Sunday, May 21, 2023
Homeइतिहासनीलू कठायत उत्तराखंड का वीर सेनापति | Neelu Kathayat Story

नीलू कठायत उत्तराखंड का वीर सेनापति | Neelu Kathayat Story

उत्तराखंड में अनेक वीरों ने जन्म लिया। सिदुवा बिदुवा, पुरखू पंत, गंगू रमोला, आदि वीरो ने उत्तराखंड की पावन भूमि पर जन्म लेकर उत्तराखंड की माटी को , देवभूमि, वीरभूमि बना दिया। आज हम आपको इन्ही वीरो में से एक वीर नीलू कठायत का रोचक व अविस्मरणीय प्रसंग बताइयेंगे, आप इस रोचक प्रसंग का अंत तक आनन्द लीजिए। उम्मीद है, जब यह प्रसंग खत्म होगा,आप रोमांच और गर्व मिश्रित भावनाओं में गोते लगा रहे होंगे।

चलिए शरू करते हैं, इस वीर नीलू कठायत की दास्तां

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नीलू कठायत चंपावत के राजा गरुदचंद्र के राजदरबार में सेनापति (बक्सी) के पद पर विराजमान थे। वह बहुत ही बहादुर और बुद्धिमान सेनापति था। राजा ने उसे हुक्म दिया, कि वह तराई भावर से यवनों को निकाल कर, उसे कुमौनी राज्य में सम्मिलित करें। नीलू कठायत ने राजा कि आज्ञा को शिरोधार्य लेकर भावर से , यवन मलेछों को मार भगाया । और विजयी होकर राज दरबार ने राजा को नजीर पेश की। चंपावत के राजा ने खुश होकर उसे “कुमय्या खिल्लत”  बख्शी और 3 गांव माल( भाभर क्षेत्र)  के तथा 12″ ज्युला” जमीन सरदार नीलू कठायत को रौत  में दी। ( रौत देने का मतलब होता है, किसी व्यक्ति को उसकी असाधारण वीरता के बदले जमीन इनाम में देना। ) इसकी सनद के तौर पर नीलू कठायत के गांव में एक लेख, पत्थर पर खोद कर लगाया है।

इसी राजा के दरबार मे एक आदमी जस्सा कमलेखी ख्वास रहता था। उसका किला कमलेख गाव में था। यह जस्सा चापलूस किस्म का और राजा का, मुह लगा था। जस्सा मन ही मन नीलू कठायत से दुश्मनी रखता था। वह नीलू कठायत की मान सम्मान, प्रतिष्ठा और बहादुरी से मन ही मन जलता था।

इसलिए उसने राजा से चुपचाप कहा, कि नीलू कठायत बीर है, बक्सी है।उसने नवाब से मडुवा माल छुटाई है। इसलिए उसे वहा का प्रधान बना देना चाहिए। राजा नीलू को मन से अपने से दूर रखना नही चाहता था। लेकिन जस्सा के झांसे में आकर राजा राजी हो गया। और राजा ने नीलू कठायत के लिए भाबर सम्हालने का आज्ञा पत्र निकाल दिया। ऐसा हुक्म मिलने के बाद नीलू कठायत बहुत नाराज हुवा और कहने लगा, राजा ने उसकी बहादुरी का ऐसा सम्मान दिया, उसे भाभर की बुरी आवो हवा में मरने के लिए भेज दिया। भाभर यानी मैदानी क्षेत्र का गर्मी और बरसात ने मौसम अच्छा ना होने के कारण लोग , भाभर आने से डरते  थे।

नीलू कठायत
चित्र संकेत मात्र प्रयोग हेतु।साभार गूगल

अब नीलू कठायत को पता चल गया कि ,उसके दुश्मन जस्सा कमलेखी के कहने पर उसे भाभर भेजा जा रहा है। तो वह बहुत क्रोधित हो गया। वह तुरन्त राजा के दरवार में बिना दरबारी पोशाक पहने चंपावत में आया। इस पर जस्सा कमलेखी ने उसे तुरंत नमक मिर्च लगाई, बोला देखा महाराज कितना अहंकारी अफसर है, बिना दरबारी पोशाक के दरबार मे आ रहा है। जस्सा की चापलूसी से, राजा तुरंत झांसे में आ गया , उसने नीलू कठायत का अभिवादन भी स्वीकार नही किया, और मुह फेर लिया। और नीलू कठायत भी वहाँ से लौट कर अपने गांव कपरौली को चला गया। ­­

घर मे पत्नी ने पति को उदास देखा तो , अपने पति का उदासी का कारण पूछा ? तब नीलू कठायत ने कहा, कि वह राजा से झगड़ा कर के आया है। क्योंकि जस्सा कमलेखी के झांसे में आकर राजा ने उसकी बेज्जती की है। तब नीलू कठैत की पत्नी ने कहा,हे स्वामी आपने राजा के साथ लड़ाई करके गलत किया ! राजा के साथ दुश्मनी नही रखनी चाहिए, उनसे हमे बार बार मतलब पड़ता है।

