Friday, October 4, 2024
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मरोज त्यौहार उत्तराखंड के जौनसार में मेहमाननवाजी को समर्पित लोकपर्व

मरोज त्यौहार उत्तराखंड के जौनपुर ,जौनसार -बावर क्षेत्र का प्रमुख त्यौहार है। इसकी शुरुवात 28 गते पौष मास के दिन से शुरू होकर माघ मासान्त तक चलता है। जैसा कि पुरे हिन्दू समाज में जहाँ माघ के महीने को पवित्र महीना मानकर इसमें ,पूजा ,व्रत स्नान ,दान-पुण्य को अधिक महत्व दिया जाता है। वही जौनपुर ,जौनसार -बावर क्षेत्र में मरोज पर्व के दौरान पुरे माघ के महीने में ,मांस -मदिरा का सेवन करने और नाचगाने का आनंद लेने व् मेहमाननवाजी का आनंद लेते हैं। ठण्ड के मौसम में खाने पिने और मेहमाननवाजी के इस उत्सव को मरोज त्यौहार कहते हैं।

मरोज त्यौहार के दिन अलग अलग प्रकार के बकरे काटे जाते हैं। यहाँ के स्थानीय निवासी कई समय पहले से अलग अलग तरह के बकरे रखे जाते हैं। मरोज पर्व पर काटे जाने वाले बकरों की निम्न श्रेणियाँ होती है।

  1. खोलेड़ा – खालो अर्थात घर के रसोई घर के पास वाली कोठरी में गृहणी द्वारा उत्तम घास खिलाकर पाला गया स्वस्थ व् चर्बीयुक्त बकरा।
  2. खिलेड़ा – विशेष देखभाल और खास भोजन खिलाकर पाल पोष कर हस्टपुष्ट बनाया गया बकरा। जिसे दिन में बाहर खूंटी पर और रात को अंदर बांधा जाता है।
  3. बनेडा – मरोज पर्व के लिए बकरो के झुण्ड में से चुना गया बकरा। यह बकरा दिन में बकरो के झुण्ड के साथ रहता है ,लेकिन सुबह शाम रात को इसकी विशेष देखभाल की जाती है।
  4. क्रीत बकरा – कई लोग साल भर से बकरा घर में पाल पोश कर नहीं रख सकते। वे इस पर्व को मनाने के लिए बाहर से कोई भी बकरा खरीद कर ले आते हैं। यह बकरा उपरोक्त बकरों में कमजोर होता है।
मरोज त्यौहार
फ़ोटो सोशल मीडिया
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मरोज त्यौहार के दिन काटे गए बकरों की खाल को साफ़ करके उसके अंगो को सूखने के लिए रख दिया जाता है। इसमें यह निश्चित होता है , कि किस दिन कौन सा हिस्सा पकाया जायेगा। मरोज के आठवे दिन खोड़ा होता है ,उस दिन बकरे की सीरी और टांगों को भूनकर खाया जाता है। इस त्यौहार पर  पुत्रियों को उनका हिस्सा बांटा अर्थात मांस और कलेवा उनके ससुराल पहुचा दिया जाता है। ससुराल बांटा पहुंचने के बाद ही वे मायके आ सकती हैं। मरोज उत्सव जौनसार के अलावा हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में भी मनाया जाता है।

माघ मरोज पर्व के दौरान मेलों और गीत संगीत का आयोजन होता है। जो कि माघ आठ गते तक चलता है। लोग इन दिनों सम्मिलित रूप से एक दूसरे के घर जाकर आमोद -प्रमोद में तथा मेहमानो की आवाभगत में बिजी रहते हैं।

मरोज त्यौहार क्यों मनाते हैं –

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मरोज पर्व मानाने का पहला कारण यह है कि, इस क्षेत्र के लोग इन दिनों अपने खेती बाड़ी  के काम से मुक्त होते हैं। चूँकि इस  इलाके में काफी ठण्ड पड़ती है। इसलिए इस इलाके के लोग अपने रिश्तेदारों को घर बुलाकर या उनके घर जाकर साथ में खाना पीना करते हैं। और नृत्य संगीत करके आराम करने के दिनों को आनंद से मनाते हैं।

मरोज त्यौहार उत्तराखंड के जौनसार में मेहमाननवाजी को समर्पित लोकपर्व

माघ मरोज त्योहार मनाने के पीछे दूसरा कारण का आधार यहाँ कि लोक कथा है ,कहते है प्राचीन काल में जौनसार -बावर क्षेत्र में तमसा नदी के पास एक किरमिर नामक राक्षस ने आतंक फैलाया हुवा था। उस राक्षस के भोजन के लिए उस क्षेत्र के लोगो को बारी बारी से रोज जान देनी पड़ती थी। तब वहां के हुणभट्ट नामक ब्राह्मण अपनी तपस्या से प्रसन्न करके पर महासू देवता को हनोल  हनोल लाये। तब महासू देवता के आदेश पर उनके सेनापति कयलु महाराज ने किरमिर राक्षस का वध किया। राक्षस के वध की खबर पा कर पुरे क्षेत्र के निवासियों ने महीने भर खुशियाँ मनाई। कहा जाता है तभी से मरोज पर्व का चलन हुवा।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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