Friday, December 6, 2024
Homeराज्यघटकू देवता के रूप में पूजे जाते हैं भीम पुत्र घटोत्कच पहाड़...

घटकू देवता के रूप में पूजे जाते हैं भीम पुत्र घटोत्कच पहाड़ में।

उत्तराखंड के चम्पावत जिले यानी काली कुमाऊं में द्वापर युग के घटोत्कच पूजे जाते हैं घटकू देवता के रूप में। घटकू देवता का मंदिर काली कुमाऊं चम्पावत दो ढाई किलोमीटर दूर दिशा में चम्पावत तामली मोटरमार्ग पर स्थित है। यह मंदिर चम्पावत तामली मार्ग पर गिडया नदी के तट पर स्थित है है।

महाभारत युद्ध में घटोत्कच का सर यहाँ गिरा था –

स्कंदपुराण के मानसखंड के अनुसार महाभारत युद्ध में कर्ण की अमोघ शक्ति से कटकर घटोत्कच का सर यहाँ एक जलाशय में गिर गया था। अपने पुत्र का सर न मिलने के कारण पांडव बहुत दुखी थे। तब कहते हैं स्वयं घटोत्कच ने उन्हें स्वप्न में बताया कि उसका सिर यहाँ गिरा है। जब पांडव उसे ढूढ़ते ढूढ़ते यहाँ पहुंच गए। पहले तो वे भयंकर अतल सरोवर को देखकर घबरा गए कि अपने पुत्र के सर को यहाँ से कैसे निकाला जाय। तब उन्होंने माँ भगवती अखिलतारिणी से मदद मांगी ,उनके आदेश पर भीम ने अपनी गदा से सरोवर के एक हिस्से को तोड़ कर उसका जल प्रवाहित किया।

और उस सरोवर से घटोत्कच का सर बहार निकाल कर उसका श्राद्ध किया। पांडवों ने जिस शिला पर घटकू का श्राद्ध किया वह शिला अब धर्मशिला कहलाती है। लोग धार्मिक उत्सवों पर वहां स्नान करते हैं। भीम ने उस सरोवर के जल को प्रवाहित कर दिया जिससे गंडकी और लोहावती नामक नदिया निकली। भीम ने अपने पुत्र की शांति के लिए यह क्षेत्र घटकू को सौप दिया। कहते हैं बाद में घटकू देवता की माता हिडम्बा उर्फ़ हिंगला भी यहाँ आ गई अपने पुत्र के पास।

घटकू देवता

घटकू देवता के रूप में पूजे जाते हैं घटोत्कच यहाँ –

Best Taxi Services in haldwani

घटोत्कच को यह क्षेत्र मिलने के बाद यहाँ वे लोक देवता घटकू के रूप में पूजा जाता है। घटकू देवता का मंदिर फुंगर गांव के प्रारम्भ में ही सघन देवदार वनो में स्थित है। जिसमे घटोत्कच का प्रतीक के रूप में एक कुंड है। लोक मान्यता के अनुसार इस कुंड में चढाई गई सामग्री हिडम्बा देवी मंदिर में पहुंच जाती है। घटकू देवता की पूजा पूर्णतया सात्विक रूप से की जाती है। इसलिए यहाँ बलि सर्वथा वर्जित है। रक्त के नाम पर यहाँ लाल चन्दन ले जाना भी वर्जित है। यहाँ पूजा में सफ़ेद वस्त्र और अक्षत चंदन का प्रयोग किया जाता है।

घटकु देवता के गणो को मंदिर से कुछ दुरी पर परदे के पीछे बलि देकर संतुष्ट किया जाता है। सात्विक प्रवृति का होने के कारण यहाँ मृतक अशौच और रजस्वला स्त्रियों का जाना भी वर्जित है। घटकू देवता अन्य लोक देवताओं की तरह किसी के शरीर में अवतरित तो नहीं होता लेकिन इसे प्रसन्न करने के लिए भारतगान का आयोजन किया जाता है।

और पढ़े –

ठठोरी देवी – बच्चों की मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी की कहानी।

हमारे व्हाट्सअप ग्रुप में जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments