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मियावाला देहरादून का इतिहास: एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और नाम बदलने का विवाद

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मियावाला देहरादून का इतिहास: एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और नाम बदलने का विवाद
मियावाला देहरादून का इतिहास

मियावाला देहरादून उत्तराखंड की राजधानी का एक ऐसा क्षेत्र है, जो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य के 15 स्थानों के नाम बदलने की घोषणा के बाद मियावाला देहरादून का नाम रामजीवाला करने का प्रस्ताव विवादों में आ गया है। इस निर्णय ने स्थानीय लोगों की भावनाओं को झकझोर दिया है, क्योंकि उनका मानना है कि मियावाला का नाम उनकी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि अब सरकार ने इसका नाम बदलने का प्रस्ताव वापस ले लिया है।

मियावाला देहरादून – एक परिचय

मियावाला देहरादून देहरादून नगर निगम के अंतर्गत आने वाला एक क्षेत्र है, जो शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है। यह क्षेत्र न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी छिपा है। मियावाला का नाम गुलेर रियासत से आए गुलेरिया राजपूतों से जुड़ा हुआ है, जिन्हें “मियां” की सम्मानजनक उपाधि दी गई थी। यह उपाधि समय के साथ उनकी पहचान का हिस्सा बन गई और इस क्षेत्र का नाम “मियावाला” पड़ा।

हालांकि, उत्तराखंड सरकार के हालिया निर्णय के तहत इस क्षेत्र का नाम बदलकर रामजीवाला करने की घोषणा की गई है। सरकार का कहना है कि यह कदम भारतीय संस्कृति और महापुरुषों की विरासत को संरक्षित करने के लिए उठाया गया है। लेकिन स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का मानना है कि मियावाला का नाम बदलना इसकी ऐतिहासिक पहचान को मिटाने जैसा है।

मियावाला देहरादून का इतिहास: गुलेर रियासत से संबंध

मियावाला देहरादून का इतिहास हिमाचल प्रदेश की गुलेर रियासत और उत्तराखंड की गढ़वाल व टिहरी गढ़वाल रियासतों के बीच गहरे संबंधों से शुरू होता है। गुलेर रियासत, जो वर्तमान में कांगड़ा जिले का हिस्सा है, अपने शासन और समृद्ध संस्कृति के लिए जानी जाती थी। इतिहासकारों के अनुसार, गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल के लगभग 13 राजाओं के वैवाहिक और पारिवारिक रिश्ते गुलेर रियासत से थे। इन रिश्तों ने दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान को मजबूत किया।

प्रदीप शाह और गुलेरिया राजपूत

गढ़वाल के इतिहास में सबसे लंबे समय तक (लगभग 60 वर्ष) शासन करने वाले राजा प्रदीप शाह (1709-1772) का ससुराल गुलेर रियासत में था। उनकी पत्नी, जो गुलेरिया राजकुमारी थीं, के साथ उनके रिश्ते ने गुलेर और गढ़वाल के बीच एक मजबूत कड़ी स्थापित की। इसी तरह, टिहरी गढ़वाल के तीसरे राजा प्रताप शाह की पत्नी, जिन्हें गुलेरिया जी के नाम से जाना जाता था, भी गुलेर रियासत से थीं। यह महारानी टिहरी के राजा कीर्ति शाह की माता और महाराजा नरेंद्र शाह की दादी थीं।

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प्रदीप शाह के शासनकाल से ही गुलेरिया लोग अपने रिश्तेदारों के साथ गढ़वाल आने लगे थे। इन्हें “डोलेर” भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है कि वे दुल्हन रानी की डोली के साथ गढ़वाल आए थे। ये गुलेरिया लोग सम्मानित राजपूत थे, जिनका प्रभाव दोनों क्षेत्रों में फैला हुआ था। गढ़वाल और टिहरी के राजाओं ने इन लोगों को उनकी सेवा और रिश्तेदारी के सम्मान में कई जागीरें दीं, जिनमें से एक थी मियावाला जागीर

मियावाला जागीर का उद्गम

मियावाला देहरादून का नाम गुलेरिया राजपूतों की उपाधि “मियां” से पड़ा। यह उपाधि कोई जाति नहीं, बल्कि सम्मान का प्रतीक थी, जो गुलेर रियासत के लोगों को दी गई थी। राजा प्रदीप शाह ने इन गुलेरिया लोगों को मियावाला से लेकर कुआंवाला तक की विशाल जागीर प्रदान की थी। इस जागीर का उद्देश्य उनके परिवार के भरण-पोषण और सम्मानजनक जीवन को सुनिश्चित करना था। उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार पद्मश्री डॉ. यशवंत सिंह कटोच भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मियावाला का नाम गुलेरिया राजपूतों की पदवी से प्रेरित है।

