एक प्रसिद्ध कुमाउनी किस्सा आप लोगों ने भी सुना होगा, “जैक बाप रिखेल खाय ,उ काऊ खुन देखि डरु ” अगर हिंदी कहावत में इसका अर्थ लिया जाय तो, “दूध का जला छाछ भी फूक फूक कर पिता है। कुमाऊं के इतिहास इसके पीछे बड़ी ही मार्मिक कहानी है ।
वैसे देखा जाय तो , हमारे समाज कई कुमाऊनी कहावतें ऐसी हैं, जिनके पीछे प्राचीन इतिहास में कोई न कोई घटना घटी है। अर्थात किसी ऐतिहासिक घटना के कारण, इन कहावतों का जन्म हुआ और हमारे समाज मे आदि से अनंत तक चलती रहती हैं। इस कुमाऊनी कहावत या कुमाउनी किस्से के पीछे भी एक ऐतिहासिक घटना है। जिसका वर्णन श्री बदरीदत्त पांडेय जी ने अपनी प्रसिद्ध किताब कुमाऊं के इतिहास मे किया है।
कुमाऊं के इतिहास में चंद वंशीय राजाओं में एक राजा थे , राजा बाजबहादुर चंद । उन्होंने कुमाऊं में अपने शाशन काल मे काफी नाम कमाया। दान पुण्य किया , सोमेश्वर का पिनाथ मंदिर इन्होंने बनाया। और कई मंदिर बनाये तथा कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। राजा बाजबहादुर चंद वीर पुण्यात्मा होने के बाद भी ,एक बार ऐसे कुसंगति में फस गए जिसका उन्हें जिंदगी भर मलाल रहा। और बुढ़ापे में बदनामी भी हुई। राजा के दरवार में एक डालकोटी ब्राह्मण रहता था। यह ब्राह्मण थोड़ा धूर्त किस्म का ब्राह्मण था। उसने राजा को धीरे धीरे करके अपने जाल में फसाना शुरू किया। जब राजा पूरी तरह उसके वश में आ गया । तब उसने अपना षड्यंत्र शुरू किया।
डालकोटी ब्राह्मण ने राजा से कहा कि ,महाराज आजकल राजदरबार में आपके खिलाफ षड्यंत्र बहुत हो रहे हैं। कई दरबारी इसमे शामिल हैं। महाराज मैं आपको बता सकता हूँ ,कि आपके प्रति कौन वफादार है,और कौन आपके खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है। राजा ने पूछा ,वो कैसे ?
तब डालकोटि ब्राह्मण ने कहा, महाराज मैं दो पोटलियों में किसी एक दरबारी के नाम के चावल लाऊंगा। आपने दोनो पोटलियों का मतलब अच्छा और बुरा क्रमशः सोच के रखना है। मतलब एक पोटली का अर्थ की यह वफादार नही है ।दूसरी पोटली का अर्थ होगा वफादार है। मैं जिस पोटली पर हाथ लगाऊंगा या इशारा करूँगा ,आप उसका अर्थ खुद समझते हुए उचित निर्णय लेंगे।
राजा बोले ठीक है। अब डालकोटी ब्राह्मण ने ,दरबार मे उसको जिससे द्वेष था, उसने यह चावल वाला विधान करके ,उन दरबारियों कक एक एक करके मरवाना शुरू कर दिया। ऐसा करते करते उसने डालकोटी ब्राह्मण के कहने पर सैकड़ो लोग मरवा दिए, किसी की आँखें निकाल ली गई। किसी के हाथ पैर तोड़ दिए गए। जनता राजा से बहुत रूष्ट हो गई। और उधर डालकोटी ब्राह्मण ने दरबार मे पूरी तरह अपनी चला रखी थी ।
इनमें से बारामंडल के बजेल गावँ के श्री सुंदर भंडारी राजा बाजबहादुर चंद के प्रिय कर्मचारी थे। उसने एक दिन राजा से कहा कि उसने डालकोटी के बहकावे में आकर , कई निर्दोष लोगों को बेवजह मरवा दिया। आप बिना तहकीकात करवाये, एक चावल की पोटली के आधार पर निर्णय सुना देते हैं। आपसे राज्य की जनता और सारे कर्मचारी नाराज हैं।
तब राजा ने कहा कि ,चावल की पोटली का न्याय सही है। तब श्री सुंदर भंडारी 2 चावल की पोटली लेकर आया और बोला आप इन दोनो पोटलियों के बारे में अपने मन में सोच लीजिए। मतलब एक नंबर पोटली के बारे में सोचिए कि राजा श्री सुंदर भंडारी को पसंद नही करता । और दूसरी पोटली के बारे में सोचे कि राजा, श्री सुंदर भंडारी को पसंद करता है। राजा ने कहा ,ठीक है सोच लिया।
अब श्री सुंदर भंडारी ने एक पोटली पर हाथ लगाया,तो राजा चौक गया। क्योंकि उसने वो पोटली छुई ,जिसके बारे में राजा ने सोचा था कि वह उसे पसंद नही करता । लेकिन हकीकत में राजा श्री सुंदर भंडारी को पसंद करता था। अब सब राजा की समझ मे आ गया। और उसे अपनी भूल का अहसास भी हुवा । उसने डालकोटी ब्राह्मण को सजा करवाई और उसके पाप के कारण जो लोग मारे गए थे। उनके परिवार को जीवन यापन के लिए गुजारा भत्ता दिलवाया।
तब भी लोग उसके पास आने से डरने लगे। और उसी समय से यह कुमाउनी किस्सा चला “जैक बाप रिखेल खाई, ऊ काऊ खुन देखि डरु”
क्योंकि लोग राजा के प्रायश्चित को दिखावटी समझने लगे थे। किंतु कहा जाता है, कि राजा को उस पाप से बहुत गहरी चोट लगी थी।
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नोट : प्रतीकात्मक चित्र सोशल मीडिया के सहयोग से संकलित किए गए हैं।
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