Friday, March 28, 2025
Homeत्यौहारउत्तराखंड के लोक पर्व हरेला पर निबंध

उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला पर निबंध

उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला पर निबंध –

 

भारत एक विविधताओं का देश है। भारत देश में एक नीले आसमान के नीचे कई समृद्ध संस्कृति फल फूल रही हैं। भारत की अनेकताओं में कुछ त्यौहार ऐसे हैं ,जो सारे देश को एक साथ जोड़ते हैं।  सावन माह में देवभूमि कहे जाने वाले राज्य उत्तराखंड में एक प्रकृति को समर्पित त्यौहार हरेला मनाया जाता हैं।

उत्तराखंड के निवासी प्राचीन काल से ही ,प्रकृति के प्रति अपना प्रेम और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी दर्शाते आएं हैं। उत्तराखंड में मनाया जाने वाला यह पर्व मूलतः पर्यावरण के साथ साथ कृषि विज्ञानं को भी समर्पित है। वैसे तो उत्तराखंड में साल में तीन बार हरेला बोया जाता है। चैत्र मास, श्रावण मास और अश्विन मास में। श्रावण मास में कर्क संक्रांति को मनाये जाने वाले हरेले का विशेष महत्त्व है।

Hosting sale

हरेला त्यौहार क्या है? और क्यों मनाया जाता है ?

प्रकृति हमे प्राण वायु से लेकर हमारे जीवन चक्र को संतुलित रूप में संचालित करने लिए , हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है। उसी मदद का आभार प्रकृति की रक्षा और पूजा के रूप में प्रकट करने का पर्व है हरेला। हरेले के दिन पेड़ लगाकर प्रकृति के सवर्धन में अपनी तरफ से एक छोटा सा योगदान देकर प्रकृति के चिरायु रहने की कामना की जाती है।

Best Taxi Services in haldwani

हरेला त्यौहार सावन माह की कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य भगवान दक्षिणायन होते हैं , और धीरे धीरे दिन छोटे और राते बड़ी होने लगती हैं। इसलिए हरेला ऋतू परिवर्तन का सूचक पर्व भी है। पहाड़ो में कही -कही हरेला ,हर -काली नाम से मनाया जाता है। अर्थात हरेला त्यौहार भगवान शिव को समर्पित त्यौहार भी है ,चुकी पहाड़ों में सौर कलैण्डर के आधार पर कर्क संक्रांति यानी हरेले के दिन से भगवान शिव का प्रिय माह  सावन माह शुरू होता है।

 उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला मनाने की विधि –

हरेला मुख्यतः उत्तराखंड मंडल का प्रमुख त्यौहार है। हरेला त्यौहार से  11 या 10 दिन पहले ,शुद्ध, स्थान की मिट्टी साफ करके , छान के उसमे सात या पांच प्रकार के अनाज बोये जाते है।अनाजों में  उरद , मकई ,गहत ,तिल , भट्ट ,धान आदि के मिश्रण को बोते हैं। प्रतिदिन पानी से सिंचित करते हैं।

कुमाऊं में कही -कही हरेला काठ की पट्टी में या टोकरियों में बोते हैं। और कही कही मालू के पत्तों के दोने में बोते हैं  तदोपरांत कर्क संक्रांति की पूर्व संध्या को हरेले की गुड़ाई की जाती है।  तथा उन्हें बांध दिया जाता है। और फल में कही कही जुड़वाँ दाड़िम फल चढ़ाने का रिवाज भी है। और घर में पकवान के रूप में मीठी रोटी जिसे छऊ कहते हैं, बनाई जाती है।

हरेला पर्व पर बनाये जाने वाले डिकारे  –

इसके अतिरिक्त इस दिन, चिकनी मिटटी, रुई और पानी के मिश्रण को कूट कूट कर उसे लचीला बना लिया जाता है, उसके बाद उसे मूर्ति के सांचे में रखकर, भगवान शिव, पार्वती  गणेश और उनके परिवार की मुर्तिया बनाई जाती है। डिकारे को छाया में सुखाया जाता है। जिन्हे चावल आदि के लेप लगाकर, लेप सूखने के बाद इनके हाथ पाव  बनाये जाते हैं। शरीर पर रंग भरकर, बारीक़ सींक से आँख और कान बनाये जाते हैं।

बाद में वस्त्र आभूषणों के रंग भर दिया जाता है। इस प्रकार इन मूर्तियों को डीकारे कहा जाता है। हरेले की पूर्व संध्या को, हरेला के बीच में रखकर इनकी भी पूजा की जाती है। इसे डिकार पूजा, या डिकरे  की पूजा भी कहते हैं।

उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला
हरेला पर डिकारे ,फोटो साभार -सोशल मीडिया

हरेले के दिन परिवार के सभी सदस्य , प्रातः जल्दी उठकर स्नान करके पूजा पाठ की तैयारी करते हैं।  महिलाओं का विशेष कार्य होता है कि वे स्वादिष्ठ पारम्परिक भोजन तैयार करें। कुल पुरोहित आकर हरेला काट कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करके आशीष देकर जाते हैं। उसके बाद घर के बुजुर्ग घर में बच्चों के सर में हरेला चढ़ाते हुए आशीष देते हैं, जी राये। जागी राये। यो दिन यो बार भेट्ने राये। और अपने कुल देवताओं के मंदिर में हरेला चढ़ाया जाता है। हरेले के दिन लोग वृक्षारोपण करके प्रकृति के संरक्षण और चिरायु की कामना करते हैं। इस दिन एक दूसरे को ,फलफूलों की भेंट देकर खुशिया मानते हैं।

हरेला पर्व का महत्त्व –

हरेला पर्व का समस्त मानव जाती के जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व है। हरेला पर्व मनुष्य को धरती पर जीवन यापन में सहयोग करने वाली प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन करने की प्रेरणा देता है। इसके साथ साथ सूर्य के दक्षिणायन होने के दिन मनाये जाने के कारण ,ऋतू परिवर्तन सूचक पर्व के रूप में भी हरेले का विशेष महत्त्व है। हरेले के अवसर पर उत्तराखंड की लोक कला ऐपण पर आधारित डिकरे बनाये जाते हैं , जिस कारण उत्तराखंड की लोककला और संस्कृति के प्रचार में भी हरेले का महत्त्व जुड़ जाता है। हरेला पर्व प्रकृति की रक्षा की सद्भावना पर आधारित है।

हरेला पर्व के बारे में सम्पूर्ण जानकारी एवं शुभकामना संदेशों के लिए यहाँ क्लिक करें

हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments