Sunday, November 17, 2024
Homeसंस्कृतिहुड़किया बौल उत्तराखंडी कृषि गीत

हुड़किया बौल उत्तराखंडी कृषि गीत

हुड़किया बौल उत्तराखंड के लोकगीतों में पारम्परिक कृषि गीत या श्रम गीत माने जाते हैं। इसमे लोक वाद्य हुड़के को बजाने वाले व्यक्ति को हुड़किया कहा जाता है। और बौल या बोल का अर्थ होता है, सामूहिक रूप से किया जाने वाला  कृषि कार्य। इसलिए हुड़किया बौल का अर्थ हुवा, सामूहिक रूप से किये जाने वाले कृषि कार्य के अवसर पर गया जाने वाला लोकगीत। इसमे खेती का काम और गीत की प्रक्रिया एक साथ चलने के कारण इसे अंग्रेजी में एक्शन सांग भी कहते हैं।

सामुहिक श्रमगीतों का आयोजन मुख्यतः बरसात के मौसम में खरीफ की फसलों में कृषि कार्य, धान की रोपाई, मडुवा की गुड़ाई के अवसर पर किया जाता है। उत्तराखंड के कृषि गीतों का आयोजन ग्राम स्तर या गांवों के कुछ कृषक परिवारों के स्तर पर किया जाता है। इस कार्य मे स्त्री पुरुष सभी की भागीदारी होती है। कुमाऊँ मंडल में गेवाड़ घाटी, कत्यूर, सोमेश्वर, बोरारौ, कैड़ारौ आदि घाटियों के बड़े कृषक गांवों के लोग, अलग अलग दलों में विभक्त होकर इस कार्य को सम्पन्न कराते हैं। और छोटे गांवों के लोग आपस मे एक दूसरे की मदद करके इन कृषि कार्यों को सम्पन्न करते हैं।

हुड़किया बौल
फ़ोटो साभार – भास्कर भौर्याल

बरसात के मौसम में जब बारिश की झड़ी लगी रहती है। इस मौसम में खेतों में कृषि कार्य , मडवे की गुड़ाई और धान की निराई वो भी , पानी से भरे खेतों में बड़ा ही उबाऊ और थकान भरी प्रक्रिया होती है। इसलिए सामूहिक रूप से एक दूसरे के कृषि कार्यों में सहयोग करने की प्रथा शुरू की गई। गांव के लोग सामूहिक रूप से बारी बारी से सभी के कृषि कार्य निपटाते हैं। इन कृषि कार्यों में सामुहिक रूप से कार्य कर रहे कृषक जनों का मनोरंजन करने और उनकी थकान मिटाने और उनको प्रोत्साहित करने के लिए, पहाड़ी लोक वाद्य यंत्र हुड़के की थाप( धुन) पर विभिन्न लोक कथाओं के आधार पर लोक गीतों का सामूहिक गान करते हैं। इसमे हुड़का वादक गीत के बोलों को शुरू करता है। और कृषि कार्य मे लगे हुए ,स्त्री पुरुष उन्ही पंक्तियों को सामुहिक रूप में दुहराते हैं।

इनके लोक गीतों के विषय प्रेम गाथाएं, व्यथागाथायें या वीर गाथाओं से संबंधित होते हैं। इसमे कुमाऊं क्षेत्र में भीमा कठैत, मालूशाही, कलविष्ट आदि की लोकगाथाएँ गीतात्मक रूप में गाते हैं। इसके साथ साथ कत्यूरी शासक राजा बिरमदेव (ब्रह्मदेव) की कहानी भी प्रमुखता से सुनाई जाती है। कहते हैं कि राजा बिरमदेव चखुटिया गेवाड़ से तैलिहाट आई एक महिला के प्रेम जाल में फस गया था। वह उस महिला से मिलने बैजनाथ से चखुटिया चला गया था। और राजा बिरमदेव को वहां षड्यंत्र के तहत मार दिया गया था।

Best Taxi Services in haldwani

इसके आयोजन के दिन सर्वप्रथम कृषिकार्य में भाग लेने वाले लोग और पहाड़ी कृषि यंत्र और बैलों को अक्षत रोली का टीका किया जाता है। ततपश्चात अपने अपने कुदाल (कृषियंत्रों) के साथ खेत मे कार्य शुरू करने की स्थिति में तैयार हो जाते हैं। तब हुड़किया (श्रमगीत गाने वाला) हुड़के की थाप पर परम्परागत रूप सभी देवी देवता , ब्रह्मा विष्णु, महेश और लोकदेवताओं, भूमिया, ग्वेल, हरु सैम का आवाहन करके कार्य सिद्धि की प्रार्थना की जाती है।और इस कृषि कार्य मे संलग्न लोगों, बैलों की कुशलता की कामना करता है।

हुड़किया बौल के चार रूप पाए जाते हैं। पहला आवाहन,दूसरा प्रार्थना शुभकामना, तीसरा गीत का विषय कथात्मकता चौथा भाग मंगलकामना। कृषि गीत गायक जिसे लोकभाषा में हुड़किया कहते हैं। वो गीत के प्रमुख स्वरों की शुरुआत करता है, कृषिकार्य करने वाले स्त्री पुरुष उन स्वरों को संयुक्त रूप से दोहराते हैं । इन गीतों के मधुर धुनों में इतना खो जाते है, कि कृषि कार्य करने वालों को थकान का पता ही नही चलता और गीत गाते गाते काम भी निपट जाता है।

कृषिकार्य के बाद श्रमगीत गायक जिसे हुड़किया कहते है, वो हुड़के पर दिन ढलने का संकेत देते हुए बार बार आते रहने की कामना करता है। और सभी कृषकों , बैलों आदि के जीवन की मंगल कामना के साथ गीत समाप्त करता है।

हुड़किया बोल, गाने वाले हुड़किया:-

उत्तराखंड कुमाऊं मंडल के एक दलित वर्ग को इस नाम से जाना जाता था। इनकी आजीविका का कोई निश्चित आधार नही था । ये विभिन्न रूपों में कुमाऊं के कृषक वर्ग से प्राप्त सहायता पर निर्भर था। हुड़किया का अर्थ होता है, पहाड़ के लोकवाद्य हुड़का धारण करने वाला । ये ऋतुउत्सवों , मंगल कार्यों और कृषि कार्यों पर अपने क्षेत्र के लोगों के घर जाकर , प्रसंगानुसार गीत सुनाते थे। और इनकी महिलाएं नृत्य से लोगो का मनोरंजन करते थे।

प्रतिदान में अन्न, फल, और वस्त्र पुरस्कार में प्राप्त करते थे। इसके अतिरिक्त ये स्थानीय वीरों और शासकों की वीरगाथा भी सुनाते थे। कालांतर में इन्होंने समय के साथ बदलते हुए, अपना व्यवसाय बदल कर कई प्रकार के स्थायी व्यवसायों में संलग्न हो गए हैं।

इन्हें भी देखें :-

सिंगोड़ी मिठाई , उत्तरखंड का एक छुपा हुवा स्वाद ।
“बाड़ी मडुवा” पहाड़ के लोगों का सुपरफूड
हई दशौर या हई दोहर :- कुमाऊं के किसानों का त्यौहार।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments