Thursday, May 22, 2025
Homeउत्तराखंड की लोककथाएँजागुली-भागुली कुमाऊं के लोकदेवता की कहानी

जागुली-भागुली कुमाऊं के लोकदेवता की कहानी

चंपावत कुमाऊं के लोक देवता जागुली-भागुली की कहानी :- उत्तराखंड को देवभूमी कहा जाता है। यहाँ कण कण में देवताओं का वास है। सनातन धर्म के लगभग सभी देवताओं को उत्तराखंड वासी पूजते हैं। हिन्दू धर्म के मूल देवताओ के अलावा उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में अनेकों लोकदेवी देवताओं को पूजते हैं। इनमें से उत्तराखंड कुमाऊं मंडल के चंपावत जिले की गंगोल पट्टी में खेतीखान के आस -पास के क्षेत्रों में खर्कवाल और ओली आदि ब्राह्मण जातियां जागुली-भागुली नामक लोकदेवताओं की पूजा करते हैं। इनके बारे में एक खास बात बताई जाती है, इनके पूजा  स्थल पर गौ और स्त्री को जाना वर्जित होता है। इसके पीछे एक ठोस कारण है,जिसे आगे कहानी में बताएंगे ।

जागुली-भागुली की प्रचलित लोक कथा :-

चंपावत जिले के गंगोल पट्टी में दो भाई रहते थे, जिनका नाम जगुवा और भगुवा था। वे सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे थे। मगर एक बार उनके जीवन मे अनहोनी घटना घटित हुई, उन पर उनकी कोई गलती से या किसी अन्य कारण से भूतों का प्रकोप हो गया। भूत उन्हें बहुत प्रताड़ित करने लगे। कई उपाय करने के बाद भी उन्हें भूतों से मुक्ति नहीं मिली। तब किसी ने उन्हें भर्त्यावनी (शायद तराई भाभर का कोई क्षेत्र ) जाने का सुझाव दिया। जगुवा भगुवा उस स्थान की ओर चले गए।

जागुली-भागुली

वहाँ कई दिन निवास करने के बाद ,एक दिन उन्हें एक झाड़ी में शिवलिंग मिला। शिवलिंग मिलने से उनके अंदर आत्मविश्वास आया और उन्हें लगा शायद महादेव उनके कष्टों का अंत कर देंगे। और उन्हें सच्चे मन से महादेव की पूजा करनी चाहिए। उस शिवलिंग को लेकर वे वापस चंपावत आ गए। वापस आकर उन्होंने शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी। भूतों ने उनको फिर परेशान करने की कोशिश की लेकिन , जगुवा भगुवा सच्चे मन से महादेव की पूजा की और उनकी भूतबाधा की समस्या खत्म हो गई।

वे फिर खुशी खुशी अपने गांव में रहने लगे गए। एक दिन जगुवा -भगुवा के साथ एक अनहोनी हो गई। पहाड़ में किसी कार्य हेतु गए दोनो भाई एक विशालकाय शिलाखंड के नीचे दब गए। जब दोनों भाई शिलाखंड के नीचे दबे, तब वहां पर एक गाय और एक स्त्री ने यह दृश्य देख कर भी किसी को नही बताया।

किसी को मदद के लिए नही बुलाया। इस प्रकार चट्टान के नीचे दबने से उनकी मृत्यु हो गई। और उनकी दुर्घटनावश अल्पायु मृत्यु होने के कारण वे दोनों भूत बन गए। लोगों ने उनकी जागुली-भागुली देवता के रूप में पूजा करने लग गए। और गाई -माई ने इनकी मृत्यु के बारे में किसी को नही बताया था, इसलिए गाय और स्त्री का इनके पूजास्थल पर जाना वर्जित है।

इन्हें भी पढ़े :-

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments