Sunday, November 17, 2024
Homeमंदिरगर्जिया देवी मंदिर,रामनगर उत्तराखंड | Garjiya Mata mandir, Ramnagar

गर्जिया देवी मंदिर,रामनगर उत्तराखंड | Garjiya Mata mandir, Ramnagar

कोसी नदी के बीच स्थित माता का अनोखा मंदिर,गर्जिया मंदिर के बारे में –

कोसी नदी के बीच स्थित माता का अनोखा मंदिर ‘गर्जिया देवी मन्दिर’ उत्तराखण्ड के सुंदरखाल गाँव में स्थित है।जो माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर छोटी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है। जहाँ का खूबसूरत वातावरण शांति एवं रमणीयता का एहसास दिलाता है। यह मंदिर श्रद्धा एवं विश्वास का अद्भुत उदाहरण है।

उत्तराखण्ड का यह अनोखा मंदिर रामनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में गिरिजा देवी (गर्जिया देवी) का स्थान अद्वितीय है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। मान्यता है कि जिन मन्दिरों में देवी वैष्णवी के रूप में स्थित होती हैं, उनकी पूजा पुष्प प्रसाद से की जाती है और जहाँ शिव शक्ति के रूप में होती हैं, वहाँ बलि देने का प्रावधान है।

माँ गर्जिया देवी की इतिहास –

मान्यता है कि वर्ष 1940 से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था। सर्वप्रथम जंगल विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा गया और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ। प्राचीन काल से ही इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बहुत थी।

एकान्त सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहती कोसी नदी की प्रबल धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्तजन इस स्थान पर माँ के दर्शनों के लिये आने लगे। जंगल के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी यहाँ पर आये थे। कहा जाता है कि टीले के पास माँ दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था।

Best Taxi Services in haldwani

कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुये भी लोगों द्वारा देखा गया। यहाँ आकर मन्दिर में पहुँचने से पहले भक्त कोसी नदी में स्नान करते हैं. फिर 90 सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य मंदिर तक हैं। यहाँ भक्त फूल, प्रसाद, घण्टा, छत्र, चुनरी, जटा नारियल, लाल वस्त्र, सिन्दूर, धूप, दीप आदि चढाते हैं। बहुत-से लोग अपनी मनोकामना के लिये चुनरी की गाँठ बाँधते हैं। गार्जिया माँ के दर्शनों के बाद भक्त भैरों मन्दिर, शिव मन्दिर के दर्शन कर यहाँ खिचड़ी चढ़ाते हैं।

पूजा के विधान के अनुसार माता गिरिजा की पूजा करने के बाद बाबा भैरव को चावल और मास की दाल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करना जरूरी माना जाता है। मान्यता है कि भैरव की पूजा के बाद ही माँ गिरिजा की पूजा का सम्पूर्ण प्रतिफल हासिल होता है। नवरात्र तथा गंगा स्नान पर हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं।

अनुमान है कि वर्ष भर में पांच लाख से भी ज़्यादा श्रद्धालु यहाँ आते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु कई मन्नतें मांगते हैं. नव-विवाहित स्त्रियाँ यहाँ अक्षुण सुहाग की मनोकामना करती हैं. निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को माता गिरिजा देवी के दर्शनों एवं पवित्र कौशिकी (कोसी) नदी में नहाने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तरायणी, बसंत पंचमी, गंगा दशहरा, नव दुर्गा, शिवरात्रि, में भी काफ़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।

इसे भी जाने:- माँ झूला देवी का अनोखा मन्दिर जिसकी रक्षा करता है बाघ

गर्जिया देवी की कहानी –

वर्ष 1940 से पूर्व इस मन्दिर की स्थिति आज जैसी नहीं थी, कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस की धारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था।

मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देखकर भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थि रौ, बैणा थि रौ” अर्थात् ‘ठहरो, बहन ठहरो’, यहाँ पर मेरे साथ निवास करो। तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही हैं। मान्यता थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस पहाड़ी टीले में स्थित है।

1956 में कोसी नदी में आयी भीषण बाढ़ में मन्दिर की सभी मूर्तियाँ बह गई थीं।  पं. पूर्णचन्द्र पाण्डे ने मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार किया।एक दिन पं. पूर्णचंद्र को स्वप्न में माता ने दर्शन दिए। यह बात सन् 1967 की है। स्वप्न में मां ने बताया कि रानीखेत के पास कालिका देवी का मंदिर है।

उसी के समीप जंगल में एक वृक्ष की जड़ के पास (काले पत्थर ग्रेनाइट) ही भगवान लक्ष्मी नारायण की मूर्त दबी पड़ी है। माता ने आदेश दिया कि उस मर्ति को वहां से निकालकर गर्जिया देवी मंदिर में स्थापित कर दिया जाए। भक्त हृदय पांडे जी स्वप्न में दिखाई पड़े स्थान पर पहुंचे और खुदाई शुरू कर दी। आश्चर्य तब हुआ जब मूर्तियां निकल गईं मगर मंदिर भवन निर्माण की प्रतीक्षा तक मर्तियां उनकी कुटिया में ही रखी रहीं। इसी बीच ये मूर्तियां चोरी हो गईं। पांडे जी ने मर्तियां काफी खोजीं मगर नहीं मिलीं।

गर्जिया देवी

किंन्तु वर्ष 1972 में रामनगर रानीखेत राजमार्ग (वर्तमान गर्जियापुल से 100 मी. आगे) से गर्जिया परिसर तक पैदल मार्ग के निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो एक दिन जमीन में लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां दबी पाईं। पुरातत्व विभाग ने इस बार खोज कर मूर्ति का पंजीकरण किया और गर्जिया देवी के पास ही एक भव्य मंदिर का निर्माण कर उसमें ये मूर्तियां स्थापित करा दी गईं।

पुरातत्व विभाग के अनुसार ये मूर्तियां 800-900 वर्ष पुरानी हैं अर्थात् 11वीं 12वीं सदी की हैं ये मूर्तियां। 1971 में मन्दिर की देखरेख के लिए मंदिर समिति का गठन किया गया। वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की 4.5 फिट ऊंची मूर्ति स्थापित है।  मुख्य मूर्ति के साथ सरस्वती, गणेश तथा बटुक भैरव की संगमरमर की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित हैं. यहाँ एक लक्ष्मी नारायण मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहाँ पर खुदाई के दौरान मिली थी।

गर्जिया देवी मंदिर कैसे पहुचें -:

गर्जिया देवी मन्दिर में पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले “रामनगर” आना होगा जो की रेल और बस दोनों  माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रामनगर से आप रानीखेत जाने वाली बस पकड़ सकते है या फिर टैक्सी ले सकते हैं। रामनगर से 15 km दूर रानीखेत मार्ग पर स्थित है माँ गर्जिया देवी मन्दिर मंदिर।गर्जिया देवी मन्दिर से 7-8 km की दूरी पर ही “Jim Corbett National Park” है जहा पर आप जाकर घूम सकते है।

फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Pramod Bhakuni
Pramod Bhakunihttps://devbhoomidarshan.in
इस साइट के लेखक प्रमोद भाकुनी उत्तराखंड के निवासी है । इनको आसपास हो रही घटनाओ के बारे में और नवीनतम जानकारी को आप तक पहुंचना पसंद हैं।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments