Sunday, April 14, 2024
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झूला देवी मंदिर रानीखेत उत्तराखंड का इतिहास।

रानीखेत झूला देवी मंदिर के बारे में :-

अल्मोड़ा जिले के रानीखेत क्षेत्र के चौबटिया नामक स्थान में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक,लोकप्रिय माँ झूला देवी मंदिर रानीखेत शहर से 7 कि.मी. की दुरी पर स्थित एक लोकप्रिय पवित्र एवम् धार्मिक मंदिर है। यह मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है एवम् इस मंदिर को झुला देवी के रूप में नामित किया गया है।

स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। यह दुर्गा माता का एक छोटा सा प्राचीन मन्दिर है, जिसका निर्माण 8 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में माता एक लकड़ी के झूले पर विराजमान है। इसलिए यह झुला देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ पर मान्यता है, की भक्त लोग अपनी मनोकामना पुरी होने पर यहाँ ताम्बे की घंटी माता को अर्पित करते हैं, इसलिए मंदिर में चारों और हजारों घंटिया बंधी हुई हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं, मंदिर से माता के मूल पौराणिक मूर्ति 1959 में चोरी हो गई थी, उसके बाद नई मूर्ति की स्थापना की गई। रानीखेत में स्थित माँ झुला देवी मंदिर पहाड़ी स्टेशन पर एक आकर्षण का स्थान है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के चैबटिया गार्डन के निकट रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान मंदिर परिसर 1935 में बनाया गया है।

माँ झुला देवी मंदिर के समीप ही भगवान राम को समर्पित मंदिर भी है। झूला देवी मंदिर को माँ झुला देवी मंदिर और घंटियों वाला मंदिर के रूप में भी जाना जाता है रानीखेत का प्रमुख आकर्षण है यह ‘घंटियों वाला मंदिर’। मां दुर्गा के इस छोटे-से शांत मंदिर में श्रद्घालु मन्नत पूरी होने पर छोटी-बड़ी घंटियां चढ़ाते हैं। यहां बंधी हजारों घंटियां देख कर कोई भी अभिभूत हो सकता है।

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रानीखेत में स्थित मां दुर्गा के इस मंदिर की रखवाली बाघ करते हैं, लेकिन वह स्थानीय लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। नवरात्र पर मां के इस मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है।

झूला देवी मंदिर रानीखेत उत्तराखंड का इतिहास।

झूला देवी मंदिर की पौराणिक कहानी –

मां के झूला झूलने के बारे में एक और कथा प्रचलित है। माना जाता है कि एक बार श्रावण मास में माता ने किसी व्यक्ति को स्वप्न में दर्शन देकर झूला झूलने की इच्छा जताई। ग्रामीणों ने मां के लिए एक झूला तैयार कर उसमें प्रतिमा स्थापित कर दी। उसी दिन से यहां देवी मां “झूला देवी” के नाम से पूजी जाने लगी।

यह कहा जाता है कि मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है । चैबटिया क्षेत्र जंगली जानवर से भरा घना जंगल था । “तेंदुओं और बाघ” आसपास के लोगों पर हमला करते थे और उनके पालतू पशुओं को ले जाते थे । लोगों को “तेंदुओं और बाघ” से डर लग रहता था और खतरनाक जंगली जानवर से सुरक्षा के लिए आसपास के लोग ‘माता दुर्गा’ से प्रार्थना करते थे । ऐसा कहा जाता है कि ‘देवी’ ने एक दिन चरवाहा को सपने में दर्शन दिए और चरवाहा से कहा कि वह एक विशेष स्थान खोदे क्यूंकि देवी उस स्थान पर अपने लिए एक मंदिर बनवाना चाहती थी।

जैसे ही चरवाहा ने गड्ढा खोद दिया तो चरवाहा को उस गड्ढे से देवी की मूर्ति मिली।  इसके बाद ग्रामीणों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया और देवी की मूर्ति को स्थापित किया और इस तरह ग्रामीणों को जंगल जानवरों द्वारा उत्पीड़न से मुक्त कर दिया गया और मंदिर की स्थापना के कारण चरवाहा अपने पशुओ को घास चरहने के लिए छोड़ जाते थे।  मंदिर परिसर के चारों ओर लटकी हुई अनगिनत घंटियां ‘मा झुला देवी’ की दिव्य व दुख खत्म करने वाली शक्तियो को दर्शाती है ।

मंदिर में विराजित झूला देवी के बारे में यह माना जाता है कि झूला देवी अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं और इच्छाओं को पूरा करने के बाद भक्त यहाँ तांबे की घंटी भेट स्वरुप चढाने आते हैं

कैसे पहुंचें :-

मार्ग- रानीखेत जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। रानीखेत से काठगोदाम की दूरी 80 कि.मी है। रानीखेत से 7 कि.मी की दूरी पर झूला देवी मंदिर स्थित है।

सड़क मार्ग- रानीखेत से अल्मोड़ा 63 कि.मी, दिल्ली 354 कि.मी, नैनीताल 55 कि.मी की दूरी पर स्थित है। रानीखेत पहुंचने के बाद आप आसानी से झूला देवी मंदिर पहुंच सकते हैं।

वायु मार्ग– रानीखेत पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। रानीखेत से 114 कि.मी की दूरी पर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डे से बस लेकर आसानी से रानीखेत पहुंच सकते हैं।

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Pramod Bhakuni
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इस साइट के लेखक प्रमोद भाकुनी उत्तराखंड के निवासी है । इनको आसपास हो रही घटनाओ के बारे में और नवीनतम जानकारी को आप तक पहुंचना पसंद हैं।
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