Sunday, November 17, 2024
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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर भाषण । 2024

उत्तराखंड स्थापना दिवस प्रतिवर्ष 09 नवंबर को मनाया जाता है। वर्ष 2024 में उत्तराखंड का 25 वां रजत स्थापना दिवस मनाया जायेगा। 09 नवंबर 2000 को भारत के 27वे राज्य के रूप में उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसकी अस्थाई राजधानी घोषित किया गया ,जो अब उत्तराखंड की शीतकालीन राजधानी है। उत्तरांचल राज्य बनने से पहले हिमालय का यह भू भाग उत्तरप्रदेश का हिस्सा था। हिमालय की गोद में बसे इस प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर भू भाग को अलग राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 05 – 06 मई 1938 को श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में रखी गई, श्री जवाहर लाल नेहरू  ने इसका समर्थन किया था।

09 नवंबर को मनाया जा रहा उत्तराखंड राज्य का रजत स्थापना दिवस 2024 –

प्रत्येक वर्षो की तरह 09 नवंबर 2024 को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस मनाया जा रहा है । इस साल उत्तराखंड अपने 25वे साल में जा रहा है। इसलिए इस स्थापना दिवस को हम रजत वर्ष के रूप में मना रहे हैं। जिसमे पुरे राज्य में खुशियां मना रहा है। जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके लोग खुशियां मना रहे हैं। वहीं सरकार के मंत्री या मुख्यमंत्री अपने किये कार्यों का लेखा जोखा जनता के बीच रख कर अपने किए कार्यों का गाथा गान कर रहे हैं।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
उत्तराखंड स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

वर्षों के आंदोलन और कई लोगों की शहादत से मिला उत्तरांचल –

उत्तरांचल राज्य जो वर्तमान में उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है ,इस पर्वतीय राज्य को प्राप्त करने के लिए यहाँ के निवासियों को वर्षों तक आंदोलन करना पड़ा , कई अत्याचार कई जुल्म हुए। अनेको लोगों ने सपनो के इस राज्य को पाने के लिए अपने प्राणों की शहादत दी। तब जाकर मिला उत्तराखंड वासियों को उनका सपनो का राज्य। खटीमा गोलीकांड ,मसूरी गोलीकांड और रामपुर तिराह कांड जैसे मानवता को शर्मशार करने वाले जुल्मों को सहते हुए ,पहाड़वासियों ने अपना आंदोलन सतत जारी रखा।

पहाड़वासियों के सतत आंदोलन को देखते हुए 15 अगस्त 1996 को लालकिले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री H D देवेगौड़ा ने उत्तराँचल राज्य की स्थापना की घोषणा की उसके बाद 01 अगस्त 2000 को तत्कालीन। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोक सभा में प्रस्तुत किया। लोकसभा से पास होने के बाद 10 अगस्त 2000 को सरकार ने राज्यसभा में यह विधेयक प्रस्तुत किया। राज्सभा से पास होने के बाद 28 अगस्त 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति महामहीम के आर नारायणन जी ने इसे अपनी मंजूरी प्रदान की।

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इस प्रकार 09 नवंबर 2000 को पहाड़वासियों को उनके सपनो का राज्य उत्तराखंड मिला। और 09 नवंबर को प्रतिवर्ष उत्तराखंड स्थापना दिवस मनाया जाता है।

उत्तराखंड से उत्तरांचल नामकरण –

उत्तरांचल बनने के के बाद जनता की भारी मांग के बाद दिसम्बर 2006 में उत्तरांचल नाम परिवर्तन विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया। दोनों सदनों में पास होने के बाद उत्तरांचल के नाम परिवर्तन की अधिसूचना 29 दिसम्बर 2006 को जारी कर दी गई। 01 जनवरी 2007 से उत्तरांचल राज्य उत्तराखंड राज्य के रूप में जाना जाने लगा ।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
उत्तराखंड स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

