उत्तराखंड के कुमाऊनी राजपूतों का इतिहास और संस्कृति अत्यंत समृद्ध और गौरवशाली है। यह लेख कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडेय की प्रसिद्ध पुस्तक कुमाऊं का इतिहास के आधार पर तीन प्रमुख कुमाऊंनी राजपूत वंशों – बिष्ट, बोरा और भंडारी – की उत्पत्ति, योगदान और सांस्कृतिक महत्व को प्रस्तुत करता है।
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बिष्ट: विशिष्ट और सम्मानित वंश
बिष्ट शब्द का अर्थ है “विशिष्ट” या “उच्च सम्मानीय”। पांडेय जी के अनुसार, बिष्ट मूल रूप से एक पद था, जो कालांतर में जाति नाम के रूप में स्थापित हो गया। बिष्ट वंश कश्यप, भारद्वाज और उपमन्यु गोत्रों से संबंधित है। इतिहास बताता है कि बिष्ट वंश का आदि पुरुष चित्तौड़गढ़ से आया था, जबकि उपमन्यु गोत्र वाले बिष्ट उज्जैन से साबली (गढ़वाल) आए और फिर कुमाऊं में बसे।
अन्य कुमाऊनी राजपूत वंशों की तरह, बिष्ट भी एक ही गोत्र में विवाह नहीं करते, जिससे उनकी वंशावली की शुद्धता बनी रहती है। कुमाऊं के इतिहास में बिष्टों का योगदान उल्लेखनीय है। सोमचंद के शासनकाल में वे चंपावत में स्थानीय शासक थे, और रुद्रचंद के समय भी शक्तिशाली रहे। गैड़ा बिष्टों को राजा बाजबहादुर चंद ने लाया, और राजा देवीचंद के समय वे सर्वेसर्वा रहे।
बोरा: खस राजपूतों की विरासत
बोरा वंश को अक्सर बिष्ट जाति से जोड़ा जाता है, क्योंकि उनके गोत्र और शाखाएं समान हैं। बोरा वंश को खस राजपूतों में गिना जाता है। उनके आदि पुरुष दानुकुमार काली कुमाऊं के कोटालगढ़ में रहते थे। उन्होंने राजा कीर्तिचंद को कत्यूरी राजाओं को हराने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की, जिसके लिए उन्हें देवीधुरा से कोशी तक की जागीर दी गई।
बोरा वंश शिव शक्ति और स्थानीय देवताओं जैसे भूमिया, हरु और भैरव की पूजा करता है। उन्होंने बोरारो पट्टी की स्थापना की, जिसमें छह राठ बोरे शामिल हैं। नैनीताल के बेलुवाखान के थोकदार स्वयं को बोहरा लिखते हैं। बोरा वंश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक उपस्थिति कुमाऊं में आज भी मजबूत है।
भंडारी: भंडार के रक्षक
भंडारी शब्द का अर्थ है “भंडार का रक्षक” या “भंडारण का प्रबंधन करने वाला”। पांडेय जी ने भंडारी वंश को चंद्रवंशी राजपूतों की श्रेणी में रखा है, विशेष रूप से चौहान वंश से जोड़ा है। उनके आदि पुरुष ने राजा सोमचंद के शासनकाल में भंडारी के रूप में सेवा की और शुरू में चंपावत के पास वजीरकोट में बसे। जब राजधानी अल्मोड़ा स्थानांतरित हुई, तो उन्हें अल्मोड़ा के पास भंडरगांव (भनरगांव) में बसाया गया। बाद में वे कुमाऊं के विभिन्न गांवों में फैल गए।
भंडारी वंश ने अल्मोड़ा में प्रसिद्ध भनारी नौला का निर्माण किया। एक अन्य कथा के अनुसार, कुमाऊं के भंडारी राजपूत नेपाल के डोटी से आए, और नेपाल में उन्हें महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र से आया हुआ बताया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, भंडारी राजस्व और संसाधनों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार थे, जिसने उन्हें कुमाऊंनी समाज में महत्वपूर्ण प्रशासक बनाया।
कुमाऊनी राजपूतों का सांस्कृतिक महत्व
बिष्ट, बोरा और भंडारी वंश कुमाऊं की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। शासन, युद्ध और सांस्कृतिक प्रथाओं में उनके योगदान ने इस क्षेत्र पर अमिट छाप छोड़ी है। बस्तियों की स्थापना से लेकर परंपराओं के संरक्षण तक, ये वंश कुमाऊंनी पहचान को आकार देते रहते हैं।
कुमाऊं की विरासत के बारे में अधिक जानने के लिए, बद्रीदत्त पांडेय की कुमाऊं का इतिहास एक अमूल्य संसाधन है, जो इस क्षेत्र के अतीत में विस्तृत अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
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