माँ सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य में टिहरी जिले के ,विकासखंड जौनपुर के ग्राम कद्दूखाल के पास सुरकूट नामक ऊँचे पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर समुद्रतल से 3030 मीटर ऊँचाई पर स्थित है।सुरकंडा माता का यह प्रसिद्ध सिद्धपीठ मसूरी से लगभग 40 किलोमीटर और चंबा से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुरकंडा देवी ,उत्तराखंड के सबसे ऊँचे शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है।इस मंदिर से उत्तर में त्रिशूल पर्वत, चौखंबा, नंदादेवी,बद्री केदार और गंगोत्री यमुनोत्री के शिखरों के भव्य दर्शन होते हैं। यहाँ से दून घाटी, मसूरी , नई टिहरी, चम्बा,कुंजापुरी,और चन्द्रबदनी के दर्शन भी होते हैं। यह मंदिर अत्यधिक ऊँचाई पर होने कारण शीतऋतु में यहाँ बर्फ गिरती रहती है। यह शीतकाल में अधिकांश हिमाच्छादित रहता है।
इस स्थान पर माता सुरेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध और पूजी जाती है। इस तथ्य का प्रमाण केदारखंड के अध्याय 133 श्लोक 10,11 में मिलता है। जो इस प्रकार है –
गंगायः पश्चिमे भागे सुरकूटगिरी:स्थितः
तंत्र सुरेश्वरीनाम्नी सर्वसिद्धि प्रदायिनि।
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सुरकंडा देवी मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार , जब दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को महायज्ञ में नहीं बुलाया, जब माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में बिना बुलाये पहुँच गई,तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे आहत होकर माँ सती ने खुद को यज्ञ की वेदी में समर्पित कर दिया था। तब भगवान शिव माता सती के वियोग में ,माता सती के शरीर को लेकर भटकने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने शिव के वियोग को खत्म करने के लिए, अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया। माता सती के शरीर के भाग जहां जहाँ गिरे,कालांतर में वह स्थान देवी माँ के शक्तिपीठों के रूप में पूजित हुए। इसी प्रकार सुरकूट नामक पर्वत पर माता सती का सिर गिरा। इसलिए यह स्थान सरकंडा और कालांतर में सुरकंडा देवी शक्तिपीठ के नाम से जग विख्यात हुवा।
सुरकंडा देवी में पूजा पद्धति –
मां के धाम में साल भर पूजा अर्चना चलती रहती है। यहां हर मौसम में भक्तों का तातां लगा रहता है। पूजा विधि में प्रतिदिन सुबह सात बजे माँ को शुद्ध घी और आटे से निर्मित हलवे का भोग लगाया जाता है। पूजा सात्विक विधि से पुष्प धूप,दीप आदि से सम्पन्न होती है। साल की दो नवरात्रों (शीत और ग्रीष्म ) नवरात्रों में खास पूजा अर्चना होती है। इस समय माता के काफी भक्त ,सुरकंडा मा के दर्शन हेतु आते हैं। हर साल जेष्ठ शुक्ल दशमी को गंगदशहरा के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह है,कि यहाँ भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां प्रसाद के रूप में दी जाती हैं। रौंसली की पत्तियों को इस क्षेत्र में देववृक्ष के रूप में माना जाता है। इसकी लकड़ियों का घर बनाने में या व्यवसायिक उपयोग नही करते हैं। इसकी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती है। रौंसली वृक्ष चीड़ और देवदार की एक छोटी प्रजाति होती है।
स्थानीय जागर विधा में माता सुरकंडा की महिमा कुछ इस प्रकार गाई जाती है –
तू रैन्दी माता रौसलियों का छैला, रौत्याला बमुण्ड।
अर सेला साकन्याने, जै ज्वाला, जै ज्वाला ।।
अर्थात – रौंसली वृक्षों की छाया में, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ,रमणीय बमुण्ड पट्टी और सेला सकलाना पट्टी में निवास करने वाली ज्वाला माँ तेरी जय हो।
