Sunday, November 17, 2024
Homeकुछ खासकहानियाँहाथी की चालाकी, हिंदी बाल कहानी

हाथी की चालाकी, हिंदी बाल कहानी

उत्तराखंड की तराई में बाँस का एक बड़ा वन था। वहाँ बहुत सारे हाथी रहते थे। सभी हाथी मिल-जुलकर प्रेम से रहते। हाथियों के उस झुंड़ में अनेक बच्चे भी रहते थे। हाथी उन्हें भी प्रेम और सहानुभूति पाठ पढ़ाते।

एक बार सारे बच्चे जिद करने लगे कि वे नदी में नहाने के लिए जाएँगे। झुंड की एक बूढ़ी हथिनी को उनके साथ भेज दिया। बच्चे चाह रहे थे कि वो अकेले ही जाएँ, क्योकि बूढ़ी दादी माँ के रहते वे मनमाने ढंग से नहीं नहा पाते, शरारत नहीं कर पाते। बच्चो के नेता टप्पू ने कहा भी-“अब तो हम बड़े हो गए हैं और समझदार भी। हम सभी मिलजुल कर चले जाते हैं,दादी माँ तुम चलकर क्या करोगी ?”

दादी टप्पू और दूसरे बच्चो के मन की बात समझ गई। वह हॅसते हुए बोली-“मैं सब समझती हूँ रे, तू क्यों मना कर रहा है ?तुम्हारा जैसा मन हो नहाना-खेलना, मैं तुमसे क्या कहूँगी ?”

हाथी के बच्चे ने देखा कि दादी माँ मानने वाली नहीं तो वो चुप हो गया। पूरा काफिला घूमता-गाता, सूँड से रास्ते में फल तोड़ कर खाते नदी के किनारे पहुँचे। सारे बच्चे नदी में कूद पड़े। कोई नदी में पैर पसारकर बैठ गया, कोई अपनी सूँड से  दूसरे पर पानी की फुहारें बरसाने लगा, तो कोई सूँड से दूसरे को गुदगुदी करने लगा। दादी माँ किनारे पर बैठी हुई बच्चो को देख-देखकर प्र्सन हो रही थी।

Best Taxi Services in haldwani

तभी टप्पू दादी माँ के पास आया और बोला-“ओह ! बूढ़ी माँ तुम यहाँ बैठी रहोगी क्या ? आओ थोड़ी देर हमारे साथ नहा लो।” टप्पू दादी माँ को सूँड से पकड़कर नदी में ले गया।

उधर एक मगर बहुत देर से पानी में घात लगा कर बैठा था। दादी माँ जैसे ही मुड़ी उसने एक हाथी के बच्चे का पीछे से कसकर पैर पकड़ लिया। पर दादी माँ की  वृद्ध और अनुभवी आँखों से यह छिपा न रहा। उन्होंने तुरन्त धीरे से टप्पू से कहा-” टप्पू जल्दी करो। मगर विनेश को लिए जा रहा हैं। ”

तब तक हाथी के दूसरे बच्चो का ध्यान भी उधर चले गया था। वे शोर मचाने वाले थे, पर दादी माँ ने इशारे से मना कर दिया। वे सभी उधर ही बढ़ चले, जहाँ मगर के चँगुल में विनेश फॅसा हुआ था।

वहाँ विनेश मगर से कह रहा था-“वाह भाई वाह ! आज तो तुम्हें खूब मोटा लकड़ी का खंभा मिल गया। ” मगर कुछ न बोला। तब विनेश ने फिर कहा-“भाई साहब ! क्या इससे घर बनाओगे?”

मगरमच्छ चुपचाप आगे बढ़ता रहा। विनेश ने धीरे से टप्पू और बूढ़ी माँ से कुछ कहा। उन्होंने तुरंत दूसरे बच्चो को इशारा किया। वे सभी बच्चे थोड़ी-थोड़ी दूर पर नदी के उस पार तक फैल गए।

मगरमच्छ थोड़ा आगे बड़ा होगा कि हाथी का एक बच्चा बोला-“वाह भाई ! कितना मोटा लकड़ी का खंभा हैं। क्या तुम इसकी नाव बनाओगे ?” मगरमच्छ ने ध्यान से अपने मुँह में लगी चीज को देखा। “नहीं, यह तो हाथी का पैर हैं।” उसने अपने आप से कहा और आगे बढ़ने लगा।

मगरमच्छ थोड़ा आगे ही बड़ा था कि पानी में नहाता यह हाथी का बच्चा बोला-“प्रणाम दादा जी ! सुबह-सुबह मुँह में लकड़ी का मोटा तना दबाये कहा जा रहे हो ? क्या दादी ने खीर बनाने के लिए लकड़ी मॅगाई हैं ?”

