Sunday, November 17, 2024
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रामी बौराणी, एक पतिव्रता नारी की अमर लोक गाथा

उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक विभूतियों ने जन्म लिया है। उत्तराखंड में वीर पुरुषो के साथ -साथ कई वीरांगना नारियों ने भी उत्तराखंड के स्वर्ण इतिहास को अमर किया है। इन्ही महापुरुषों में से एक महान पतिव्रता नारी रामी बौराणी की लोक गाथा का संकलन कर रहें हैं। सभी पाठको से निवेदन है कि ,उत्तराखंड की इस अमर प्रेम कथा और पतिव्रता नारी की अमर कहानी को शेयर अवश्य करें।

गढ़वाल के एक गांव में रामी और उसकी बूढी सास अकेले रहती है। रामी बौराणी (बहुरानी) का पति उस समय किसी राजा की सेना में सैनिक की नौकरी करता था। एक  दिन अचानक रामी के पति वीरू को लड़ाई के कारण दूर जाना पड़ता है। शने शने समय बीतता जाता है , रामी का पति घर नहीं लौटता है। रामी और उसकी सास चिंतित हो जाते हैं। लेकिन वे दोनों हिम्मत नहीं हारती हैं।  उन्हें उम्मीद रहती है की उनका वीरू एक दिन जरूर आएगा। एक दूसरे का सहारा बनकर अपना जीवन यापन करती हैं। रामी खेतों का काम निपटाती है ,और सास घर में का काम देखती है। इस प्रकार दोनों मिलजुल कर ,इस कठिन और वियोगी जीवन का निर्वहन करती हैं। वे दोनों प्रतिदिन बीरु की बाट जोहती है। देश प्रदेश से आने वाले पड़ोसियों से बीरु के बारे में पूछती हैं। समय बीतता चला गया रामी अपने पति के ख्यालों में दिन काटते -काटते , बीरु को घर न आये 12 वर्ष हो गए। रामी की पथराई सी आँखे बीरु का रास्ता आज भी वही उम्मीद से देख रही थी ,की जैसे अभी उसका पति वीरू उसके सामने आ जायेगा। उधर रामी बौराणी की सास रामी को देख कर दुखी रहती थी ,वो सोचती थी ,मेरी तो उम्र हो गई लेकिन रामी तो अभी छोटी है। ये अपनी पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी।

आज रामी खेत में देर तक काम कर रही थी , धुप सर चढ़ गई थी। फिर भी रामी खेत में काम कर रही थी ,उसके साथ के भी सारे साथी चले गए थे। वो खेत में  काम कर ही रही थी तभी उसके पीछे से आवाज आई ,” अलख निरंजन ” ये  अकेली खेतों में काम करने वाली सूंदर कन्या कौन हो तुम? बाबा को अपना परिचय दो!  रामी ने मुड़कर देखा ,उसके पीछे एक कमंडल चिमटा धारी जोगी खड़ा था।  रामी ने बताया ,” मेरा नाम रामी है। मै  रावतों के खानदान से हूँ। घर में मै और मेरी सास रहते हैं। मेरे ससुर जी की मृत्यु हो चुकी है। और मेरे पति को परदेश गए बहुत समय बीत गया है। मेरे पति घर नहीं आये। आप तो जोगी बाबा हो। क्या आप मेरे पति का पता बता सकते हो? जोगी ने कहा ,’क्यों उस निर्मोही का रास्ता देख रही हो ! उसे तुम्हारी इतनी साल तक याद नहीं आयी ! तो क्या अब आएगा वो तुम्हारे पास! रामी को उसकी बात अच्छी  नहीं लगी। साधु ने फिर रामी को छूने की कोशिश करते हुए कहा ,’ भूल जाओ उस निर्मोही पुरुष को ! मेरे साथ बैठो छाया में अपना मन हल्का कर लो।

रामी बौराणी, एक पतिव्रता नारी की अमर लोक गाथा

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अचानक रामी के सर में बिजली सी कौंधी! दूर हट निर्लज़्ज़! तुझे मेरे माथे  का सिंदूर और मेरे गले का मंगलसूत्र नहीं दिख रहा क्या ? ये कैसी अनर्गल बातें कर रहा है तू ?? तू जोगी है या ढोंगी !में

साधू फिर बोला, अरे बौराणी तू तो नाराज हो गई !  यू  क्रोध करना रावतों को शोभा नहीं देता। तू धुप में काम करके थक गई होगी! चल छावं में अपना दुःख -सुख भी बाँट लेगी।

अबकी बार रामी का पारा सांतवे आसमान पर पहुंच गया ! वो कुदाल लहराते हुए बोली ,” बेशर्म तुझे शर्म नही आ रही ,एक पतिव्रता से कैसी बातें कर रहा है ??? इतना  ही दुःख सुख बाटने की इच्छा कर रही तो ! अपने परिवार का दुःख सुख बाट ! क्यों ढोंगी बाबा बन लोगों को परेशान कर रहा है !! चुप चाप चला जा यहाँ से नहीं तो तेरे सर में कुदाल, गाड़ दूंगी।

रामी बौराणी का गुस्सा देख ,जोगी वहां से चुप चाप खिसक गया! और सीधे रामी के घर पहुंच गया !

‘माई भिक्षा दे! भिक्षा दे माई ! तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी !!! तुम जिसका इंतजार कर रही ,वो जरूर लौट कर आएगा ! रामी की सास ने इतना सुनते ही बहार आकर बड़ी श्रद्धा पूर्वक जोगी को अंदर ले गई ! फिर साधु बोला ,’माता साधु को भोजन करा दो ! तब तक रामी भी आ गई ! साधु  को देख वो आग बबूला हो गई। बोली तू बेशर्म जोगी मेरे पीछे मेरे घर भी पहुंच गया ! रामी की सास जोगी से रामी के हिस्से की माफ़ी मांगती है ,बोलती है ,पति के वियोग में यह थोड़ी चीड़ – चिड़ी हो गई है।

फिर सास  साधु के लिए भोजन लाने लगी ! रामी की सास को पत्तल पर खाना लाते हुए साधु क्रोधित हो गया ! बोला ,’माई मै तुम्हारे पुत्र के सामान हूँ ! और मै  पत्तल में खाना नहीं खाऊंगा ! जिस बर्तन में अपने प्रिय पुत्र को खाना परोसती थी , मेरे लिए भी उसी बर्तन में खाना लाओ !  जोगी का इतना कहना था कि , रामी बौराणी का गुस्सा सातवें आसमान में पहुंच गया ! अब तो तूने नीचता की सारी हदें पार कर ली ! रामी क्रोध से पूरी लाल हो गई ! और कुदाल की तरफ लपकी !

रामी बौराणी का यह रूप देख कर साधु भौचक्का रह गया ! उसने झट से जोगी का चोला उतार फेंका ,और माँ के चरणों में गिर कर बोला , ‘ माँ पहचानो मुझे ! मै  तुम्हारा बेटा बीरु हूँ।

रामी मुझे  माफ़ करना मैंने तुम्हारे प्यार और पतिव्रत धर्म की जोगी बनकर परीक्षा लेनी चाही। तुम्हारे पतिव्रत धर्म के प्रति निष्ठां को यह समाज हमेशा याद रखेगा। तुम अपने समाज में अनुकरणीय महिलाओं में गिनी जाओगी।

रामी बौराणी का वीडियो यहाँ देखें –

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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