नीलू कठैत की पत्नी ने कहा, कि मैं अपने बेटे, सुजू और वीरू को राजा की ख़िदमद में भेजूंगी। तभी नीलू कठैत ने मना किया, बोला मेरे बेटों को वहाँ मत भेजना, वहाँ मेरा दुश्मन जस्सा कमलेखी, मेरे बच्चों को मरवा देगा। पर नीलू कठैत की पत्नी ने अपने बच्चों को अपने भाई के घर भेजा। उसके बच्चे अपने मामा का घर तो ढूढ़ नही सके, लेकिन जस्सा कमलेखी के हाथ पड़ गए। कुटिल जस्सा उन बच्चो को बहला फुसला कर अपने घर ले गया और, वहाँ बन्द कर दिए।

और राजा के पास जाकर पहुच गया, वहाँ जाकर राजा को बोला, कि नीलू कठायत, ने अपने लड़को को मुझे मरवाने के लिए भेजा है, मैंने उनको कोठी में बंद कर रखा है। राजा ने उसके बेटों को अपने दरबार मे बुलाया, और उनकी आंखें निकालने का हुक्म दे दिया। जल्लादों ने गिरालचौड़ में जाकर उनकी आँखे निकाल दी।जब बच्चो के नाना को यह घटना पता चली तो, उन्होंने सरदार नीलू कठायत को पत्र भेजा, आपकी कैसी बहादुरी है, आप वहाँ राज सुख का आनंद लो और यहाँ, मेरे दोहतो की आँखें निकाल दी गई।

इस खबर का पता लगते ही सरदार नीलू कठायत के बदन में आग लग गई। नीलू कठैत गुस्से से पागल हो गया। वो अपने भाई बंधू लोगो को साथ लेकर , चंपावत राज महल पर टूट गया। राजा गरुदचंद्र और जस्सा कमलेखी , महल छोड़ कर एक उड़्यार ( गुफा )  में छिप गए।  नीलू कठैत ने सारा महल ढूंढा पर नही मिले। बाद में किसी ने नीलू कठायत को बता दिया, और नीलू वही गुफा में पहुँच गया। उसने गुफा में दोनो को पकड़ा, राजा को सलाम किया और बोला कि “आपको मैं नही मारूंगा, मेरी राजभक्ति के खिलाफ होगा, मेरे कुल की बदनामी होगी ” और उसने जस्सा कमलेखी को मार दिया।

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और राजा को छोड़ कर सीधा,जस्सा कमलेखी के कमलेख पहुँच गया। वहाँ जस्सा कमलेखी के महल को जला दिया, कमलेख में मार काट मचा दी। तब से कमलेखी का यह किला टूटा पड़ा है। कमलेखी कि किले को लूट कर नीलू कठैत वापस आ गया। बाद में राजा भी अपने महल में वापस आ गया। उसने नीलू कठैत को संदेश भेजा, ” कि मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नही है, मैंने जो भी किया, जस्सा के कहने पर किया। इसलिए मुझे माफ़ कर दो, और महल वापस आ जाओ। नीलू कठायत को राजा ने वापस दुबारा अपना सरदार ( सेनापति ) बना दिया। मगर राजा नीलू कठायत से मन ही मन चिढ़ने लगा था। राजा  को लगता था, की नीलू कठायत ने उसका अपमान किया है।

एक दिन मौका पाकर , राजा ने नीलू के भोजन में विष मिला दिया, लेकिन नीलू को पता चल गया कि इसमे विष मिलाया है,उसने राजा को कहा, मुझे अहसास हो गया कि इसमे तुमने विष मिलाया है करके, मगर तुम मेरे राजा हो, तुम्हे मार कर मेरी राजभक्ति खराब होगी। जा मैंने तुम्हें फिर से जीवन दान दे दिया।

इस कार्य से राजा की खूब निंदा हुईं। बहुत अपकीर्ति हुई राजा गरुदचंद्र की । राजा गरुदचंद्र ने 45 साल राज करके  सन १४१६ में इस संसार को त्याग दिया।

तो मित्रों यह थी , उत्तराखंड कुमाऊँ के वीर सेनापति सरदार नीलू कठायत की वीर गाथा। इस वीर गाथा का मूल स्रोत , बद्रीदत्त पांडेय जी द्वारा रचित कुमाऊँ के इतिहास से लिया गया है। यदि आपको यह कथा अच्छी लगी तो, सोशल मीडिया पर शेयर अवश्य करें । तथा हमारे फ़ेसबुक पेज देवभूमि दर्शन फ़ेसबुक पेज देवभूमि दर्शन को अवश्य लाइक करें।

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