हाथी की बात सुनकर उसके साथ के सभी हाथी जोर से हॅस पड़े। मगरमच्छ खिसिया गया। वह मन ही मन सोचने लगा की मै बेकार में कहीं खंभा ही तो नहीं ढो रहा हूँ। उसने अपना मुँह खोलकर हाथी का पैर बाहर कर दिया और वहाँ से तेज गति से भाग लिया।

मगरमच्छ के आँखो से ओझल होते ही सारे हाथी खुशी से जोर से चिंघाड़ उठे। सभी ने बूढ़ी माँ को घेर लिया और बोले-“वाह बूढ़ी माँ ! आपने अच्छी युक्ती सोची। ” बूढ़ी माँ कहने लगी-“यह सफल युक्ती विनेश की हैं, उसी को बधाई दो। ”

फिर क्या था ? सारे हाथियों ने धनेश को घेर लिया। उसको सूड़ो पर उठा लिया और लगे उसकी जय बोलने। टप्पू ने बहुत से फूल तोड़े, उन्हें एक-दूसरे में फँसाकर माला बनाई और विनेश को पहना दी। विनेश को आगे करके, झूमता-झामता, शोर मचाता हाथियों का झुण्ड वापिस घर लौटा।

रास्ते में टप्पू विनेश से कहने लगा-“वीनू तुम तो बड़े ही चालक हो गये हो। “बूढ़ी माँ कहने लगी-” टप्पू ! यह चालाकी नहीं बुद्विमानी है। चालाकी वहाँ होती है, जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दूसरे को कोई नुकसान पहुँचाया जाता हैं। इसके विपरीत अपना संकट दूर करने के लिए ऐसा उपाय सोचना कि जिसमे दूसरे का अहित न हो-बुद्विमानी हैं। ”

हाथी का एक बच्चा पूछने लगा-“अच्छा बूढ़ी माँ ! उस मगरमच्छ ने पहले तो हमारी बात पर विश्वास नहीं किया, बाद में क्यों कर लिया ?” बूढ़ी माँ समझाने लगी-“बच्चो ! एक ही बात को जब बार-बार दुहराया जाता है, तो वह सही लगने लगती है। बुद्धिमान वह है, जो दूसरो की कही-सुनी बात पर तब तक विश्वास नहीं करता जब तक की स्वय उसे परखकर न देख ले। सामान्य बुद्धि वाले तो दूसरो के कहे-सुने में आ जाते है और बिना सोचे-समझे ही काम करने लगते हैं।

बूढ़ी माँ फिर कहने लगी-“हमने तो यह उपाय आत्म-रक्षा के लिए अपनाया था, परन्तु ठग इस प्रकार की ठग लेते हैं। बुद्धिमानी इसी में है कि अपरिचित के कहने पर विश्वास ना करे, अपने विवेक से काम ले। ”

“आज आपने बहुत अच्छी बात बताई बूढ़ी माँ।” हाथी के बच्चे एक साथ बोले। बूढ़ी माँ ने घर जाकर सभी बच्चो की बहुत प्रशंसा की। वे कहने लगी कि बच्चे अब वास्तव में बड़े और समझदार हो गए हैं। अब उन्हें धनेश और गणेश के नेतृत्व में अकेले बाहर जाने की अनुमति मिल गई। झुंड के नेता ने सभी को बधाई दी। बूढ़े हाथी-हथनियों ने उन्हें शुभ कामनाएँ दी कि भविष्य में विपत्ति में फसने पर वे अकेले ही उनसे निपट सकने में समर्थ हों।

कथा संदर्भ :- बाल निर्माण की कहानियां, गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्धार।

इसे भी देखिए: यकुलांस उत्तराखंड की लघु फ़िल्म ,टीम पांडवाज की नेशनल लेवल की प्रस्तुति।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments