कोटिप्रयाग, उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में रुद्रप्रयाग जनपद की कालीमठ घाटी में स्थित एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान मंदाकिनी और कालीगंगा नदियों के संगम पर बसा है, जिसे इसके पुराणोक्त महत्व के कारण ‘उत्तरगया’ और ‘कोटिप्रयाग’ के नाम से जाना जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिकता का भी अनूठा संगम है। इस लेख में हम कोटिप्रयाग के धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व को विस्तार से जानेंगे।
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कोटिप्रयाग का धार्मिक महत्व –
कोटिप्रयाग का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड (अध्याय 90) में मिलता है, जहां इसे गंगा के समान पवित्र बताया गया है। पुराण के अनुसार, यहां पिंडदान करने से वही फल प्राप्त होता है, जो गंगा में पिंडदान करने से मिलता है। श्लोक में कहा गया है:
गंगायां पिंण्ड दानेन यत्फलं लभते नरः। तत्फलम् लभतेह्रात्र पिण्डदाने कृते सति।।
यहां एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है, जहां श्रावण और माघ मास में हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं। यह शिवलिंग भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। इसके अतिरिक्त, संगम के ऊपरी भाग में कोटिमयेश्वरी मंदिर स्थित है, जो मां काली को समर्पित है। इस मंदिर का पुराणों में विशेष महत्व है। स्कंद पुराण के अनुसार, जब मां काली अपने विकराल रूप में प्रकट हुईं और पूरा ब्रह्मांड भयभीत हो उठा, तब भगवान शिव उनके चरणों में गिर गए। मां काली ने तुरंत एक कन्या का रूप धारण कर लिया। इस घटना का उल्लेख स्कंद पुराण में इस प्रकार है:
कोटिमायेश्वरी देवी वसते नित्य वै इह। सर्वपापहरा देवी सुखसौख्यप्रदायिनी।।
यह मंदिर भक्तों के लिए सुख, शांति और पापमुक्ति का स्रोत माना जाता है।
कोटिप्रयाग का प्राकृतिक सौंदर्य –
कोटिप्रयाग न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। वसंत ऋतु में यहां की बुरांश (Rhododendron) की वनस्पतियां पूरे क्षेत्र को रंग-बिरंगे फूलों से सजा देती हैं, जिससे यह स्थान और भी रमणीय हो जाता है। मंदाकिनी और कालीगंगा का संगम स्थल प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शांत और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।
इसके अतिरिक्त, कोटिप्रयाग में दो विशाल रुद्राक्ष के वृक्ष श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। इन वृक्षों पर हजारों रुद्राक्ष उत्पन्न होते हैं, और भक्त इनमें से एकाक्ष रुद्राक्ष (एक मुखी रुद्राक्ष) की खोज में यहां आते हैं। एकाक्ष रुद्राक्ष को अत्यंत दुर्लभ और पवित्र माना जाता है, और इसे प्राप्त करना भक्तों के लिए सौभाग्य की बात होती है।
कविल्ठा: कालिदास का जन्मस्थान –
कोटि प्रयाग से लगभग 2 किलोमीटर दक्षिण में कविल्ठा नामक गांव स्थित है, जिसे जनश्रुति में महाकवि कालिदास का जन्मस्थान माना जाता है। कालिदास, जिन्हें संस्कृत साहित्य का शेक्सपियर कहा जाता है, ने अपनी रचनाओं जैसे मेघदूतम, अभिज्ञानशाकुंतलम और रघुवंशम से विश्व साहित्य में अमर स्थान बनाया। कविल्ठा गांव का यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व कोटिप्रयाग को और भी विशेष बनाता है।
कोटिप्रयाग क्यों है खास?
- धार्मिक महत्व: कोटि प्रयाग को ‘उत्तरगया’ कहा जाता है, और यहां पिंडदान का विशेष महत्व है। प्राचीन शिवलिंग और कोटिमयेश्वरी मंदिर इसे आध्यात्मिक केंद्र बनाते हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य: बुरांश के जंगल और नदियों का संगम इस स्थान को प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग बनाता है।
- सांस्कृतिक विरासत: कविल्ठा गांव और कालिदास से इसका संबंध इसे साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व प्रदान करता है।
रुद्राक्ष के वृक्ष: दुर्लभ एकाक्ष रुद्राक्ष की खोज में सैकड़ों लोग यहां आते हैं, जो इसे एक अनूठा आकर्षण प्रदान करता है।
कोटिप्रयाग की यात्रा कैसे करें?
कोटि प्रयाग रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है, जो उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान ऋषिकेश और देहरादून से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट है। यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे श्रावण या माघ मास में यात्रा की योजना बनाएं, जब यहां विशेष पूजा-अर्चना और जलाभिषेक का आयोजन होता है।
निष्कर्ष –
कोटिप्रयाग एक ऐसा स्थान है जहां आध्यात्मिकता, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत का अनूठा मेल देखने को मिलता है। चाहे आप एक धार्मिक यात्री हों, प्रकृति प्रेमी हों, या साहित्य और इतिहास में रुचि रखते हों, कोटिप्रयाग आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करता है। यह स्थान न केवल आपकी आत्मा को शांति देगा, बल्कि आपको उत्तराखंड की समृद्ध विरासत से भी जोड़ेगा।
अगली बार जब आप उत्तराखंड की यात्रा की योजना बनाएं, तो कोटिप्रयाग को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें। यह पवित्र संगम स्थल निश्चित रूप से आपके दिल और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ेगा।
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