“मियां” शब्द का अर्थ और भ्रांतियां

“मियां” शब्द को लेकर अक्सर भ्रांतियां फैलती हैं। आमतौर पर इसे मुस्लिम समुदाय से जोड़ा जाता है, क्योंकि यह हिंदी और उर्दू में एक सम्मानसूचक संबोधन है, जिसका अर्थ “महाशय” या “श्रीमान” होता है। लेकिन मियावाला देहरादून के संदर्भ में “मियां” का संबंध मुस्लिम समुदाय से नहीं, बल्कि गुलेरिया राजपूतों से है। यह शब्द स्थानीय परंपरा और बोलचाल में रच-बस गया था और गुलेरिया लोगों की पहचान बन गया।

रानी गुलेरिया जी: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

मियावाला देहरादून का इतिहास रानी गुलेरिया जी के योगदान के बिना अधूरा है। टिहरी गढ़वाल की यह महारानी गुलेर रियासत से थीं और अपने साहस, बुद्धिमत्ता, और सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती थीं। उनके पति प्रताप शाह की मृत्यु के बाद, जब उनका पुत्र कीर्ति शाह नाबालिग था, रानी गुलेरिया ने अंग्रेजों के नियंत्रण को रोककर टिहरी रियासत को स्थिरता प्रदान की। उन्होंने बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया और अपने जीवन को समाज सेवा में समर्पित कर दिया।

रानी गुलेरिया की विरासत आज भी टिहरी और गढ़वाल के लोगों के बीच जीवित है। उनका नाम मियावाला के इतिहास से भी जुड़ा है, क्योंकि उनके परिवार के लोगों को यह जागीर दी गई थी।

नाम बदलने का विवाद – मियावाला से रामजीवाला

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2025 में राज्य के 15 स्थानों के नाम बदलने की घोषणा की, जिसमें मियावाला देहरादून का नाम रामजीवाला करने का प्रस्ताव शामिल है। सरकार का तर्क है कि यह निर्णय स्थानीय भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखकर लिया गया है। लेकिन इस फैसले ने स्थानीय लोगों और इतिहासकारों के बीच विवाद को जन्म दिया है।

स्थानीय लोगों का विरोध

मियावाला के निवासियों का कहना है कि “मियां” शब्द का संबंध गुलेरिया राजपूतों से है, न कि किसी धार्मिक समुदाय से। उनका तर्क है कि यह नाम उनकी ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है और इसे बदलना उनके अतीत को मिटाने जैसा है। स्थानीय लोगों ने इस संबंध में शिकायत दर्ज की है और दावा किया है कि मियावाला का नाम गढ़वाल राजा प्रदीप शाह द्वारा गुलेरिया लोगों को दी गई जागीर से उत्पन्न हुआ था।

इतिहासकारों की राय

इतिहासकारों का मानना है कि मियावाला का नाम बदलना ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करना होगा। यह क्षेत्र गुलेर और गढ़वाल के बीच सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है, और इसका नाम बदलने से इस विरासत पर असर पड़ सकता है।

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मियावाला का वर्तमान स्वरूप

समय के साथ मियावाला देहरादून का स्वरूप बदल गया है। गुलेरिया राजपूतों के वंशजों ने अपनी पैतृक भूमि को बेच दिया, और अब यह क्षेत्र आधुनिक बस्तियों और विकास का हिस्सा बन गया है। हालांकि, मियावाला का नाम आज भी उस गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, जो गुलेर और गढ़वाल के बीच के रिश्तों से जुड़ा है।

मियावाला देहरादून का इतिहास गुलेर रियासत और गढ़वाल-टिहरी के बीच सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंधों की एक जीवंत कहानी है। यह क्षेत्र गुलेरिया राजपूतों की जागीर के रूप में शुरू हुआ और समय के साथ एक समृद्ध विरासत का प्रतीक बन गया। नाम बदलने का वर्तमान विवाद इसकी ऐतिहासिक पहचान को लेकर लोगों की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

मियावाला देहरादून न केवल एक स्थान है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति, और परंपरा का संगम है। इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले सकें।

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