जगदी देवी का अर्थ जगत की देवी। संस्कृत में जगती ,पृथ्वी का नाम है। उत्तराखंड के टिहरी क्षेत्र में जगती देवी और जगदेई देवी के नाम से दो देवियों की पूजा की जाती है। दोनों के नामों का शाब्दिक अर्थ जगदेश्वरी देवी होता है। इस लेख में हम हिंदाव की जगदेश्वरी देवी की जात और उसकी पौराणिक कथा और महत्व का वर्णन कर रहे हैं।
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कौन है जगदी देवी –
जैसा की नाम से विदित होता है ,जगदी देवी मतलब जगत की देवी या जगदीश्वरी देवी। पौराणिक लोक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में भगवान् कृष्ण के जन्म के समय माँ योगमाया कंस के हाथ अंतर्ध्यान होकर हिंदाव पट्टी में शिला सौड़ के रूप में प्रकट हुई। जो आज भी जगती शिला सौड़ के नाम से प्रसिद्ध है। जगदीश्वर भगवान् विष्णु की प्रिय महामाया के स्वरूप के कारण इन्हे जगदीश्वरी देवी या स्थानीय भाष्य नाम जगती देवी के नाम के उच्चारित किया जाता है। हलाकि ठीक यही लोक कथा रुद्रप्रयाग की महादेवी हरियाली देवी के संबंध में भी बताई जाती है।
धार्मिक महत्त्व –
जगदी देवी इस क्षेत्र की रक्षक एवं पालनहार देवी है। यहाँ स्थानीय लोगो के अलावा सम्पूर्ण भारत वर्ष से लोग देवी दर्शनार्थ आते हैं। देवी निसंतान दम्पतियों को संतान सुख देती है। जिसके लिए निसंतान दंपति जौ से भरे बर्तन में दिया रखकर उस दिए को गोद में रखकर,रात भर जगती देवी का जागरण करते हैं।
हिंदाव की जगदी देवी की जात ( यात्रा ) –
टिहरी से लगभग 105 किलोमीटर दूर घनसाली में अंथवाल गांव में जगती देवी की थात है। और इसकी परिधि में अठारह गांव आते है। जगती देवी की नौ दिवसीय वार्षिक जात होती है। यह पहले बिशोन पर्वत स्थित गुरु वशिष्ठ की तपस्या स्थल पर प्राचीन सीला मंदिर में दो दिन की जात (यात्रा ) पर जाती है। इसके बाद अपने क्षेत्र के अठारह गांव की ध्याणीयों को मनोकामना पूर्ति का आशीष देकर उनसे बिंदी ,चूणी की भेंट स्वीकार करती है। इसकी इतनी मान्यता है कि यहाँ के लोग विदेश से प्रतिवर्ष पूजन और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए आते रहते हैं।
जगदी देवी की जात का यात्रा पथ कुछ इस प्रकार है – घनसाली बहेड़ा – शिला सौड़ – पंगरियाणा – लेंराविवमर – मतकुड़ीसैंण -अंथवाल गांऊँ – कुराण गांव -बडियार– पगरीय – सौणियाट गांव – थात- मुडीया गांव – मालगांव-चटोली – सरपोली – खणद् । तथा इसका समापन विश्वनाथ कुण्ड में होता है। इसके बाद अंथवाल गांव में 9 दिन का यज्ञ और लोगों की मकान बनाने हेतु उपयुक्त भूमि चयन में देवी माता के पश्वा से सांकेतिक भाषा में निर्देशन देने की प्रार्थना। अठारह गांवों के 18 जोड़ी ढोल-दमाऊँ की मधुरध्वनि से घाटियों, पर्वत मालाओं को गुंजाती यह यात्रा अब बड़े स्वरूप में 75 गांवों की यात्रा बन गई है। पूस मास की यह यात्रा स्मरणीय है।
लेख का संदर्भ-
- डॉ शिव प्रसाद नैथानी की पुस्तक – गढ़वाल की संस्कृति ,इतिहास और लोक साहित्य
- उत्तराखंड ज्ञानकोष पुस्तक – प्रो DD शर्मा
- ऑनलाइन पोर्टल – राज्य समीक्षा और अन्य क्षेत्रीय सामाचार पोर्टलों के आधार पर।
- फ़ोटो – माँ जगती देवी ,नंदा देवी मिनी जापान फेसबुक पेज ।
इन्हे भी पढ़े _
- रामेश्वर मंदिर उत्तराखंड जिसकी स्थापना भगवान राम ने वैकुंठ जाने से पहले की थी।
- कालीमठ – महाकाली का महातीर्थ जहाँ माँ ने अवतार धारण कर शुम्भ – निशुम्भ का वध किया था।