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यमुनोत्री धाम –
उत्तराखंड की पावन यात्रा यमुनोत्री से ही प्रारंभ होती है। यमुनोत्री धाम से पूर्व यात्रा-मार्ग में नरेंद्रनगर, चंबा, टिहरी, धरासू, ब्रह्मखाल, सयाना चट्टी, हनुमान् चट्टी, जान की चट्टी और खरसाली आदि महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थल पड़ते हैं, तब तीर्थ-यात्री यमुनोत्री पहुँचता है। उत्तराखंड में केदारखंड के चारों धामों में से यमुनोत्री धाम हिमालय की बंदरपूँछ महाशृंग के पश्चिम की ओर से समुद्रतल से 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पतित-पावनी यमुना का उद्गम स्रोत यमुनोत्री से लगभग 6 किलोमीटर ऊपर कालिंदी पर्वत पर है।
यह स्थान यमुनोत्री धाम से 1098 मीटर अधिक ऊँचाई पर है, यहाँ तक पहुँचना बहुत ही कठिन है। यहीं पर बर्फ की एक झील है जो यमुना का उद्गम-स्थान है। कालिंदी पर्वत की गोद में यमुनोत्री के पास यमुना अपनी शैशवावस्था में होती है। जल स्वच्छ, श्वेत बर्फ की तरह शीतल है। यमुनोत्री के चारों ओर फैली धवल शिखरावली यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यहाँ का दृश्य अत्यंत मनोहर और रमणीक है। चारों ओर हिमाच्छादित पर्वतमालाएँ, चीड़ के हरित वन, नीचे कल-कल करती कालिंदी की शीतल धारा मन को मोह लेती है।
यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं –
यमुनोत्री के पास यमुना की धारा उत्तरवाहिनी हो जाती है, इसलिए इसे यमुनोत्री कहा गया है। यमुनोत्री का प्राकृतिक सौंदर्य वर्णनातीत है, इस सौंदर्य की अनुभूति प्रत्यक्षदर्शी ही कर सकता है। यहाँ का सौंदर्य अवर्णनीय है।यमुनोत्री के मंदिर के कपाट वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को खुलते हैं और कार्तिक में दीपावली के बाद यम द्वितीया के दिन बंद होते हैं।
खरसाली ग्राम के पंडे 6 महीने यमुनोत्री की पूजा अपने ग्राम में ही करते हैं। यमुना की पूजा यमुना मंदिर में की जाती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी नरेश महाराजा प्रतापशाह ने वि. सं. 1919 में किया था। मंदिर में काले संगमरमर की मूर्ति है। गंगा और यमुना को बहनें माना जाता है। मंदिर में गंगाजी की भी मूर्ति है। गंगा और यमुना को भारतीय संस्कृति में माँ का रूप दिया गया है।
गरमपानी का कुंड भी है यमुनोत्री धाम में –
मंदिर के पास की पहाड़ की चट्टान के अंदर दो कुंड हैं। सबसे अधिक गर्म पानी का कुंड सूर्यकुंड कहलाता है। इसका तापमान 100 डिग्री सेंटीग्रेड फारेनहाइट रहता है। इस कुंड में यात्री आलू, चावल, पोटली बनाकर डालते हैं, जो थोड़ी देर में पककर तैयार हो जाता है। यही यहाँ का प्रसाद है। यमुनोत्री का प्रसाद इस जल का पका हुआ चावल माना जाता है। गौरी-कुंड का जल थोड़ा कम गर्म रहता है। यात्री उसी में स्नान करते हैं।
यहाँ की धरती में इसका जो विलक्षण प्रवाह है, उसमें भी यात्री मोहित हो जाता है। एक ओर यहाँ बर्फीले चट्टानों से आने वाला यमुना का शीतल जल और हड्डियों को कँपा देने वाली बर्फीली हवा, दूसरी ओर संतुलन बनाए रखने के लिए गर्म कुंडों का पानी, कलकल निनाद करने वाली यमुना सर्वव्यापी प्राकृतिक सौंदर्य से यात्रियों को मानसिक चेतनामय सुख का बोध होता है तो इन गर्म पानी के कुंडों के जल से भौतिक सुख की कमी नहीं रहती। इनमें सूर्यकुंड सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। सूर्यकुंड के पास ही एक शिला है, जिसको दिव्यशिला कहते हैं, इसकी पूजा का अत्यंत महत्त्व है।
यमुनोत्री धाम में गंगाजी भी हैं –
कुंड में स्नान के बाद दिव्यशिला की पूजा की जाती है। तत्पश्चात् यमुना नदी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि असित मुनि ने यहाँ तपस्या की थी। मानसिक शक्ति के बल पर वे प्रतिदिन यमुनोत्री और गंगोत्री, दोनों स्थानों पर स्नान करके यमुनोत्री लौटजाते थे। लेकिन वृद्धावस्था में जब यह असंभव हो गया तो गंगाजी स्वयं एक सूक्ष्म धारा के रूप में इसी स्थान पर चट्टान से निकलकर प्रस्फुटित हुई। यही कारण है कि आज भी यमुनोत्री धाम में गंगा जी की पूजा की जाती है। यमुनोत्री से 6 किलोमीटर की दूरी पर सप्त-कुंड है, जिसका महत्त्व विशेष माना जाता है।
यमुनोत्री धाम का पौराणिक महत्त्व –
सूर्य की संध्या और छाया, नाम की दो पत्नियाँ थीं। संध्या से गंगा और छाया से यमुना और यमराज उत्पन्न हुए। इस प्रकार से गंगा, यमुना सौतेली बहनें तथा यमुना और यमराज सगे भाई बहन हैं। केदारखंड के अनुसार संध्या प्रजापति की पुत्री और छाया संज्ञा की सवर्णा थी। संज्ञा से वैवस्वत मनु, यम और यमुना उत्पन्न हुए तथा छाया से सावर्णि मनु (जो आठवें मनु होंगे) तथा श्यामलांग शनैश्चर उत्पन्न हुए। कहते हैं सूर्य ने अपनी पुत्री यमुना को तीनो लोको के कल्याण हेतू पितरों को सौप दिया। यमुना पृथ्वी पर आकर जन्ममरण के बंधन से मुक्त करने वाली पापनाशनी उत्तरवाहनी बन गई।
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यमुनोत्री धाम की यात्रा का मार्ग परिचय-
यमुनोत्री धाम की यात्रा का प्रवेशद्वार ऋषिकेश है। यहा से यमुनोत्री मोटर मार्ग की दूरी 227 किलोमीटर है। ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर, आगराखाल, चंबा, उत्तरकाशी, धरासु होते हुए फुलचट्टी तक कार द्वारा पहुचां जा सकता है। इससे आगे के यमुनोत्री तक 8 किलोमीटर का पगडंडी रास्ता पैदल तय करना पडता है। वेसै यात्रियो की सुविधा के लिए यहा पालकी और खच्चरो की सुविधा है। जिसमे यात्री। कुछ शुल्क देकर सुविधा का लाभ उठा सकते है।
कैसे पहुँचे –
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलिग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। कुल दूरी 210 किलोमीटर है।
रेल- मार्ग –ऋषिकेश से 231 किलोमीटर तथा देहरादनू से 185 किलो मीटर की दूरी पर हैं। सड़क मार्ग- ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंन्द्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलो मीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। फूलचट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलो मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं।
संदर्भ – डा सरिता शाह की किताब उत्तराखंड में आधात्मिक पर्यटन।
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