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उत्तराखंड का इतिहास: प्रस्तावना –
उत्तर भारत में बसे देवभूमि उत्तराखंड का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। हिमालय की गोद में बसा यह क्षेत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है, बल्कि यहां की सभ्यता, संस्कृति और शासन व्यवस्था ने भी भारतीय इतिहास को गहराई से प्रभावित किया है। 09 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। अनेक आंदोलनकारियों के बलिदान और दशकों के संघर्ष के बाद यह पर्वतीय राज्य अस्तित्व में आया। प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड का इतिहास आदिकाल से लेकर राज्य गठन तक क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।
आदिकाल: सभ्यता का प्रारंभ –
उत्तराखंड में मनुष्य के निवास के प्रमाण पाषाणकाल से मिलते हैं। कप-मार्क्स, शैलाश्रयों और पत्थर के औजारों से पता चलता है कि यहाँ प्रागैतिहासिक मानव निवास करते थे और शैलाश्रयों में सुंदर चित्रकारी करते थे। मध्य और उत्तर-प्रस्तर युग के शैलचित्र आज भी ग्वारख्या-उड़्यार, मलारी और रामगंगा-घाट जैसे स्थलों में पाए जाते हैं। ये प्रमाण दर्शाते हैं कि हिमालय की गोद में मानव सभ्यता बहुत प्राचीन है।
पौराणिक काल: सप्तसिंधु और देवभूमि –
ऋग्वेद में वर्णित सप्तसिंधु प्रदेश को गढ़भूमि कहा गया है। यही क्षेत्र आर्य सभ्यता का स्रोत माना गया है। वेद व्यास ने इसी भूमि पर वेदों का विभाजन और पुराणों की रचना की थी। महाभारत, पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में इस पर्वतीय क्षेत्र का उल्लेख हिमवन्त, उत्तरकुरु और बद्रिकाश्रम जैसे नामों से होता है। पंचपांडवों की स्वर्गारोहण यात्रा भी यही से आरम्भ हुई थी, जिससे यह भूमि पवित्र देवभूमि कहलाती है।
ऐतिहासिक काल और प्रारंभिक राजवंश –
पुरातात्विक अवशेष, शिलालेख, सिक्के और ताम्रपत्र उत्तराखंड के प्राचीन इतिहास की झलक देते हैं। कलसी में प्राप्त अशोक शिलालेख इस बात का प्रमाण है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तराखंड भारत की राजनीतिक-सांस्कृतिक धारा में जुड़ा हुआ था।
कुणिन्द वंश –
कुणिन्द राजवंश उत्तराखंड की पहली संगठित राजनैतिक शक्ति थी, जिसने तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में शासन किया। अमोघभूति इनके प्रमुख राजा थे और इनके सिक्के अल्मोड़ा, श्रीनगर और कोटद्वार में मिले हैं।
कर्तृपुर राज्य –
कुषाणों के पतन के बाद कर्तृपुर राज्य का उदय हुआ, जिसका उल्लेख समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तंभ लेख में भी मिलता है।
कार्तिकेयपुर व कत्यूरी राजवंश –
सातवीं शती में कार्तिकेयपुर राजवंश का उदय हुआ, जिसकी राजधानी जोशीमठ के निकट थी। कला, मूर्तिकला और वास्तुकला के क्षेत्र में यह काल उत्तराखंड का स्वर्णयुग था। इसके बाद कुमाऊँ में कत्यूरी राजवंश का शासन आरम्भ हुआ, जिसने उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में दीर्घकाल तक प्रभुत्व बनाए रखा। दोटी, असकोट और कत्यूर घाटी इनके शक्तिशाली केंद्र रहे।
परमार (पंवार) वंश और गढ़वाल का स्वर्णकाल –
गढ़वाल में 10वीं शताब्दी के आसपास कनकपाल द्वारा परमार वंश की स्थापना की गई। राजा अजयपाल ने शासन को सुदृढ़ किया और श्रीनगर को राजधानी बनाया। महारानी कर्णावती की वीरता, माधो सिंह भंडारी की सैन्य कुशलता और गढ़-संस्कृति का उत्कर्ष इसी काल में हुआ।
चंद वंश: कुमाऊँ की समृद्धि का युग –
कत्यूरी राजाओं के पतन के बाद 14वीं शती में कुमाऊँ में चंद वंश का उदय हुआ। अल्मोड़ा को राजधानी बनाकर इस वंश ने लंबे समय तक शासन किया। बालो कल्याण चंद के काल में कुमाऊँ की सामाजिक, धार्मिक और स्थापत्य परंपराएँ चरम पर थीं।
उत्तराखंड में गोरखा शासन –
1790 ईस्वी में गोरखों ने कुमाऊँ और 1804 में गढ़वाल पर अधिकार किया। इस काल में जनता को जबरदस्त उत्पीड़न झेलना पड़ा, जिसे ‘गोरख्याणी शासन’ कहा गया। अंग्रेजों ने 1814-15 में गोरखों को हराकर क्षेत्र पर अधिकार किया।
अंग्रेजी शासन और राज्य विभाजन –
ब्रिटिश शासन के प्रारंभ में कुमाऊँ-कमिश्नरी और टिहरी गढ़वाल राज्य दो प्रमुख प्रशासनिक इकाइयाँ बनीं। देहरादून को सहारनपुर में जोड़ा गया। 1840 में गढ़वाल को अलग जनपद बनाया गया और आगे चलकर नैनीताल व अल्मोड़ा अलग जिले बने।
स्वतंत्रता आंदोलन और उत्तराखंड का योगदान
- उत्तराखंड की जनता ने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई।
- 1857 के विद्रोह में कालू महरा जैसे क्रांतिकारी शामिल हुए।
- कुली बेगार मंडी, सालम और सल्ट क्रांतियों में ग्रामीण जनता ने अंग्रेज शासन के विरुद्ध विद्रोह किया।
- हवलदार वीर चंद्र सिंह ‘गढ़वाली’ ने पेशावर कांड में गोली चलाने से इनकार किया।
- टिहरी के श्रीदेव सुमन ने 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद बलिदान दिया।
स्वतंत्र भारत में उत्तराखंड की स्थिति –
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना। परंतु सांस्कृतिक, भाषायी और भौगोलिक भिन्नता को देखते हुए पृथक राज्य की मांग उठी। दशकों तक चले आंदोलनों और अनेकों बलिदानों के बाद 09 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। जनवरी 2007 में राज्य का नाम औपचारिक रूप से “उत्तराखंड” रखा गया। देहरादून वर्तमान में इसकी शीतकालीन राजधानी और गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी है।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड का इतिहास भारतीय सभ्यता की गहराई का परिचायक है। ऋषि-मुनियों की तपोभूमि से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मभूमि तक, इस प्रदेश ने समय-समय पर अपनी वीरता, संस्कृति और आस्था से देश का गौरव बढ़ाया है।
और विस्तार से पढ़े –
- उत्तराखंड का इतिहास, आदिकाल से उत्तराखंड में गोरखा राज तक
- स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड का योगदान .
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