Home संस्कृति कयेश या कैंश पहाड़ की शगुन सूचक परम्पराओं में एक समृद्ध परम्परा।

कयेश या कैंश पहाड़ की शगुन सूचक परम्पराओं में एक समृद्ध परम्परा।

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kumauni culture and tradition

कयेश या कैंश परंपरा  –

कयेश या कैंश परंपरा उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में शगुन सूचक परम्पराओं में से एक समृद्ध परंपरा है। कुमाऊं के क्षेत्रों में प्रयुक्त इस शब्द को संस्कृत के कलश शब्द से लिया गया है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्रों की सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार पहाड़ो में शुभकार्यों के अवसर पर यह परंपरा निभाई जाती है। यह परम्परा खासकर पहाड़ की शादियों में वरयात्रा के प्रस्थान और आगमन पर शगुन के रूप में बहिने या महिलाएं स्वागत में जल से भरी गागर या कलश लेकर स्वागत में खड़ी रहती है।

कयेश

वर का पिता या वर उसमे अपनी सामर्थ्यानुसार या अपनी इच्छा से उसमे रूपये डालता है। वधु या वर के घर में ग्लास में पानी रखकर उसमे हरी पत्तियां डाल कर आँगन में रखा जाता है। इसके अलावा पहले बारात पैदल मार्ग से जाती थी ,और बारात के मार्ग पर पड़ने वाले गावों के बच्चे महिलाएं रास्ते में पानी के भरे कलश लेकर खड़े रहते थे। और दूल्हे का पिता उसमे अपनी सामर्थ्यनुसार उसमे पैसे डालता है। इस परंपरा के विषय में कहा जाता है कि शुभकार्य पर जाने से पहले या यात्रा पर जाने से पहले या यात्रा मार्ग पर , पानी से भरे बर्तन देखना शगुन समझा जाता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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