सुरकंडा देवी के पास ठहरने योग्य स्थान
इस मंदिर में यात्रियों की सुविधा हेतु 3 धर्मशालाएं हैं। मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर कद्दूखाल में एक विश्रामालय भी है। यहाँ कद्दूखाल में भोजन की उचित व्यवस्था भी है।
उत्तराखंड का पनीर गाँव, मसूरी के पास एक ऐसा गावँ जो प्रसिद्ध है, अपने पनीर उत्पादन के लिए।
कैसे जाएं –
सुरकंडा देवी मंदिर जाने के लिए ऋषिकेश से चंबा होते हुए जाते हैं। यह मार्ग लगभग 86 किलोमीटर का पड़ता है। इसके बाद 2 किलोमीटर की चढ़ाई पड़ती है,जिसे पैदल या घोड़ा खच्चर से तय कर सकते हैं। श्रीनगर गढ़वाल की तरफ से आने वाले भक्त, पुरानी टिहरी चंबा होकर इस स्थान पर पहुच सकते हैं। यह मार्ग लगभग 106 किलोमीटर का पड़ेगा।
हवाई मार्ग से सुरकंडा मंदिर-
माता मंदिर के पास जौलीग्रांट हवाई अड्डा है,जो यहाँ से 94 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी द्वारा या अन्य वाहन से ,ऋषिकेश चंबा या देहरादून मसूरी होकर जा सकते हैं।
सुरकंडा मंदिर के नजदीक रेलवे स्टेशन
मंदिर के नजदीक देहरादून रेलवे स्टेशन है,जो यहाँ से 66 किमी दूर है। देहरादून रेलवे स्टेशन पर नियमित ट्रेन उपलब्ध है,और अधिकतम ट्रेने दिल्ली से आवागमन करती हैं।यहाँ से टैक्सी या अन्य वाहन से देहरादून मसूरी होकर माँ के प्रसिद्ध सिद्धपीठ पहुच सकते हैं।
सड़क मार्ग से सुरकंडा मंदिर
सुरकंडा देवी मंदिर देश के सड़कमार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। और इसके आस पास शहरों से ( मसूरी, देहरादून, ऋषिकेश, टिहरी ) से टैक्सी सेवाएं और बुकिंग वाहन सेवाएं उपलब्ध हैं।
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सुरकंडा देवी मंदिर के आस पास धूमने लायक स्थल –
सुरकंडा माता मंदिर एक रमणीक और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण स्थल पर बसा है। इसके आस पास भी एक से बढ़कर एक मनोहारी पर्यटन स्थल हैं।
पहाड़ों की रानी मसूरी
Surkanda mandir के पास घूमने लायक सबसे अच्छा स्थान है ,मसूरी । यह प्रसिद्ध हिल स्टेशन सुरकंडा से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मसूरी में प्राकृतिक सुंदरता के साथ, कैम्पटीफाल,गनहिल,मसूरी लेक , झारिपानी फाल ,(8 से 9 किमी दूर ) भट्टा फाल (8 किमी दूर) आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं।
धनोल्टी
Surkanda devi mandir से लगभग 9 किलोमीटर पर स्थित है,प्रकृति प्रेमियों का प्रमुख अड्डा धनोल्टी यह मसूरी की तरफ जाते समय एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। देवदार ,बाज,बुरांश के घने जंगल यहाँ यात्रियों का मन मोह लेते हैं। धनोल्टी में ठहरने के लिए गढ़वाल विकास निगम के बंगले के अलावा प्राइवेट लाज भी अच्छी सुविधाओं के साथ उपलब्ध हैं। मसूरी से धनोल्टी की दूरी लगभग 26 किलोमीटर है।
बुराँशखण्डा –
मसूरी चंबा रोड पर ,मसूरी से लगभग 20 किमी दूरी पर बुराँशखण्डा एक प्राकृतिक दर्शनीय स्थल है।
देवदर्शनी
कद्दूखाल से 4 या 5 किलोमीटर के आस पास एक देवदर्शनी नामक रमणीक स्थल है। इस स्थान पर विजय मिलन मठ नामक एक आध्यात्मिक केंद्र भी स्थित है।
कानाताल
कद्दूखाल से लगभग 5 या 6 किमी दूर ,काणाताल नामक एक प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थान है। यह चंबा मसूरी हाइवे पर एक सुंदर गावँ है। इसका नाम कानाताल एक झील के नाम पर पड़ा है। लेकिन यह झील अब अस्तित्व में नही हैं। यहां सेव,आड़ू, खुबानी,नाशपाती, पुलम के वृक्ष बहुताय हैं। मसूरी से कानाताल 38 किलोमीटर दूर है। कानाताल के नज़दीक रौंशुखाल नामक स्थान ,प्रकृति प्रेमियों का प्रमुख अड्डा है।
यहां रात्रिविश्राम के लिए द हेरिमिटेज नामक सुंदर बंगला भी है।