Tuesday, May 27, 2025
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चैती मेला (Chaiti Mela) | उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का इतिहास और चैती मेला 2025 

चैती मेला (Chaiti Mela) उत्तराखंड के काशीपुर नगर में प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि के अवसर पर आयोजित होने वाला एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का भी द्योतक है।

चैती मेला का इतिहास :

चैती मेला का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। काशीपुर, जिसे पौराणिक काल में गोविषाण के नाम से जाना जाता था, महाभारत काल से संबंधित स्थल है। यहां स्थित माता बालासुंदरी देवी का मंदिर शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां माता सती की दायीं भुजा गिरी थी। इस मंदिर में मूर्ति के स्थान पर एक शिला पर उकेरी गई दायीं भुजा की आकृति की पूजा की जाती है।

मुगल काल में, स्थानीय अग्निहोत्री ब्राह्मणों ने इस मंदिर की स्थापना की, और कहा जाता है कि तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी इस मंदिर के निर्माण में सहायता प्रदान की थी। मंदिर परिसर में स्थित खोखला पाकड़ वृक्ष से जुड़ी एक लोककथा भी प्रचलित है, जिसमें एक महात्मा और पुजारी के बीच की घटना का वर्णन मिलता है।

चैती मेला का आयोजन और महत्व :

चैती मेला चैत्र मास की नवरात्रि के दौरान आयोजित होता है, जो वसंत ऋतु की शुरुआत का संकेत देता है। यह मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र होता है। श्रद्धालु दूर-दूर से माता बालासुंदरी देवी के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां विभिन्न प्रकार की दुकानें, झूले, सर्कस और अन्य मनोरंजक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जो मेले की रौनक को बढ़ाते हैं।

मेले में पशु व्यापार, विशेषकर घोड़ों का क्रय-विक्रय, एक प्रमुख आकर्षण रहा है। अतीत में, यह मेला घोड़ों के नखासा बाजार के लिए प्रसिद्ध था, जहां दूर-दूर से व्यापारी और खरीदार आते थे। हालांकि, समय के साथ, परिवहन के साधनों में बदलाव के कारण इस व्यापार का महत्व कम हो गया है, लेकिन मेले का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी बना हुआ है।

धार्मिक अनुष्ठान और मान्यताएँ :

चैती मेला के दौरान, माता बालासुंदरी देवी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। अष्टमी, नवमी और दशमी के दिनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। जनमान्यता है कि इन दिनों में जो भी मनौती मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है। मेले के समापन पर, दशमी की रात्रि को माता की डोली को उनके स्थायी मंदिर, पक्काकोट मोहल्ले में स्थित मंदिर, में ले जाया जाता है। इस अवसर पर भक्तगण माता की सवारी के साथ चलकर पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

स्थानीय बोक्सा और थारू जनजातियों के लोगों की इस देवी पर गहरी आस्था है। इन समुदायों के नवविवाहित जोड़े माता का आशीर्वाद लेने के लिए चैती मेले में अवश्य पहुंचते हैं, जिससे उनके वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चैती मेला : चैती मेला 2025

वर्तमान समय में, चैती मेला अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है। हाल ही में, 30 मार्च 2025 को, सांसद अजय भट्ट ने पूजा-अर्चना और ध्वजारोहण कर मेले का शुभारंभ किया। यह मेला लगभग एक महीने तक चलता है और क्षेत्र के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है।

मेले के दौरान, विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोक नृत्य, संगीत, और अन्य मनोरंजक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखते हैं। इसके अलावा, मेले में लगने वाली विभिन्न प्रकार की दुकानों से स्थानीय कारीगरों और व्यापारियों को आर्थिक लाभ भी मिलता है।

निष्कर्ष :

चैती मेला (Chaiti Mela) काशीपुर का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है, जो क्षेत्र की समृद्ध परंपराओं, आस्थाओं और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से भक्तों की आस्था को मजबूत करता है, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यावसायिक गतिविधियों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चैती मेला का इतिहास, इसकी मान्यताएँ और वर्तमान परिप्रेक्ष्य इसे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर में एक विशेष स्थान प्रदान करते हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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