सनातन धर्म की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ देवताओं के साथ-साथ असुरों को भी उतने ही सम्मान और श्रद्धा से पूजा जाता है। यही उदारता और समरसता देवभूमि उत्तराखंड को विशेष बनाती है। यहाँ पांडवों की पूजा होती है, तो वहीं दुर्योधन को भी देवता का दर्जा प्राप्त है। पांडवकालीन हिडिम्बा देवी की भी पूजा होती है। यही कारण है कि उत्तराखंड को “देवभूमि” कहा जाता है — जहाँ शुभ ग्रह ही नहीं, अशुभ ग्रहों की भी पूजा होती है।
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राहु मंदिर पैठाणी — स्थान, महत्त्व और पौराणिक इतिहास
यह अनोखा मंदिर पौड़ी ज़िले के थलीसैंण ब्लॉक की कंडारस्यूं पट्टी में स्थित पैठाणी नामक गाँव में बसा है। यह मंदिर दो नदियों — स्योलीगाड़ (रथवाहिनी) और नवालिका (पश्चिमी नयार) के संगम पर स्थित है। पौड़ी मुख्यालय से यह स्थान केवल 46 किलोमीटर दूर है।
राहु, जिन्हें छाया ग्रह कहा जाता है, का यह मंदिर उत्तर भारत में शायद एकमात्र है। दक्षिण भारत में एक और मंदिर है जहाँ राहु के साथ केतु की भी पूजा होती है, लेकिन उत्तर में अकेले राहु को समर्पित यह मंदिर अद्वितीय है।
मंदिर की स्थापना: आदि शंकराचार्य और पांडवों की कथा
लोक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया गया था, जब वे हिमालय यात्रा पर थे। वहीं कुछ जनश्रुतियों में कहा जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान राहु दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां भगवान शिव और राहु की पूजा की और इस मंदिर की स्थापना की। कालांतर में जब यह मंदिर खंडित हुआ तो शंकराचार्य जी ने इसका पुनरुद्धार करवाया।
यह मंदिर केदारनाथ शैली में बना हुआ है, जो इसे और भी अधिक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करता है।
मंदिर की वास्तुकला और अनूठी विशेषताएं
इस मंदिर में केवल राहु की नहीं, भगवान शिव के साथ-साथ राहु की भी पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, और इसका मुख पश्चिम दिशा की ओर है। मंदिर के शीर्ष पर शेर और हाथी की प्रतिमाएं अंकित हैं।
मंदिर की दीवारों पर सुंदर शिल्पकला की झलक मिलती है। यहाँ राहु के कटे हुए सिर की मूर्ति है, जो दर्शाती है कि राहु का सिर एक विशाल पत्थर के नीचे दबा है। इसके अलावा भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की भी नक्काशी की गई है। मंदिर के भीतर और बाहर अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं — विशेष रूप से गणेश और चतुर्भुजी चामुंडा की।
राहु मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं
1. शिव-राहु की तपस्या कथा
मान्यता है कि असुर राहु ने राठ पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने राहु को आशीर्वाद दिया और यहीं दोनों की पूजा आरंभ हुई।
2. सागर मंथन कथा
जब राहु ने छल से अमृत पिया, तो श्रीहरि विष्णु ने उसका सिर काट दिया। कहा जाता है कि राहु का कटा सिर पैठाणी में गिरा और यहीं दब गया। यही कारण है कि यहाँ राहु का सिर-रहित रूप पूजित है।
3. इन्द्र-राहु युद्ध कथा
स्थानीय लोक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि यहाँ इन्द्रेश्वर धारा और इन्द्रशिला नामक स्थल पर इन्द्र और राहु के बीच युद्ध हुआ था, जिसे भगवान शिव ने मध्यस्थता कर शांत किया। परिणामस्वरूप यहाँ दोनों की पूजा होने लगी।
पैठाणी गांव का पौराणिक नाम और भूगोल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस क्षेत्र का नाम राठपुर था। राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर इसे राठ कहा गया। राहु के गोत्र “पैठिनसि” के आधार पर इस गांव का नाम पैठाणी पड़ा। यह स्थान कभी गढ़वाल के राठ राज्य की राजधानी रहा है। गढ़वाल गजेटियर के अनुसार यह क्षेत्र दुर्गम, लेकिन उपजाऊ तथा जलसंपन्न है।
शिवालय की मूर्तियाँ और राहु की दुर्लभ प्रतिमा
मंदिर के मंडप में वीणाधर शिव, त्रिमूर्ति हरिहर और त्रिमुखी भोलेनाथ की दुर्लभ मूर्तियाँ स्थित हैं। यह प्रतिमाएं उत्तराखंड ही नहीं, भारत भर में दुर्लभ मानी जाती हैं।
केदारखंड के श्लोक —
ॐ भूर्भवः स्व राठेनापुरदेभाव पैठिनासि गोत्र राहो ईहागच्छेदनिष्ट —
को इस मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण माना जाता है।
राहु मंदिर में मूंग की खिचड़ी का भोग
राहु दोष निवारण हेतु यहाँ मूंग की खिचड़ी का भोग अर्पित किया जाता है। यही प्रसाद श्रद्धालुओं को भंडारे में भी वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस भोग से राहु दोष शांति पाता है।
कैसे पहुंचें राहु मंदिर पैठाणी ?
- सड़क मार्ग: पैठाणी राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है।
- पौड़ी से दूरी: लगभग 46 किमी
- कोटद्वार से दूरी: 150 किमी
- देहरादून (NH7 से): लगभग 215 किमी (6–7 घंटे)
- निकटतम रेलवे स्टेशन: कोटद्वार
- निकटतम एयरपोर्ट: जौलीग्रांट, देहरादून
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निष्कर्ष
राहु मंदिर पैठाणी, उत्तराखंड की धार्मिक विरासत का एक अद्वितीय प्रतीक है। यह मंदिर सिर्फ राहु की पूजा का केंद्र नहीं, बल्कि सनातन धर्म की सहिष्णुता, संतुलन और समरसता का परिचायक भी है। यहाँ की रहस्यमयी कहानियाँ, पौराणिक महत्व और सुंदर प्राकृतिक परिवेश इस स्थल को विशेष बनाते हैं।
अगर आप राहु दोष से पीड़ित हैं या एक अनोखी तीर्थयात्रा की तलाश में हैं, तो राहु मंदिर पैठाणी अवश्य जाएं।
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