Friday, July 26, 2024
Homeसंस्कृतिउत्तराखंड की लोककथाएँचौमू देवता या चमू देवता की रयूनी- द्वारसों आगमन की कहानी, कुमाऊं...

चौमू देवता या चमू देवता की रयूनी- द्वारसों आगमन की कहानी, कुमाऊं के पशुपालकों के देवता

Chamu devta of kumaun

चौमू देवता का अर्थ है, चार मुह वाला देवता। चमू देवता उत्तराखंड के लोक देवता हैं। इनको पशु चारको का देवता माना जाता है। इनको चमू देवता, चौमू देवता ,चौखम देवता,चमू राज आदि नामों से जानते हैं। चौमू देवता का मूल स्थान चंपावत जिले का नेपाल से सटा हुआ क्षेत्र गुमदेश माना जाता है। चंपावत गुमदेश में चौमू देवता का प्रसिद्ध मंदिर है। चमू देवता की कल्पना पशुपतिनाथ शिव की चतुर्मुखी रूप से की जाती है।

कहा जाता है, प्राचीन काल मे चंपावत गुमदेश क्षेत्र में बकासुर नामक राक्षस ने आतंक मचाया था। तब एक बृद्ध महिला की करुण पुकार पर चौमू देवता ने ,इस क्षेत्र को बकासुर के आतंक से मुक्त कराया।तब से इसी उपलक्ष में प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र में चंपावत गुमदेश के चौमू देवता मंदिर में चैतोला मेले का आयोजन  किया जाता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष चमू देवता अवतरित होकर सभी को आशीर्वाद देते हैं।

कहा जाता है कि , चंपावत गुमदेश के ऐतिहासिक चमू देवता मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान कराया था। गुमदेश के अलावा अल्मोड़ा जिले के रयूनी द्वारसों क्षेत्र में भी चमू देवता को पूजा जाता है। यहाँ चमू देवता का मूल मंदिर रयूनी द्वारसों में है। चमू देवता की चौमुखी लिगं के रूप में पूजा होती हैं

इसे भी पढ़े: पहाड़ी बद्री गाय, उत्तराखंड की कामधेनु गाय है।सर्वगुण सम्पन्न

चमु देवता की रयूनी- द्वारसों आगमन की कहानी

Best Taxi Services in haldwani

चौमू देवता के रियूनी – द्वारसों आने के बारे में एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है, की 1500 ई के आस पास रणवीर सिंह राणा नाम के व्यक्ति चंपावत से, नर्मदेश्वर भगवान का लिंग अपनी पगड़ी में बांध कर ला रहे थे। रानीख़ेत के पास घारीघाट पानी के स्रोत के पास उन्होंने अपनी पगड़ी नीचे रखी,पानी पिया ।

पानी पीने के बाद वो ज्यूँ ही पगड़ी उठाने लगे तो ,पगड़ी नही उठी। तब राणा जी मदद के लिए कुछ लोगों को बुला कर लाये,सब लोगों ने बड़ी मुश्किल से उस लिंग को उठा कर बांज के पेड़ के पास रख दिया। मगर दूसरे दिन देखा तो वो लिंग वहाँ नही था, ढूढने पर वो लिंग रियूनी और द्वारसों की सरहद पर था। अतः फिर दोनों गावों ने मिलकर चमू देवता का मंदिर रियूनी द्वारसों में बनाया। इस मंदिर में चढ़ने वाली हर भेंट के हकदार भी दोनो गाँव बराबर हैं।

चौमू देवता
चमू देवता, गुमदेश चंपावत फ़ोटो सभार
– दैनिक जागरण

इस घटना को सुनने के बाद ,अल्मोड़ा के तत्कालीन राजा रतनचंद ने लिंग के दर्शन जाने की इच्छा जताई, पर अच्छा मुहूर्त न होने के कारण ना जा पाए। तब उसी रात चमू देवता ने उनके स्वप्न में आकर कहाँ, यहाँ राजा तू नही मैं हूँ। तू क्या मेरी पूजा करेगा। चमू देवता को क्षेत्र के लोग चमू राज ( चमू राजा ) नाम से भी बुलाते हैं। और मझखाली के आस पास के गावँ का सबसे बड़ा मंदिर यही है। लोग जब चमु देवता को पूजा देते हैं तो यही आते है। स्थानीय स्तर पर इस मंदिर को चमु दीबाव (Chamu Dibav )के नाम से बुलाते हैं।

हरज्यू , और सैम देवता की जन्म कथा को पढ़ने को यहाँ क्लिक करें …

क्यों करते हैं चौमू देवता की पूजा ?

चौमू देवता  की संकल्पना पशुपतिनाथ शिव के चतुर्मुखी रूप से की जाती है। कुमाऊं क्षेत्र में चमू देवता को पशुओं और पशुपालकों का देवता माना गया है। पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य के लिए तथा पशुओं की रक्षा के लिए चमू देवता की पूजा की जाती है। कहाँ जाता है ,कि पशुओं के जीवन का प्रबंधन का कार्य जिन देवताओं को मिला है,उनमे एक देव चमू देवता हैं। चमू देवता को खुश करने के लिए प्रत्येक नवरात्र में यहाँ पूजा अर्चना होती है। बकरियों की बलि दी जाती है।

जब गाय या भैस का बच्चा होता , बिना चमू देवता की पूजा किये ,चमू देवता को उसके दूध का पहला भोग लगाएं बिना उस दूध को ,रोटी चावल के साथ प्रयोग नहीं करते । उसका सार्वजनिक प्रयोग या बिक्री के लिए प्रयोग नही करते। क्षेत्र के प्रत्येक गांव के ऊँचे स्थान पर चमू देवता का मंदिर होता है।

गाँव मे सबसे टॉप पर चमू देवता का मंदिर होने के पीछे एक कारण बताया जाता है, कि चमू देवता का मूल स्थान रियूनी द्वारसों है, इसलिए इसी क्षेत्र के आसपास के गावों में चमू देवता की पूजा होती है। और गावों में चमू देवता का मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाता है, जहाँ से रियूनी द्वारसों दिखता है या नजर पड़ती है।

रियूनी द्वारसो क्षेत्र में गाय भैंस खरीदने पर ,उसकी मूल कीमत के साथ, चमुवा भेंट ( मतलब चमू देवता के लिए भेंट )  देना ज़रूरी होता है। रियूनी द्वारसों से पशु खरीदने वालों के लिए चमू देवता की पूजा अनिवार्य है।

“प्रस्तुत लेख का संदर्भ बद्रीदत्त पांडे जी द्वारा लिखित कुमाऊँ के इतिहास से लिया गया है।”

उत्तराखंड पाशुचारकों के एक और देवता बधाण देवता और उनके तीर्थ बाधाण स्थली के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करें।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments