Friday, May 9, 2025
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उत्तराखंड की भिटौली प्रथा: भाई-बहन के प्रेम और संस्कृति का अनमोल त्योहार (Bhitauli Festival 2025)

उत्तराखंड की पावन धरती पर सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपराएं यहाँ की संस्कृति, समाज, और रिश्तों की गहराई को उजागर करती हैं। ऐसी ही एक अनमोल परंपरा है भिटौली प्रथा (Bhitauli Festival), जो भाई-बहन के स्नेह और माता-पिता के प्रेम का प्रतीक है। यह केवल उपहारों की रस्म नहीं, बल्कि अपनों की खुशहाली की कामना और मायके से जुड़ाव का एक भावनात्मक उत्सव है। आइए जानते हैं कि भिटौली प्रथा क्या है, इसका महत्व, और आधुनिक समय में यह कैसे बदल रही है।

भिटौली प्रथा क्या है? इसका अर्थ और महत्व (What is Bhitauli Festival?)

“भिटौली” शब्द का अर्थ है “भेंट में दी जाने वाली वस्तु।” उत्तराखंड में यह परंपरा चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) में मनाई जाती है, जब मायके से विवाहित बहनों और बेटियों को स्नेह भरी भेंट भेजी जाती है।

  • कुमाऊं क्षेत्र: इसे “भिटौली” या “आव” कहते हैं।
  • गढ़वाल क्षेत्र: इसे “आलो” या “आवो” के नाम से जाना जाता है।

विवाह के बाद पहली बार यह भेंट फाल्गुन मास में भेजी जाती है, और उसके बाद हर साल चैत्र मास में यह परंपरा निभाई जाती है। यह बहनों के लिए मायके से आने वाले प्यार का प्रतीक है, जिसका इंतज़ार वे पूरे साल करती हैं।

भिटौली प्रथा में क्या-क्या शामिल होता है?

भिटौली में भाई अपनी बहन के ससुराल एक खास पोटली लेकर जाता है। इसमें शामिल होती हैं ये चीज़ें:

  • पकवान: पूड़ी, पुआ, सिंगल, साया, कचौड़ी, अर्सा, खाजा, और खजूरे।
  • वस्त्र: साड़ी, ब्लाउज, दुपट्टा, या रुमाल।
  • दक्षिणा: नकद राशि, ताकि बहन अपनी जरूरतें पूरी कर सके।

यह भेंट बहन द्वारा ससुराल के पूरे गांव में बांटी जाती है, जिससे उसका सम्मान बढ़ता है और गांव वालों को पता चलता है कि उसकी भिटौली आ गई है।

भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक: भिटौली का भावनात्मक पहलू –

भिटौली प्रथा (Bhitauli Festival) केवल उपहारों का लेन-देन नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट रिश्ते का उत्सव है। पहाड़ों की बेटियां मायके से आने वाली भिटौली का बेसब्री से इंतज़ार करती हैं। जब भाई भिटौली लेकर पहुँचता है, तो यह सिर्फ भेंट नहीं, बल्कि मायके का प्यार और अपनापन होता है।
इस भावना को उत्तराखंड के लोकगीत खूबसूरती से बयां करते हैं:

कफुवा बासो दिन रात, कौवा राती ब्याण, चैतरितु आयी गेछ, भिटौली ल्यालो भाया।”

(अर्थ: कफुवा पक्षी की आवाज़ से बहन को लगता है कि चैत्र मास आ गया, और भाई भिटौली लेकर आएगा।)

भिटौली की लोककथाएं: एक मार्मिक कहानी –

उत्तराखंड में भिटौली से जुड़ी कई लोककथाएं मशहूर हैं। एक प्रसिद्ध कहानी के अनुसार, एक भाई अपनी बहन के लिए भिटौली लेकर गया, लेकिन थकान से सोई बहन नहीं जागी। भाई उसे जगाए बिना भिटौली रखकर लौट गया। जब बहन ने भिटौली देखी, तो भाई से न मिल पाने के दुख में उसने प्राण त्याग दिए। तभी से यह प्रथा शुरू हुई, ताकि साल में एक बार बेटियों का हाल-चाल लिया जा सके।

आधुनिक समय में भिटौली प्रथा (Bhitauli Festival in 2025) –

समय के साथ भिटौली के स्वरूप में बदलाव आया है:

  • पहले: भाई लंबा सफर तय करके भिटौली पहुँचाते थे।
  • अब: डाक, कूरियर, या ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर से भेंट भेजी जाती है।
  • 2025 का ट्रेंड: कई परिवार वीडियो कॉल के ज़रिए भिटौली की खुशी साझा करते हैं, पर पहाड़ों में परंपरा आज भी जीवित है। हालांकि तरीके बदले हैं, लेकिन इसके पीछे की भावना वही है—अपनों से जुड़ाव और प्यार।

क्यों खास है भिटौली प्रथा ?

  1. यह मायके और ससुराल के बीच बेटी की भावनात्मक कड़ी को मजबूत करती है।
  2. यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
  3. यह भाई-बहन के रिश्ते को सेलिब्रेट करने का एक अनोखा तरीका है।

उपसंहार: भिटौली को संजोए रखने की ज़रूरत :

भिटौली प्रथा (Bhitauli Festival) सिर्फ एक रिवाज़ नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा है। यह हमें अपनों के प्रेम और संस्कृति की कीमत सिखाती है। आधुनिकता के दौर में भी इसे जीवित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस खूबसूरत परंपरा से जुड़ सकें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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