Thursday, April 17, 2025
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कुमाउनी किस्सा, “जै बाप रिखेल खाई, उ काऊ खुन देखि डरू” की कहानी

एक प्रसिद्ध कुमाउनी किस्सा आप लोगों ने भी सुना होगा, “जैक बाप रिखेल खाय ,उ काऊ खुन देखि डरु ” अगर हिंदी कहावत में इसका अर्थ लिया जाय तो, “दूध का जला छाछ भी फूक फूक कर पिता है। कुमाऊं के इतिहास  इसके पीछे बड़ी ही मार्मिक कहानी है ।

वैसे देखा जाय तो , हमारे समाज कई कुमाऊनी कहावतें ऐसी हैं, जिनके पीछे प्राचीन इतिहास में कोई न कोई घटना घटी है। अर्थात किसी ऐतिहासिक घटना के कारण, इन कहावतों का जन्म हुआ और हमारे समाज मे आदि से अनंत तक चलती रहती हैं। इस कुमाऊनी कहावत या कुमाउनी किस्से के पीछे भी एक ऐतिहासिक घटना है। जिसका वर्णन श्री बदरीदत्त पांडेय जी ने अपनी प्रसिद्ध किताब कुमाऊं के इतिहास मे किया है।

कुमाऊं के इतिहास में चंद वंशीय राजाओं में एक राजा थे , राजा बाजबहादुर चंद । उन्होंने कुमाऊं में अपने शाशन काल मे काफी नाम कमाया। दान पुण्य किया , सोमेश्वर का पिनाथ मंदिर इन्होंने बनाया। और कई मंदिर बनाये तथा कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। राजा बाजबहादुर चंद वीर पुण्यात्मा होने के बाद भी ,एक बार ऐसे कुसंगति में फस गए जिसका उन्हें जिंदगी भर मलाल रहा। और बुढ़ापे में बदनामी भी हुई। राजा के दरवार में एक डालकोटी ब्राह्मण रहता था। यह ब्राह्मण थोड़ा धूर्त किस्म का ब्राह्मण था। उसने राजा को धीरे धीरे करके अपने जाल में फसाना शुरू किया। जब राजा पूरी तरह उसके वश में आ गया । तब उसने अपना षड्यंत्र शुरू किया।

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डालकोटी ब्राह्मण ने राजा से कहा कि ,महाराज आजकल राजदरबार में आपके खिलाफ षड्यंत्र बहुत हो रहे हैं। कई दरबारी इसमे शामिल हैं। महाराज मैं आपको बता सकता हूँ ,कि आपके प्रति कौन वफादार है,और कौन आपके खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है। राजा ने पूछा ,वो कैसे ?

कुमाउनी किस्सा
कुमाउनी किस्सा

तब डालकोटि ब्राह्मण ने कहा, महाराज मैं  दो पोटलियों में किसी एक दरबारी के नाम के चावल लाऊंगा। आपने  दोनो पोटलियों का मतलब अच्छा और बुरा क्रमशः सोच के रखना है। मतलब एक पोटली का अर्थ की यह वफादार नही है ।दूसरी पोटली का अर्थ होगा वफादार है। मैं जिस पोटली पर हाथ लगाऊंगा या इशारा करूँगा ,आप उसका अर्थ खुद समझते हुए उचित निर्णय लेंगे।

राजा बोले ठीक है। अब डालकोटी ब्राह्मण ने ,दरबार मे उसको जिससे द्वेष था, उसने यह चावल वाला विधान करके ,उन दरबारियों कक एक एक करके मरवाना शुरू कर दिया। ऐसा करते करते उसने डालकोटी ब्राह्मण के कहने पर सैकड़ो लोग मरवा दिए, किसी की आँखें निकाल ली गई। किसी के हाथ पैर तोड़ दिए गए। जनता राजा से बहुत रूष्ट हो गई। और उधर डालकोटी ब्राह्मण ने दरबार मे पूरी तरह अपनी चला रखी थी ।

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इनमें से बारामंडल के बजेल गावँ के श्री सुंदर भंडारी राजा बाजबहादुर चंद के प्रिय कर्मचारी थे। उसने एक दिन राजा से कहा कि उसने डालकोटी के बहकावे में आकर , कई निर्दोष लोगों को बेवजह मरवा दिया। आप बिना तहकीकात करवाये, एक चावल की पोटली के आधार पर निर्णय सुना देते हैं। आपसे राज्य की जनता और सारे कर्मचारी नाराज हैं।

तब राजा ने कहा कि ,चावल की पोटली का न्याय सही है। तब श्री सुंदर भंडारी 2 चावल की पोटली लेकर आया और बोला आप इन दोनो पोटलियों के बारे में अपने मन में सोच लीजिए। मतलब एक नंबर पोटली के बारे में सोचिए कि राजा श्री सुंदर भंडारी को पसंद नही करता । और दूसरी पोटली के बारे में सोचे कि राजा, श्री सुंदर भंडारी को पसंद करता है। राजा ने कहा ,ठीक है सोच लिया।

अब श्री सुंदर भंडारी ने एक पोटली पर हाथ लगाया,तो राजा चौक गया। क्योंकि उसने वो पोटली छुई ,जिसके बारे में राजा ने सोचा था कि वह उसे पसंद नही करता । लेकिन हकीकत में राजा श्री सुंदर भंडारी को पसंद करता था। अब सब राजा की समझ मे आ गया। और उसे अपनी भूल का अहसास भी हुवा । उसने डालकोटी ब्राह्मण को सजा करवाई और उसके पाप के कारण जो लोग मारे गए थे। उनके परिवार को जीवन यापन के लिए गुजारा भत्ता दिलवाया।

तब भी लोग उसके पास आने से डरने लगे। और उसी समय से यह कुमाउनी किस्सा चला “जैक बाप रिखेल खाई, ऊ काऊ खुन देखि डरु”

क्योंकि लोग राजा के प्रायश्चित को दिखावटी समझने लगे थे। किंतु कहा जाता है, कि राजा को उस पाप से बहुत गहरी चोट लगी थी।

इसे भी पढ़े – “कुमाऊनी एवं गढ़वाली कहावतें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

नोट :  प्रतीकात्मक चित्र सोशल मीडिया के सहयोग से संकलित किए गए हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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