Friday, May 9, 2025
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कुमाऊनी होली गीत (Kumaoni Holi Geet lyrics) | पहाड़ी होली गीत 2025

कुमाऊनी होली गीत (Kumaoni Holi Geet lyrics) | कुमाऊनी होली लिरिक्स –

देश की प्रसिद्ध होलियों में से एक है कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi)। डेढ़ से दो महीने तक चलने वाला यह त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौष माह से बैठकी होली (Baithki Holi) और रंग एकादशी से खड़ी होली (Khadi Holi) की रौनक शुरू हो जाती है। कुमाऊनी खड़ी होली (Kumaoni Khadi Holi) ब्रज और कुमाऊनी मिश्रित भाषा में गाई जाती है, जबकि बैठकी होली (Baithki Holi) में उर्दू का प्रभाव भी देखने को मिलता है।

हमने पहले ही कुमाऊनी होली (Kumaoni Holi) और कुमाऊनी होली गीत (Kumaoni Holi Geet) का एक विस्तृत संकलन तैयार किया है। इस पोस्ट के अंत में उन लेखों के लिंक दिए गए हैं, जहाँ से आप कुमाऊनी होली के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

कुमाऊनी होली गीत (Kumaoni Holi Geet Lyrics) –

  • दधि लूटे नन्द को लाल –

दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो-2
कहाँ के तुम ग्वाल गुजरिया (एक बोल)
कहाँ दधि बेचन जाय, बेचन ना जहियो – 2
दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो-2
मथुरा के हम ग्वाल गुजरिया (एक बोल),
गोकुल बेचन जाय, बेचन ना जहियो – 2
दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो – 2
कौन राजा के ग्वाल गुजरिया (एक बोल)
कौन लला दधि खाय, बेचन ना जहियो – 2
दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो – 2
कंस राजा के ग्वाल गुजरिया (एक बोल)
कृष्ण लला दधि खाय, बेचन ना जहियो – 2
दधि लूटे नन्द को लाल,बेचन ना जहियो-2
दूध पियो है नन्द को लाला (एक बोल)
माखन लेह चुराय, बेचन ना जहियो – 2
दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो – 2
दहि दीनी खाई, मटक दीनी फोड़ी (एक बोल)
नाहक रार मचाय, बेचन ना जहियो
दधि लूटे नन्द को लाल, बेचन ना जहियो – 2

  • जय बोलो यशोदा नंदन की –

जय बोलो यशोदा नंदन की,
जय बोलो यशोदा नंदन की-2
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे,
माला बिराजे चंदन की जय बोलो यशोदा नंदन की-2
मधुर-मधुर स्वर बाजे मुरलिया,
हाथ बिराजत यशोदानंदन की जय बोलो यशोदा नंदन की-2
जमुना के तट पर धेनु चरावे,
हाथ लकुटिया चंदन की, जय बोलो यशोदा नंदन की – 2
नाग कालिया के सर पर नाचे,
बंशी बजी मन रंजन की जय बोलो यशोदा नंदन की-2
दुष्ट दलन कंसासुर मार्यो,
रक्षा करी सब संतन की, जय बोलो यशोदा नंदन की-2
नारद शेष- महेश बिधाता,
सुर-नर-मुनि के बंदन की, जय बोलो यशोदा नंदन की-2
जय बोलो यशोदा नंदन की, जय बोलो यशोदा नंदन की-2

  • रंग में होली कैसे खेलूं –

रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ॥
घर घर से ब्रज बनिता आई,
लिए किशोरी संग, लाला लिए किशोरी संग,
चन्द्र सखी हसि यों उठ बोली, लगा श्याम के अंग,
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ॥
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता, उड़ते सातों रंग ।
भर पिचकारी सनमुख मारी, अंखियां हो गई तंग ।।
साड़ी सरस सभी मेरो भीजो,
भिज गयो सब अंग, लाला, भिज गियो सब अंग,
बज मारे को कहाँ भिगौउ, कारी कामर अंग,
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ||
चुनरी भिगोये, लहँगा भिगोये छूटौ किनारी रंग
सूरदास को कहा भिगोये, कारी कामर अंग
नैनन सुरमा, दाँतन मिस्सी, रंग होत भदरंग ।
मसक गुलाल मले मुख ऊपर, बुरौ कृष्ण को संग
रंग में होली कैसे खेलूँ री, मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री, मैं साँवरिया के संग ।
तबला बाजे सरंगी बाजे, अरू बाजे मिरदंग ।
कान्हा जी की वांसुरी बाजे, राधा जी के संग ॥
रंग में होली कैसे खेलूँ री, मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग ॥
रंग में होली कैसे खेलूँ री,मैं साँवरिया के संग।
कोरे कोरे कलश मंगाये, तापर घोलो रंग ।
भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली हो गई तंग
खसम तुम्हारों बड़ों निखट्टू, चलो हमारे संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री, मैं साँवरिया के संग ।
रंग में होली कैसे खेलूँ री, मैं साँवरिया के संग ॥

  • होली खेलत हैं कैलाशपती –

होली खेलत हैं कैलाशपती होली खेलत हैं..
शिव की जटा में गंगा बिराजे.
गंगा लाए भगीरथी, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं..
“बूढे नदिया, शिव जी बिराजे,
संग में लाये पारवती, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं..
हाथ त्रिशूल गले रूद्रमाला,
खाक रमाये लाख पती, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं…
भारी दान दियो शिव शंकर,
भस्मासुर चाहे पारवती, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं…
तीनों लोक फिरे शिव शंकर,
कहिं न मिले त्रिलोक पती, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं..
ध्यान करो जब शिव शंकर को,
नाचन लागे कैलाशपती, होली खेलत हैं, होली खेलत हैं…

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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