मित्रो आज के लेख में हम आपके लिए एक खास गढ़वाली भजन या गढ़वाली माँगल गीत के बोल एवं वीडियो ऑडियो लाएं है। इस गीत के रचियता गायक गढ़रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी हैं। और इस गढ़वाली जागर, गढ़वाली भजन की कुछ लाइनों का प्रयोग , उत्तराखंड के सभी गायक अपना कार्यक्रम शुरू होने से पहले करते हैं। तो आइए शुरू करते हैं गढ़वाली जागर!
ॐ प्रभात को पर्व जाग …
गौ स्वरूप पृथ्वी जाग…
उंदकारी काठा जाग ….
भानू पंखी गरुड़ जाग….
सप्तलोक जाग …….
इंद्रा लोक जाग …..
मेघ लोक जाग…
सूर्य लोक जाग …
चंद्र लोक जाग …
तारा लोक जाग…
पवन लोक जाग….
ब्रह्मा जी को वेद जाग…
गौरी को गणेश जाग …
हरू भरु संसार जाग …
जीव जाग , जीवन जाग …
सेतु समुद्र जाग ….
खारी समुद्र जाग, खेराणी जाग ….
घोर समुद्र जाग , अघोर समुद्र जाग…
प्रचंड समुंद्र जाग…..
श्वेत बंधु रामेश्वर जाग …..
हूं हिवालु जाग , पाणी पयालु जाग …
बाला बैजनाथ जाग , धोली देवप्रयाग जाग …
हरि कु हरिद्वार जाग ……
काशी विश्वनाथ जाग …..
बूढ़ा केदारनाथ जाग ….
भोला शम्भूनाथ जाग ….
काली कुमाऊं जाग ….
चोपड़ा , चौथाण जाग ….
खटिम कु लिंग जाग …
सोबन की गादी जाग ….
दैणा होया खोली का गणेशा हो…..
दैणा होया मोरी का नरेणा हो ….
दैणा होया खोली का गणेशा हो…
दैणा होया मोरी का नरेणा हो ….
दैणा होया भूमि का भूम्याला हो….
दैणा होया पंचनामा देवा हो…..
दैणा होया नौ खोली का नाग हो ….
दैणा होया नौखंडी नरसिंगा हो ..
गायक एवं लेखक –“इस गढ़वाली भजन के लेखक , गायक उत्तराखंड गढ़वाली लोक संस्कृति, लोक संगीत के पुरोधा , गढ़रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी हैं। श्री नेगी जी द्वारा रचित यह गढ़वाली माँगल गीत, भजन, गढ़वाली जागर , उत्तराखंड लोक संस्कृति के इतिहास में शुभारम्भ गीत के तौर पर सदा सदा के लिए अमर हो गया है।
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श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा रचित इस गढ़वाली माँगल गीत का वीडियो देखने हेतु यहां क्लिक करें।