उत्तराखंड को मिली दो राजधानी –

09  नवंबर 2000 जब उत्तराखंड की स्थापना हुई थी तब देहरादून को उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी बनाया गया था।  लेकिन जनता की मांग गैरसेण को स्थाई राजधानी बनाना था। इधर सरकारें बदलती रही उधर जनता की गैरसेण को स्थाई राजधानी के लिए मांग बढ़ती रही। 04 मार्च 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र रावत ने गैरसेण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की। 08 जून 2020 को राज्यपाल की सहमति के पश्च्यात इस पर अधिसूचना जारी की गई तब से उत्तराखंड दो राजधानी वाले राज्यों में गिना जाने लगा। मगर आज भी जनता की मांग गैरसेन को स्थाई राजधानी बनाने की है ।

 समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है उत्तराखंड का –

आज उत्तराखंड स्थापना दिवस के अवसर पर फिर से यह दोहराते हुए एक सुखद अनुभूति हो रही है कि ,हिमालय की गोद में बसे इस भू भाग का अपना एक समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है। वैदिक काल से आज तक उत्तराखंड का हिमालयी भू भाग धार्मिक गतिविधियों केंद्र बिंदु रहा है। देश के चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम यहीं है , भगवान् भोलेनाथ का प्रिय केदरनाथ धाम से लेकर उनकी और माता पार्वती की विवाह स्थली भी यही हैं।

उत्तराखंड भारत का वो राज्य है जहाँ से भारत की सर्वाधिक पवित्र नदियों का उद्गम है। और उनके उद्गम स्थल पर ही क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री धाम स्थित हैं। देश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार ऋषिकेश और हरिद्वार जैसा प्रसिद्ध तीर्थ भी यही हैं।

उत्तराखंड स्थापना से आज तक क्या खोया क्या पाया –

उत्तराखंड की स्थापना हुए पुरे 25 साल हो गए हैं। सरकार पूरे उत्साह से उत्तराखंड का रजत स्थापना दिवस मना रही है लेकिन इन 25 सालों के सफर में उत्तराखंड काफी कुछ खोया और काफी कुछ पाया। अगर पाने के बात करें तो उत्तराखंड को एक धार्मिक पर्यटन और प्राकृतिक पर्यटन वाले राज्य का तमगा मिला है। इसके जिन सपनों को लेकर नए राज्य की स्थापना की गई थी ,जिस सपनो के राज्य उत्तराखंड के लिए यहाँ के लोगो ने अपने प्राण ख़ुशी ख़ुशी न्योछावर कर दिए थे ,वो सपना दूर दूर तक पूरा नहीं होता दिख रहा है।

हालाँकि केवल धार्मिक पर्यटन ने उत्तराखंड को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई ,जिसमे उत्तराखंड के चारधाम , और कैंची धाम प्रमुख हैं। लेकिन यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य बात है कि यहाँ की सरकारों ने भी केवल उन्ही चीजों पर पर फोकस किया जिनसे उन्हें फायदा मिलता है। जैसे सरकार की आय का प्रमुख श्रोत चारधाम यात्रा है तो उन्होंने पूरा फोकस उसी क्षेत्र में रखा ,जबकि उत्तराखंड की कई स्थान आज भी रोड के लिए तरस रहे हैं। वहां से बीमारों को डोली में बैठाकर अस्पताल तक पहुंचना पड़ता है। पहाड़ों के निवासी आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। और इन्ही मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते धीरे धीरे पहाड़ खाली होते जा रहे हैं।

मडुवा बाड़ी खाएंगे अपना उत्तराखंड बनाएंगे के नारे से उत्तराखंड की स्थापना के सपने देखे गए थे। लेकिन उत्तराखंड की स्थापना के 24 साल बाद उत्तराखंड के पहाड़ों की अधिकतम भूमि बंजर हो रही है। उत्तराखंड की स्थापना से आज तक यही फायदा हुवा कि यहाँ पर्यटन उद्योग काफी तेजी से पनपा है। लेकिन इससे आम जनता को कुछ ज्यादा फयदा नहीं मिला। क्योंकि उत्तराखंड में भ्रष्टाचार ने बिगत 24 सालों में काफी तेजी से अपनी जड़ें मजबूत की हैं। और हाँ विगत सालों में उत्तराखंड आदर्श प्रदेश के की जगह आपदा प्रदेश बन कर उभरा है।

