Sunday, April 27, 2025
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मां सरस्वती को ‘शिवानुजा’ क्यों कहा जाता है? एक गूढ़ कथा जो बहुत कम लोग जानते हैं

हिंदू धर्म में मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, वाणी, संगीत और कला की देवी माना जाता है। वे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में प्रमुख स्थान रखती हैं। सरस्वती का नाम लेते ही एक दिव्य, श्वेत आभा में लिपटी देवी का स्वरूप सामने आता है, जिनके हाथों में वीणा, पुस्तक, अक्षमाला और वरद मुद्रा होती है। उनकी उपासना से व्यक्ति को ज्ञान, विवेक, कला और वाणी की समृद्धि प्राप्त होती है।

सरस्वती के विभिन्न स्वरूप :

सनातन धर्मशास्त्रों में मां सरस्वती के दो प्रमुख रूपों का वर्णन मिलता है—

1. ब्रह्मा पत्नी सरस्वती वे मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति हैं और त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती) में से एक हैं।
2. ब्रह्मा पुत्री और विष्णु पत्नी सरस्वती – इन्हें ब्रह्मा की जिह्वा से उत्पन्न माना जाता है इसलिए वे ब्रह्मा की पुत्री भी हैं। कई ग्रंथों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु पत्नी) भी कहा गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, दोनों ही स्वरूप समान रूप से ब्रह्मज्ञान, विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री मानी गई हैं।

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सरस्वती और शिव का संबंध :

विद्या और संगीत के अधिष्ठाता भगवान नटराज शिव और मां सरस्वती को एक ही प्रकृति का बताया गया है। दुर्गा सप्तशती में दोनों के अद्वैत स्वरूप की व्याख्या की गई है। इसलिए, सरस्वती के 108 नामों में ‘शिवानुजा’ (शिव की बहन) नाम भी आता है।

सरस्वती के विविध नाम और स्वरूप :

सरस्वती को वाणी, शारदा, वागेश्वरी, वीणावादिनी, वेदमाता आदि कई नामों से जाना जाता है। उनका शुक्लवर्ण (श्वेत रूप) ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक है। वे श्वेत वस्त्र धारण किए, श्वेत कमल पर विराजमान, वीणा-पुस्तक धारण किए हुए दर्शाई जाती हैं।

सरस्वती की उत्पत्ति की पौराणिक कथा :

सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी ने संकल्प किया और ब्रह्मांड की रचना की। उन्होंने चर-अचर जगत का निर्माण किया, किंतु उन्हें लगा कि संसार में कुछ कमी है। चारों ओर मौन था, जीवन में कोई गति नहीं थी।

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इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की स्तुति की। विष्णु जी के आह्वान पर मूल प्रकृति आदिशक्ति प्रकट हुईं। उन्होंने अपने तेज से एक दिव्य नारी को उत्पन्न किया, जिनका श्वेत वर्ण था और जो वीणा, पुस्तक, माला और वरद मुद्रा से युक्त थीं।

मां सरस्वती को 'शिवानुजा' क्यों कहा जाता है? एक गूढ़ कथा जो बहुत कम लोग जानते हैं

जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया—

  • समस्त प्राणियों को वाणी प्राप्त हो गई।
  • जलधारा में कोलाहल उत्पन्न हुआ।
  • वायु में सरसराहट होने लगी।
  • संगीत और कला का जन्म हुआ।

देवताओं ने इस दिव्य देवी को ब्रह्मज्ञान, विद्या और संगीत की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा।

तब मूल प्रकृति आदिशक्ति ने घोषणा की कि सरस्वती देवी ब्रह्मा की अर्धांगिनी शक्ति (पत्नी) होंगी, जैसे लक्ष्मी विष्णु की शक्ति हैं और शिवा (पार्वती) शिव की शक्ति हैं।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी को अपनी शक्ति रूप में स्वीकार किया, और सृष्टि का सुचारु संचालन का कार्य शुरू हुआ।

सरस्वती की महिमा और उपासना :

सरस्वती देवी की उपासना करने से व्यक्ति में ज्ञान, वाणी और संगीत की शक्ति जागृत होती है। वे विद्या और बुद्धि की देवी हैं, जिनकी आराधना से मूर्ख भी विद्वान बन सकता है। **बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)** को मां सरस्वती की विशेष पूजा का विधान है।

ऋग्वेद में सरस्वती की महिमा :

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।”

अर्थ  –
मां सरस्वती परम चेतना हैं। वे बुद्धि, प्रज्ञा और वाणी की संरक्षिका हैं। हमारी विद्या और मेधा का आधार भगवती सरस्वती ही हैं।

निष्कर्ष :

मां सरस्वती वाणी, विद्या और कला की स्रोतस्विनी हैं। वे केवल पढ़ाई-लिखाई तक सीमित नहीं, बल्कि संगीत, नृत्य, काव्य, तर्कशक्ति, विचारधारा और सृजनात्मकता की भी देवी हैं। जो भी उनकी आराधना करता है, वह ज्ञान, विवेक और सत्य के मार्ग पर अग्रसर होता है।

इसलिए, सरस्वती वंदना के साथ अपने जीवन में ज्ञान, संगीत और सृजन की ज्योति जलाइए—

“या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।”

मां सरस्वती हम सभी को विद्या, विवेक और वाणी का आशीर्वाद दें!

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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