उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – उत्तराखंड का नाम ही देवभूमि है वैसे यहाँ छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर देखने के लिए मिल जायेंगे। यहाँ के हर मंदिरों का वैसे अपना एक इतिहास है। यहाँ एक से बढ़कर एक पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर है। प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड के दस प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है। जहाँ आप दर्शन करके ईश्वर का आशीर्वाद और अलौकिक शांति का अनुभव कर सकते हैं –
देवभूमि उत्तराखंड के दस प्रसिद्ध व अलौकिक मंदिर –
- बद्रीनाथ धाम
- केदारनाथ धाम
- धारी देवी
- सुरकंडा देवी मंदिर
- जागेश्वर धाम
- बागेश्वर
- चितई मंदिर अल्मोड़ा
- कटारमल सूर्य मंदिर
- बैजनाथ
- महासू देवता मंदिर
Table of Contents
केदारनाथ मंदिर ,उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर –
उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धामों में से एक धाम केदारनाथ धाम है। भगवान् शिव के इस धाम का बहुत ही पौराणिक महत्त्व है। लिंगपुराण के अनुसार जो व्यक्ति सन्यासरत होकर केदारनाथ में निवास करता है। उसे शिवत्व की प्राप्ति होती है। केदारनाथ का दर्शन और स्पर्श परम मोक्षदायक बताया गया है। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में प्रमुख है। केदारनाथ हिमालय के पांच प्रमुख खण्डों में परिगणित अन्यतम खण्ड के द्वारखण्ड स्कन्द पुराण का एक महत्वपूर्ण खण्ड है-
खण्डा पंच हिमालयस्य कथिता नेपाल कूर्माचलौ ।
केदारोऽथ जलन्धरोऽथ रुचिरः कश्मीर संज्ञोन्तिमः । ।
केदारनाथ का पवित्र धाम उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में उसके रुद्रप्रयाग जनपद के नागपुर परगने की मल्ली कालीफाट पट्टी में मन्दाकिनी नदी के दक्षिणी तट पर समुद्रतल से 3543मी. (11,753 ) की ऊंचाई पर एक समतल भूमि पर अक्षांश 30°-44′-15″ एवं देशान्तर 79°-6′-33″ पर स्थित है।
बद्रीनाथ धाम –
उत्तराखंड के चार धामों में से प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर है। पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व वाले इस मंदिर में भगवान् विष्णु की पूजा होती है। बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। इसके कपाट अप्रैल मई में खुलने के साथ यहाँ की यात्रा शुरू हो जाती है। अक्टूबर में शीतकालीन के लिए इसके कपाट बंद हो जाते है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में ,समुद्रतल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरो में खास मंदिर “धारी देवी ” –
वैसे तो उत्तराखंड में माँ भगवती को समर्पित कई मंदिर हैं। सभी एक से बढ़कर एक चमत्कारी और दिव्य मंदिर हैं। लेकिन धारी देवी मंदिर उन सब में विशेष महत्त्व रखता है। यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित मंदिर है। कहते हैं यहाँ माँ दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। इस मंदिर के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है। कहते हैं जब शंकराचार्य नवी या दसवीं शताब्दी आस पास उत्तराखंड आये तो उन्होंने माता की मूर्ति को सूरजकुंड निकाल कर स्थापित किया। और स्थानीय पुजारियों को उसकी पूजा का कार्यभार सौंप दिया था। इसे पढ़े – धारी देवी उत्तराखंड का चमत्कारी एवं रहस्यमय मंदिर।
सुरकंडा देवी मंदिर ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर ) –
भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है उत्तराखंड का सुरकंडा देवी मंदिर। सुरकण्डा देवी का प्राचीन सिद्धपीठ टिहरी जनपद में चम्बा – मसूरी मार्ग पर मसूरी से 27 किमी. तथा धनोल्टी से 10 किमी. पर समुद्र की सतहसे 3030 मी. की ऊंचाई पर एक अत्यन्त रमणीक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यहां से हिमालय की अनेक पर्वत
श्रृंखलाओं, दूनघाटी, मसूरी एवं चम्बा (टिहरी) के अत्यन्त नयनाभिराम दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं।
किन्तु इसका एक देवस्थल जौनपुर में भी है। इस सम्बन्ध में उल्लेख्य है कि यहां से लोगों के लिए टिहरी जनपदस्थ सुरकण्डा सिद्धपीठ काफी दूर होने के कारण उसके श्रद्धालुओं के द्वारा यह देवस्थल मसूरी से 29 किमी आगे यहां की सिलवाड़ पट्टी के ऊंचे शिखर पर भी स्थापित कर दिया गया है। इसके विषय में माना जाता है कि यहां पर दक्ष यज्ञ में देवी सती ,के देहत्याग के बाद भगवान शिव को शांत करने के लिए ,सती की देह पर भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन से वार किये तो माता का सिर यहाँ गिरा था। इसीलिए इसे ‘छिन्नमस्त’ भी कहा जाता है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)
