गढ़वाली लोक कथा – उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों का प्रकृति के साथ विशेष स्नेह रहा है। यही स्नेह यहाँ के निवासियों की लोक कथाओं में भी झलकता है पहाड़ी क्षेत्र की लोक कथाओं के पात्र अमूनन विभिन्न स्वर निकालने वाली चिड़िया या पेड़ पौधे या जगली जानवर होते हैं। प्रस्तुत गढ़वाली लोक कथा की पात्र भी एक चिड़िया है। जिसे हिंदी में चातक पक्षी कहते हैं। और जैसा की हमको पता है चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में आसमान से पड़ी पानी की बूंद को पीता है। और उस बूंद को प्राप्त करने वो जंगलो में निरंतर एक विशेष आवाज निकालता रहता है। जिसे स्थानीय निवासी अपनी अपनी भाषा में इसका अर्थ निकालने की कोशिश करते हैं।
गढ़वाली भाषा में इस पक्षी की बोली को सरग दिदा पाणी ,पाणी के शब्द दिए जाते हैं। जिसका अर्थ होता है आसमान दादा पानी दे दो। और कुमाऊनी भाषा में इसके स्वर को “ द्यो कका पाणी ,पाणी के शब्द दिए जाते हैं। वहां इसका मतलब होता है बारिश काका पानी दे दो। इस स्वर पर गढ़वाली और कुमाऊनी दोनों भाषाओं में लगभग एक सी कथा बनी है। इस गढ़वाली लोक कथा को पढ़कर जरूर बताये की आपके यहाँ भी यही कथा कही जाती है।या कुछ और ?
Table of Contents
सरग दिदा पाणी ,पाणी ! गढ़वाली लोक कथा –
पहाड़ के किसी गांव में एक बुढ़िया उसकी बेटी और नवविवाहिता बहु रहती थी। बुढ़िया की बहु बहुत सीधी थी। मगर बुढ़िया की बेटी थोड़ी चंचल और तेज थी। शायद बुढ़िया के लाड प्यार की वजह से स्वभाव में थोड़ी बेफिक्री और चुलबुलाहट थी। ( गढ़वाली लोक कथा )
एक दिन मई में महीने में उनकी गेहू की दै थी ( बैलों को घुमाकर गेहू की मड़ाई कर अनाज प्राप्त करने की प्रक्रिया ) वे बारी बारी बैलों को घुमा रहे थे , धूप बड़ी तेज थी। थोड़ी देर दई करके बैल गर्मी से हाफने लगे थे। बुढ़िया बहार आई तो उसने बैलों को हाफ्तें देखा तो , तुरंत खोल कर पानी पिलाने को कहा। ननद भाभी बातों बातों में काम भूल जाती थी ,इसलिए इस बार बुढ़िया ने एक प्रलोभन दिया कि जो पहले पानी पिलाकर लाएगी उसे मै खाने को खीर दूंगी।
खीर का नाम सुनकर दोनों की आखों में चमक आ गई। दोनों बिजली की चमक के साथ बैलों की तरफ लपकी। दोनों ने अपने अपने बैलों को पानी के श्रोत की तरफ हाँकना शुरू कर दिया। लड़की ने अपने बैलों को खूब हांका ! खूब डंडे से भी पीटा लेकिन फिर भी उसकी भाभी के बैल आगे निकल गए और वो पीछे रह गई। आधे रस्ते में पता नहीं उसे क्या सूझी ! उसने अपने बैलों की जोड़ी वापस घर की तरफ मोड़ दी। और प्यासे बैल खूंटो पर बांध दिए।
बुढ़िया ने बेटी को विजयी समझ और उसे खीर खाने को दे दी। उस समय भाभी ने भी ननद की शिकायत नहीं की उसे खीर खाने दी। खाने के बाद भाभी बोली ,” ननद जी अब आपने खाना खा लिया है ,अब बैलों को पानी भी पीला दो। वो कबसे प्यासे बांध रखे हैं। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी ! गोठ में एक बैल दम तोड़ रहा था ! और मरते मरते उसने ननद को फिटकार ( श्राप ) दिया।,” जैसे तूने मुझे पानी के लिए तड़पाया ! जा तू भी चिड़िया बन जायेगी और जिंदगी भर पानी के लिए तड़पेगी ! ( गढ़वाली लोक कथा )
कहते हैं उस बैल के श्राप से वो लड़की चिड़िया बन गई ,और भरी जेठ की दुपहरी में प्यास से तड़पकर ,सरग दिदा पाणी ,पाणी या द्यो कका पाणी ,पाणी के करुण स्वर में कूकती है।
निवेदन – आपको यह गढ़वाली लोक कथा अच्छी लगी हो तो हमारी संस्कृति से जुड़ी ये कथा किस्सों को पेज में दिए गए सोशल मीडिया आइकॉन के माध्यम से साँझा अवश्य करें।
इन्हे भी पढ़े _
उत्तराखंड की लोक कथा “ओखली का भूत”
हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।