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नौ ढुंगा घर चम्पवात का अनोखा घर जिसके हर कोने से 9 ही पत्थर दिखाई देते हैं।

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मूल फोटो - साभार गूगल

प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड के एक ऐसे ऐतिहासिक घर का वर्णन किया गया है ,जिसके बारे में कहा जाता है कि यह नौ पत्थरों से बना है। क्यूकी इसको किसी भी कोने से देखे तो केवल नौ पत्थर दिखाई देते हैं। इसलिए इसका नाम स्थानीय भाषा में नौ ढुंगा घर ( Nau Dhunga Ghar) यानि नौ पत्थरों वाला मकान भी कहते हैं।

उत्तराखंड का अनोखा घर नौ ढुङ्गा घर –

उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले में चम्पावत-पिथौरागढ़ राजमार्ग पर उससे 1.5 किमी दूर मांदली नामक गांव में एक प्राचीन मकान के भग्नावेश हैं। इस घर का नाम है नौ ढुंगा घर ( Nau Dhunga Ghar champawat ) यह घर यहाँ के मध्यकालीन भवनों का एकमात्र अवशेष है।

मांदली प्रारम्भिक वर्षों में चम्पावत के चन्द शासकों का आवास स्थल रहा था। इसकी पुष्टि राजा अभयचन्द के सन् 1358ई. के मानेश्वर शिलालेख से होती है। जिसमें कि उसे ‘मांदली’ से प्रसारित किये जाने का उल्लेख है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पुरातन भवनशिल्प का यह भग्नावशेष प्रारम्भिक चन्द शासकों के भवन का ही अवशेष हो सकता है। इसके अवशिष्ट प्रथम मंजिल की बनावट से लगता है कि यह भवन मूलतः दो मंजिला रहा होगा।

नौ ढुंगा घर के हर कोने से 9 पत्थर दिखाई देते हैं –

इस भवन की विशेषता यह है कि इसकी दीवारों पर लम्बाई में एक रद्दे में छोटे-बड़े मिलाकर केवल नौ पत्थरों का उपयोग किया गया है, किन्तु चौड़ाई में दीवारों का माप कम होने से उनका निर्माण 6 से 9 शिलाओं के योग से किया गया है। किसी भी कोने से गिननेपर 9 पत्थर ही होते हैं। अपनी इस विशिष्टता के कारण ही यह भवन ‘नौढुङा (नौ पत्थर वाला) घर के नाम से जाना जाता है।

नौ ढुंगा घर
मूल फोटो -साभार गूगल

डा. रामसिंह अनुसार इसमें लगी तरासी हुई शिलाओं की अधिकतम माप इस प्रकार है-2मी. लम्बाई x 0.67 सेमी. उठान x 0.31 सेमी. तक ऊपरी और निचली पहल की चौड़ाई है। पत्थरों को बड़ी कुशलता पूर्वक तराशा गया है। इसकी दीवारों की सभी शिलाएं लम्बाई में पंक्तिबद्ध चुनी गयी हैं।

संदर्भ – उत्तराखंड ज्ञानकोष प्रो dd शर्मा।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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