Thursday, April 17, 2025
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टेलीप्रॉम्पटर क्या होता है? टेलीप्रॉम्पटर कैसे काम करता है?

टेलीप्रॉम्पटर तकनीक का प्रयोग से मोदी जी ही नही बड़े -बड़े नेता और बड़े बड़े वक्ता ,जो मंच पर बिना देखे, बिना पर्चा पढ़े , एक उच्च कोटि ,उच्च स्तरीय भाषण देते हैं ।और अलग अलग भाषाओं का प्रयोग करते हैं। वे अधिकतर अपने भाषणों में इस खास आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हैं। जिससे वे बड़ी आसानी से बड़े बड़े उच्चस्तरीय भाषण दे देते हैं। और श्रोताओं को एकदम सहज लगता है। श्रोता और देखने वालों को लगता है। कि वक्ता भाषण याद कर के बोल रहा है,या अपने मन से बोल रहा है। इस तकनीक का प्रयोग न्यूज़ एंकर समाचार पढ़ने के लिए करते हैं। या फ़िल्म अभिनेता अपनी स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए करते है। अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ,ट्रम्प आदि सभी इस आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते थे।

टेलीप्रॉम्पटर क्या है?

टेलीप्रॉम्पटर एक तरह का खास उपकरण होता है। जिसके सहारे वक्ता अपने भाषण पढ़ता है। या अभिनेता या गीतकार अपनी लाइन बोलने के लिए प्रयोग करते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है, कि वक्ता को अपना भाषण याद नही करना पढ़ता । वह टेलीप्रॉम्पटर के सहारे बड़ी सहजता से भाषण दे देता है। और सुनने वालों को यह एकदम सामान्य लगता हैं। उन्हें लगता है कि वक्ता बिना देखे भाषण दे रहा है।

टेलीप्रॉम्पटर कैसे काम करता है? और कहाँ पर लगा होता है?

दोस्तो कभी आपने ,मोदी जी या बराक ओबामा या फिर ट्रम्प जैसे बड़े नेताओं को भाषण देते समय नोटिस किया है? उनके अगल बगल दो बड़े बड़े आईने जैसे शीशे लगे होते हैं। और ये शीशे ही  टेलीप्रॉम्पटर शीशे होते हैं। इन्ही पर वक्ता की तरफ, भाषण चल रहा होता है। और श्रोताओं की तरफ से यह एक सामान्य शीशा लगता है। श्रोताओं की तरफ से कुछ नही दिखता।

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टेलीप्रॉम्पटर कैसे काम करता है ?  आइये अब जानते हैं यह तकनीक कैसे काम करती है। सबसे पहले जानते हैं, इसमे कौन कौन से उपकरण प्रयोग किये जाते हैं ।

इसमे निम्न उपकरण प्रयुक्त होते हैं :-

1- टेलीप्रॉम्पटर स्टैंड और रेफ़्लेक्टिंग शीशा
2 – मॉनिटर या टैब

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टेलीप्रॉम्पटर स्टैंड पर टेलीप्रॉम्पटर ग्लास कुछ 45 डिग्री के झुकाव में सेट किया जाता है। इसके ठीक नीचे मॉनिटर या टैब उल्टा करके रखा जाता है। जिसपर सॉफ्टवेयर की मदद से वक्ता द्वारा दिया जाने वाला भाषण उल्टे शब्दो मे ,और वक्त के बोलने की गति के अनुसार चलता है। और उस भाषण का प्रतिबिंब टेलीप्रॉम्पटर शीशे पर सीधे शब्दों में बनता है। जिसे वक्ता आसानी से पढ़ लेता है। पहले इसकी गति और साइज मैनुवाली अपडेट करते थे। लेकिन अब सब आटोमेटिक है। एक बार सेट कर लेते हैं। फिर वह वक्ता की बोलने की गति के हिसाब से अपने आप चलता है। टेलीप्रॉम्पटर object mirroring एवं प्रतिबिंबित ( Reflection) के सिद्धांत पर काम करते हैं।  टेलीप्रॉम्पटर ग्लास में दो परते होती है। जो अंदर की परत में मॉनिटर या टैब द्वारा प्रतिबिंबित किया जाता है। जिससे वक्ता को साफ साफ और object mirroring के सिद्धांत पर काम करने के कारण शब्द बड़े बड़े दिखाई देते हैं।

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टेलीप्रॉम्पटर कितने प्रकार के होते हैं ?

मुख्यतः टेलीप्रॉम्पटर दो प्रकार के होते हैं।

अध्यक्षीय

इस प्रकार के टेलीप्रॉम्पटर का प्रयोग मुख्य रूप से राजनेता अपने भाषण देने के लिए करते हैं। यह एक लंबे स्टैंड पर  टेलीप्रॉम्पटर शीशा लगा होता है। जो 45 डिग्री के एंगल में झुका होता है। और इसके ठीक नीचे, वक्ता के केबिन या पैरों के नीचे टैब या मॉनिटर रखा होता है। जिसका प्रतिबिम्ब टेलीप्रॉम्पटर शीशे पर बनता है। जब वक्ता बोलता है, तो इन शीशों में देख कर बोलता है। और ये शीशे द्वीपरतीय होने के कारण, श्रोताओं को नॉर्मल शीशे लगते हैं। और उन्हें लगता है, कि वक्ता उन्हें देख कर बोल रहा है।

कैमरा वाला

इस टेलीप्रॉम्पटर का प्रयोग समाचार पढ़ने और फिल्मों की रिकॉर्डिंग में किया जाता है। इसमे टेलीप्रॉम्पटर शीशे  (teleprompter) के ठीक पीछे कैमरा होता है। शीशे के आंतरिक भाग में समाचार या डायलॉग चल रहे होते हैं। एंकर या अभिनेता शीशे में देख कर उन्हें बोलता है। शीशे के ठीक पीछे लगा कैमरा उन्हें रिकॉर्ड करता है। जिससे ऐसा लगता है। कि अभिनेता या एंकर स्क्रिप्ट याद करके बोल रहा है।

टैलिप्राम्प्टर की खोज किसने की

टैलिप्राम्प्टर (teleprompter) की खोज Hubert Schlafy और Free Barton Junior और Irving Berlin kahn ने 1950 के आस पास की थी।

स्पष्टीकरण – यह पोस्ट केवल टैलिप्राम्प्टर तकनीक (teleprompter) के बारे में  जानकारी के लिए लिखी गई है। किसी भी राजनीतिक दल से इसका कोई संबंध नही हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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