उत्तराखंड के आपदा प्रदेश बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण है उत्तराखंड की प्राकृतिक सम्पदा का अनियंत्रित दोहन , इसी अनियत्रित दोहन के चलते उत्तराखंड के जंगल खाली हो रहे हैं ,नदियाँ खाली हो रही हैं , जिसका परिणाम हमे प्रतिवर्ष होनेवाली आपदाओं के रूप में मिल रहा है।

इसके अतिरिक्त उत्तराखंड के तराई भाग में उद्योग लगाकर उत्तराखंड की जनता को उत्तराखंड में ही रोजगार देने की कोशिश की गई है ,यह काफी हद तक सफल भी है। इसके अलावा उत्तराखंड स्थापना दिवस पर उत्तराखंड की एक और ज्वलंत समस्या पर ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे ,वो समस्या है डेमोग्राफी में बदलाव की समस्या। यहाँ बड़ी तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव दिख रहा है जो उत्तराखंड जैसे प्राकृतिक और सांस्कृतिक प्रदेश के लिए चिंताजनक समस्या है।

हालाँकि इस समस्या पर जनता और सरकार अपनी अपनी तरफ से पूरी तरह सचेत दिखते हैं या दिखाते हैं। जहाँ  सरकार अपने प्रयासों और समय समय पर चिंता जाहिर करके इस विषय पर अपनी सजगता दिखाती है तो ,जनता भी मूल निवास और भू कानून के लिए सड़को पर लामबंद नजर आती है।

उपसंहार –

उत्तराखंड स्थापना दिवस 2024 के मौके पर यह कहते हुए बड़ा दुःख हो रहा है कि जिन सपनो के लिए उत्तराखंड की स्थापना की गई थी वो दूर दूर तक कहीं पुरे होते नहीं दिख रहे ,और भी सपनो का यह राज्य समस्याओं की गर्त में समाता दिख रहा है। हालाँकि इन समस्याओं के इतर एक अच्छी चीज दिख रही ,वो है उत्तराखंड की जागरूक होती जनता। अब उत्तराखंड की जनता जागरूक दिख रही है ,मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूढ़ने की कोशिश कर रही है। सरकार के नुमाइंदो से सवाल कर रही है।

यदि आज से भी जनता इसी प्रकार अपनी जागरूकता दिखाए तो ,अभी भी हम अपने राज्य को सपनो के राज्य उत्तराखंड के लिए देखे सपनो को पूरा कर सकते हैं। उत्तराखंड को एक आदर्श राज्य बना सकते हैं ,बस जरूरत है उत्तराखंड की जनता के जागरूक होने की।

उत्तराखंड स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं :

उत्तराखंड के रजत स्थापना दिवस के उपलक्ष में , हम उत्तराखंड की समानित जनता और सरकार को , उत्तराखंड स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं और उम्मीद करते हैं , पिछली गलतियों से सबक लेकर उत्तराखंड राज्य के सम्मानित नागरिक और सरकारें अगले 25 वर्षों में उत्तराखंड को एक आदर्श राज्य के रूप में स्थापित करेंगे।

उत्तराखंड को वो सभी मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी जो एक पर्वतीय राज्य को मिलती है। और उत्तराखंड को आपदा,पलायन, वातावरणीय असंतुलन, डेमोग्राफी चेंज आदि समस्याओं से निजात मिलेगी और उत्तराखंड भी एक खुशहाल प्रदेश बनेगा।

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उत्तराखंड की स्थापना दिवस पर निबंध 

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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