Home इतिहास अशोक शिलालेख कालसी: देहरादून के पास सम्राट अशोक का ऐतिहासिक स्थल

अशोक शिलालेख कालसी: देहरादून के पास सम्राट अशोक का ऐतिहासिक स्थल

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अशोक शिलालेख कालसी: उत्तराखंड के देहरादून जनपद में स्थित कालसी, भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह स्थल मौर्य सम्राट अशोक द्वारा उत्कीर्ण किए गए 14 शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है, जो उनके धम्म (धर्म) और शांति के संदेश को प्रसारित करते हैं। कालसी, यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित है, जो न केवल प्राकृतिक दृष्टि से सुंदर है बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व भी रखता है।

कालसी का ऐतिहासिक महत्व :

कालसी का उल्लेख महाभारत और बौद्ध साहित्य में मिलता है। महाभारत काल में इसे राजा विराट की राजधानी माना जाता था, जहां पांडवों ने अज्ञातवास बिताया। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी सातवीं शताब्दी में इसे ‘सुधनगर’ के रूप में पहचाना। आधुनिक युग में, कालसी को उसके ऐतिहासिक शिलालेखों ने विशेष पहचान दिलाई। अशोक के 14 शिलालेखों में से 13वां शिलालेख यहां स्थित है, जिसे 1860 में ब्रिटिश अधिकारी फारेस्टर ने खोजा।

अशोक शिलालेख कालसी का परिचय :

कालसी में स्थित यह शिलालेख समुद्रतल से लगभग 1500 फीट की ऊंचाई पर है। यह शिलाखंड 10 फीट लंबा, 10 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा है। इसमें भगवान बुद्ध का प्रतीक माना जाने वाला एक हाथी उकेरा गया है। हाथी की आकृति के नीचे ब्राह्मी लिपि में “गजतम” लिखा गया है, जिसका अर्थ “श्रेष्ठतम हाथी” है। बौद्ध परंपरा में इसे भगवान बुद्ध के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

कालसी शिलालेख की भाषा और लिपि :

कालसी शिलालेख पाली भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। यह अशोक के आंतरिक प्रशासन, नैतिकता और मानवता के संदेशों का विवरण देता है।

कालसी शिलालेख के मुख्य संदेश :

अशोक शिलालेख में अनेक महत्वपूर्ण विषयों का उल्लेख किया गया है –

1.अहिंसा का संदेश : अशोक ने पशुओं की अनावश्यक हत्या पर प्रतिबंध लगाया। यह संदेश उनकी धर्म की अवधारणा को दर्शाता है, जो अहिंसा और करुणा पर आधारित थी।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं : जानवरों और इंसानों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना का उल्लेख मिलता है।

3.धम्म घोष की अवधारणा : युध्द घोष की जगह अशोक ने “धम्म घोष” (धर्म के प्रचार द्वारा विजय) को अपनाने की बात कही .

4. सार्वजनिक प्रशासन और नैतिकता : शिलालेख में नागरिक प्रशासन और सम्राट की नैतिकता आधारित नीतियों को प्रमुखता दी गई है।

अशोक शिलालेख कालसी

कालसी का प्राचीन नाम और सांस्कृतिक धरोहर :

कालसी को प्राचीन काल में “खलतिका” और “कालकूट” के नाम से जाना जाता था। यह स्थान हिमालय और मैदानी क्षेत्रों के बीच व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। यहां के खंडहर और मंदिर प्राचीन नगर की समृद्धि का संकेत देते हैं।

भौगोलिक स्थिति :

यह स्थल यमुना और उसकी सहायक नदी अमलावा के संगम पर स्थित है। अमलावा नदी इस स्थान को प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करती है।

पुरातात्विक महत्व :

1860 में खोजे गए इस शिलालेख को भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया है। शिला पर एक गुम्बद बनाकर इसे मौसम की क्षति से बचाया गया है। शिलाखंड पर उत्कीर्ण हाथी को आसमान से उतरते हुए दिखाया गया है। बौद्ध धर्म में इसे भगवान बुद्ध के जन्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

महाभारत और कालसी :

कालसी का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। राजा विराट की राजधानी विराटनगर और कालसी के आसपास के क्षेत्रों में पांडवों के अज्ञातवास की कथाएं जुड़ी हैं। यह क्षेत्र महाभारत के समय से ही एक ऐतिहासिक केंद्र के रूप में उभर कर आया।

बौद्ध धर्म और अशोक :

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में शांति, अहिंसा, और धर्म का संदेश फैलाने के लिए शिलालेखों का निर्माण कराया। कालसी का शिलालेख उत्तर भारत के प्रमुख बौद्ध स्थलों में से एक है।

कैसे पहुंचे कालसी –

कालसी देहरादून से लगभग 70 किमी की दूरी पर है।देहरादून से कालसी तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व :

आज के समय में कालसी न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि एक महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण भी है। संगम स्थल यमुना और अमलावा नदी का संगम दर्शनीय है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व इसे विशिष्ट बनाते हैं।

उपसंहार

अशोक शिलालेख कालसी न केवल इतिहास के पन्नों को सहेजता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म, और नैतिकता के मूल्यों को भी उजागर करता है। सम्राट अशोक का यह शिलालेख उनके धर्म और प्रशासनिक सिद्धांतों का प्रमाण है। यह स्थल भारत के गौरवशाली अतीत की एक अनमोल धरोहर है, जो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को नैतिकता, शांति और सह-अस्तित्व का संदेश देता है।

कालसी का यह शिलालेख भारतीय इतिहास, बौद्ध परंपरा, और प्राचीन प्रशासनिक सिद्धांतों को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह स्थान आज भी भारतीय संस्कृति के गौरव का प्रतीक है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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