कहा जाता है कि यह यहां के शासक पंवारों की कुलदेवी है। इसके पुजारी कुदाऊं के ब्राह्मण तथा कोली होते हैं। यहां पर साल में दो बार चैत्रमास की अष्टमी तथा आश्विन की नवरात्रियों में विशेष पूजाओं का आयोजन होता है तथा गंगादशहरे के दिन मेला भी लगता है। इसके अतिरिक्त प्रथम सन्तति (पुत्र/पुत्री) के आगमन पर यहां पर जात का आयोजन भी किया जाता है। सिलवाड़ शिखर के अतिरिक्त इस क्षेत्र में इसके पूजास्थल छारगढ़, बिच्छू, क्यारी, ख्यांसी गैड़, चमासारी, ठाल, कुदाऊं आदि में भी हैं। इससे ही सम्बद्ध पूजास्थलों, अगिछा में इसे घिन्ना देवी तथा पीपलखेत में राजराजेश्वरी के नाम से पूजा जाता है।
जागेश्वर धाम –
जागेश्वर धाम भगवान् शिव का प्रसिद्ध धाम है। यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। कहते हैं सर्वप्रथम भगवान् शिव का शिवलिंग रूप में पूजन यहीं से शुरू हुवा था। देवदार के दारुकवन में स्थित उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यहाँ 124 -125 मंदिरों का समूह है।
जागेश्वर भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर नगरी समुद्रतल से लगभग 1870 मीटर की उचाई पर स्थित है। दारुकवन में देवदार के जंगल के बीच मृत्युंजय मंदिर में स्थित शिवलिंग को ‘ नागेश जागेश दारुकवने ‘ आधार पर शकराचार्य जी द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिग माना गया है। यहाँ जागेश्वर के बारे में विस्तार से पढ़े।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर बागेश्वर का व्याघ्रेश्वर महादेव –
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित बागेश्वर को कुमाऊँ की कशी कहा जाता है। यहाँ भगवान् शिव व्याघ्रेश्वर रूप में रहते हैं। यहाँ स्नान -दान का काशी के बराबर महत्व बताया गया है। कुमाऊं क्षेत्र के वासी जब काशी नहीं जा सकते थे ,तो निकट बागेश्वर में स्नान करने जाते थे। यहाँ यज्ञोपवीत ,अंतिम संस्कार आदि कार्य होते हैं। इस स्थान को एक. तीर्थ की मान्यता दी गई है। यहाँ का समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक चितई मंदिर अल्मोड़ा –
चिठ्ठी वाला मंदिर ,सर्वोच्च न्यायलय आदि नामो से विख्यात कुमाऊँ के लोक देवता गोलू देवता का यह मंदिर ,पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित यह मंदिर न्याय का मंदिर नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ के देवता गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है।
लोग अपनी मनोतिया चिट्ठियों या स्टाम्प पेपरों में लिखकर यहाँ लगाते हैं। मनोकामना पूर्ति के बाद घंटियां चढ़ाने का रिवाज है। इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहते हैं। कहते हैं कोर्ट में जनता के हितार्थ जो भी निर्णय निकलते हैं ,उनकी एक कॉपी यहां भी अर्पित की जाती है। इसलिए इस मंदिर को सर्वोच्च न्यायालय भी कहते हैं।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर में से एक कटारमल सूर्य मंदिर –
भारत का दूसरा प्राचीन सूर्यमंदिर उत्तरखंड के अल्मोड़ा जिले के कटारमल नामक गांव में स्थित है। कोसी नामक कस्बे के किनारे स्थित यह मंदिर उत्तराखंड के साथ साथ भारत के सबसे प्राचीन मंदिरो में से एक है। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में पारम्परिक बूटधारी सूर्य की मूर्ति भी स्थित है। कटारमल सूर्यमंदिर के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़े
बैजनाथ –
पुराणों में वर्णित गोमती तथा गरूड़ी नदियों के संगम पर स्थित बैजनाथ जहाँ कामदेव के दमन के पश्चात् पार्वती को ब्याहने जाते समय महादेव जी ने ठहरकर गणेश का पूजन किया था। अल्मोड़ा से 70 किमी. तथा हिमालय-दर्शन के लिए प्रसिद्ध कौसानीसे 16 किमी. की दूरी पर है। (उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)
यहाँ कई मंदिरों का निर्माण हुआ था। इनसे प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कत्यूरी, चंद तथा गंगोली राजाओं ने समय-समय पर यहाँ के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। संभवतः उनके काल में मूर्तियों का भी अंकन हुआ था। बैजनाथ मंदिर-समूह के मध्य वैद्यनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर था, जिसका अब निचला भाग ही शेष रह गया है। किंतु इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिव-प्रतिमा की अब भी मान्यता प्राप्त है।
महासू देवता मंदिर –
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जौनसार का महासू देवता मंदिर। महासू का अर्थ होता है महाशिव। महासू चार भाइयों की पूजा होती है। महासू देवता को उत्तराखंड के प्रसिद्ध न्यायकारी देवताओं में से एक माना जाता है। यह मंदिर देहरादून से लगभग 180 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर कोटि बनाल शैली में निर्मित है। यह मंदिर चकराता में तमस नदी के किनारे हनोल गांव में स्थित है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर )
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