माँ भगवती को समर्पित यह मंदिर कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले के उत्तर में स्थित सुई-बिसुंग पट्टी के बीच में लोहाघाट से लगभग 8 किलोमीटर पर लगभग 6957 फ़ीट ऊँचा पर्वत शिखर है जिसका नाम झूमादेवी है। इसलिए माँ भगवती के इस मंदिर का नाम झूमदेवी पड़ा है। इस मंदिर को झूमाधूरी मंदिर कहते हैं। यह मंदिर पाटन गांव से एक किलोमीटर की चढाई पर पड़ता है। यहाँ नेपाल से लेकर गढ़वाल तक के पर्वत शिखरों का भव्य दर्शन होते हैं।
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धार्मिक महत्व और इतिहास –
माँ झूमाधुरी निसंतान महिलाओं की गोद भरने वाली देवी के रूप में पूजी जाती है। कहते हैं माँ झूमाधुरी माता निसंतान महिलाओं की प्रार्थना सुनती हैं और उन्हें संतान सुख देती हैं। कहते हैं इस पर्वत पर माता का निवास युगों से है। जनश्रुतियों के अनुसार एक बार माता ने नेपाल के एक निसंतान पति पत्नी ने माता के स्वप्न निर्देशनुसार यहाँ पर माता के मंदिर की स्थापना की और माँ ने उन्हें संतान सुख दिया था। एक अन्य लोककथानुसार चम्पावत के एक प्रसिद्ध राजमिस्त्री को माँ ने रथ का निर्माण करने और मेला आयोजन करने को स्वप्न निर्देश दिया था।
सैकड़ों वर्षों से यहाँ प्रत्येक वर्ष नंदाष्टमी के दिन यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है। यहाँ निःसंतान महिलाएं रात भर माँ झुमदेवी का जागरण करती हैं। दूसरे दिन गांव से रथों पर सवार माँ के देव डांगरों को लोग खड़ी चढ़ाई में रस्सियों के सहारे खींच कर झूमाधुरी मंदिर तक पहुंचाते हैं। ग्राम सभा पाटन गांव के पालदेवी से तथा राइकोट महर गांव से निकलते हैं दो रथ। बताया जाता है कि संतान प्राप्ति के लिए रात भर जागरण कर रही महिलायें इन रथों के नीचे से गुजरती हैं। और पुरुष लम्बी -लम्बी रस्सियों से रथों को खींचते हैं। विशाल जनसैलाब माँ के जयकारों से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। और देव डांगरों के शरीर में अवतरित माँ रथ में से चवरऔर अक्षतों से अपने भक्तों को आशीष देती हैं। यहाँ चैत्र नवरात्री में भी विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
क्यों जाएं झूमाधूरी मंदिर –
माँ भगवती का झुमादेवी रूप निःसंतान दम्पत्तियों के लिए जीवन में उम्मीद की किरण की तरह है। कहते हैं माँ की कृपापात्र महिलाएं स्वयं इस बात की पुष्टि करती हैं कि माँ के आशीष से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई है। यहाँ माँ के मंदिर से सुन्दर प्राकृतिक दृश्य बड़े ही मनोरम लगते हैं। अभूतपूर्व शांति का अहसास होता है। यदि आप मेले के समय यहाँ गए तो यहाँ के लोगों की एकता ,आपसी समझ देखने योग्य है। क्योंकि खड़ी चढ़ाई में रथों को खींचना बड़ा ही दुष्कर कार्य है ,लेकिन माँ के आशीर्वाद और आपसी सूझ-बूझ से यह बहुत ही आसान लगता है। इसके अलावा चम्पवात में झूमदेवी के आस -पास एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल और दर्शनीय स्थल हैं। पहाड़ में विदेशों का अहसास कराने वाला अबाउट माउंट भी नजदीक ही है।
झूमाधूरी मंदिर तक कैसे पहुंचें:
माँ झूमाधूरी मंदिर जाने के लिए आपको सर्वप्रथम लोहाघाट शहर जाना होगा। वहां से से लगभग 7 या 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कई तरह के साधन उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से लोहाघाट से मंदिर तक जीप या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।और जो लोग साहसिक कार्य पसंद करते हैं वे पैदल मार्ग से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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