जीवन के दुख, सुखों से जोड़कर देखते हैं।
गर्मी के मौसम में उत्तराखंड के पहाड़ों एक चिड़िया तीन तीतरी तीन -तीन का करुण स्वरवादन करती है। कौन है ये चिड़िया ? और इतने मार्मिक स्वर में तीन तीतरी तीन तीन क्यों गाती है ? आइये जानते हैं, इस कुमाऊनी लोक कथा में…
पहाड़ के एक गावँ में एक गरीब लड़की रहती थी । उसका अपनी माँ की सिवा इस दुनिया मे कोई नही था। जब वो छोटी थी तब उसके पिता का देहांत हो गया था। उसकी विधवा माँ ने बड़े कष्टों से अपनी लड़की का पालन पोषण किया। कुली काम ( मजदूरी ) , लोगों के घर काम करके और आधा पेट खाकर अपनी लड़की को पाला।
धीरे धीरे लड़की बड़ी हो गई, ब्याह के लायक हो गई। उसके रिश्ते के लिए कई लोग आए। आखिर दूर के एक गांव में उस लड़की का विवाह हो गया। लोगो ने सोचा , चलो इस कन्या ने अपने जीवन मे बहुत कष्ट भुगता है ,इसे अच्छा घर मिला होगा। लेकिन क़िस्मत का लिखा और मन का दुख कौन जान सकता है!
उस लड़की के ससुराल के दुख उसके थे ।उस लडक़ी की सास बड़ी डायन थी , उससे घर के सारे काम करवाती थी। सुबह से झाड़ू ,बर्तन, खेतों में ,पशुओ, तथा जंगल के काम उसी से करवाती थी। उसे दिन भर बैठने भी नही देती थी। बदले में खाना आधा पेट देती, और पहनने को ढंग के कपङे नही देती थी। और उससे ढंग से बात भी नही करती थी, हमेशा गाली ही देती रहती थी। बात बात में उसे ताना देती थी।
घर मे जब सब खाना खा लेते थे , तब सास उसके सामने तीन तीतरी रोटियां ( तीन पतली रोटियां ) फेंक जाती थी। और रोटी के साथ खाने के लिए न नमक देती थी, और न ही सब्जी। बड़ी उम्मीद से वो गरीब लड़की ससुराल आई थी लेकिन उसे ससुराल में क्या मिला दुख ही दुख ! न ढंग का खाना, न सही पहनना और न ही अच्छा व्यवहार।
उस लड़की को अपनी माँ की बहुत याद आती थी। लेकिन उसकी डायन सास मायके और माँ के नाम से ही भड़क जाती थी। और उस लड़की के ऊपर दुगुना अत्याचार करती थी। बस अपनी माँ को याद करके चुपचाप रो लेती थी। उस गरीब और बेबस लड़की पर दुखों का पहाड़ टूटने के कारण उसने शादी के 6 माह के अंतर्गत ही बिस्तर पकड़ लिया था। वह गंभीर बीमार पड़ गई । उसकी सास ने उसका इलाज भी नही करवाया और न सेवा की। कोई उसे पानी पिलाने वाला भी नही था। बीमारी में घुलते घुलते एक दिन वह मरणासन्न हो गई। यह खबर उसके मायके ,उसकी माँ के पास भी पहुच गई।
उसकी माँ बदहवाश सी दौड़ी आई अपने कलेजे के टुकड़े को देखने । लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी। उसकी लड़की अपने जीवन की अंतिम सांसे गिन रही थी। वह बीमारी के कारण सुख के कंकाल हो गई थी। माँ ने बेटी को अपनी गोद मे सुलाया, और उसके गले मे पानी की घुट डाली ! तब लड़खड़ाती हुई जबान , और डबडबाती हुई आखों से मरणासन्न बेटी बोली , ” ईजा …..तीन तीतरी तीन ..तीन “। और इतना बोलते ही बीमार बेटी के प्राण पखेरू उड़ गए…….
कहते हैं, मृत्यु के उपरांत वह गरीब लड़की चिड़िया बनी और , पहाड़ो में बड़े मार्मिक स्वर में तीन तीतरी तीन तीन की आवाज निकलती है। या तीन तीतरी तीन तीन कहकर गाती है।
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नोट :- इस लोककथा तीन तीतरी तीन तीन में प्रयुक्त फ़ोटो , काल्पनिक हैं। और इंटरनेट के सहयोग से लिए गए हैं।